Bihar Board Class 10 Science Subjective Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार

 

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य की आँख के निकट-बिन्दु तथा दूर-बिन्दु से क्या तात्पर्य है ? स्वस्थ आँख के लिए इनका मान लिखिए। (2015, 17)
उत्तर:
निकट-बिन्दु आँख के अधिक-से-अधिक निकट का वह बिन्दु जिसे आँख अपनी अधिकतम समंजन क्षमता लगाकर स्पष्ट देख सकती है; आँख का निकट-बिन्दु कहलाता है। स्वस्थ आँख के लिए यह दूरी 25 सेमी होती है। दूर-बिन्दु वह दूरतम बिन्दु जिसे आँख बिना समंजन क्षमता लगाये स्पष्ट देख सकती है, आँख का दूर-बिन्दु कहलाता है। सामान्य आँख के लिए यह अनन्त पर होता है।

प्रश्न 2.
स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी किसे कहते हैं ? (2014)
उत्तर:
वह निकटतम बिन्दु जिसे आँख अपनी अधिकतम समंजन क्षमता लगाकर स्पष्ट देख सकती है, आँख का निकट-बिन्दु कहलाता है तथा आँख से इस बिन्दु की दूरी स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी कहलाती है। स्वस्थ आँख के लिए यह दूरी 25 सेमी होती है।

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प्रश्न 3.
दृष्टि दोष क्या है ? इसके प्रकार लिखिए। (2013)
उत्तर:
जब नेत्र में प्रतिबिम्ब रेटिना के आगे या पीछे बनता है तब वस्तु स्पष्ट नजर नहीं आती। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब नेत्र की समंजन क्षमता प्रतिबिम्ब को रेटिना पर बनाने के लिए कम हो जाती है या पूर्णत: समाप्त हो जाती है। इसी को दृष्टि दोष कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है –
1. निकट-दृष्टि दोष
2. दूर-दृष्टि दोष।

प्रश्न 4.
दूर-दृष्टि दोष किसे कहते हैं ? इस दोष के निवारण के लिए किस प्रकार का लेंस प्रयुक्त किया जाता है ? किरण-आरेख द्वारा समझाइए। (2012, 15, 16, 17, 18)
दूर-दृष्टि दोष से क्या तात्पर्य है? इसका निवारण किस प्रकार किया जा सकता है? (2011, 15, 16)
उत्तर:
इस दोष से पीड़ित व्यक्ति को दूर की वस्तुएँ तो स्पष्ट दिखायी देती हैं, परन्तु निकट की वस्तुएँ स्पष्ट दिखायी नहीं देतीं। यह दोष निम्नलिखित दो कारणों में से किसी एक कारण से हो सकता
1. नेत्र-लेंस की वक्रता कम हो जाए, जिससे उसकी फोकस दूरी बढ़ जाए।
2. नेत्र-लेंस तथा रेटिना के बीच की दूरी कम हो जाए अर्थात् नेत्र के गोलक का व्यास कम हो जाए।
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इस दृष्टि दोष वाले व्यक्ति का निकट बिन्दु 25 सेमी के स्थान पर अधिक दूरी पर हो जाता है। इस कारण 25 सेमी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना F पर न बनकर रेटिना के पीछे A पर बनता है [देखें चित्र (a)]| दूर-दृष्टि दोष का निवारण इस दोष के निवारण के लिए ऐसे अभिसारी (उत्तल) लेंस की आवश्यकता होगी, जो 25 सेमी दूर-बिन्दु S पर रखी वस्तु (किताब) से आने वाली किरणों को इतना अभिसरित कर दे कि किरणें दूषित आँख के निकट-बिन्दु N से आती हुई नेत्र-लेंस पर आपतित हों तथा प्रतिबिम्ब रेटिना R पर बने [देखें चित्र (b)]। इस प्रकार S पर रखी वस्तु भी आँख को स्पष्ट दिखायी देगी।

प्रश्न 5.
निकट दृष्टि दोष किसे कहते हैं ? इस दोष के क्या कारण हैं? इसके निवारण के लिए किस प्रकार का लेंस प्रयुक्त किया जाता है ? किरण-आरेख द्वारा समझाइए। (2009, 12, 14, 16, 17, 18) या निकट दृष्टि दोष से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
निकट-दृष्टि दोष वाले व्यक्ति को पास की वस्तुएँ स्पष्ट दिखायी देती हैं; परन्तु अधिक दूर की वस्तुएँ स्पष्ट दिखायी नहीं देती अर्थात् नेत्र का दूर-बिन्दु अनन्त पर न होकर कम दूरी पर आ जाता है। इस दोष के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –
1. नेत्र-लेंस की वक्रता बढ़ जाए जिससे उसकी फोकस दूरी कम हो जाए।
2. नेत्र-लेंस और रेटिना के बीच की दूरी बढ़ जाए अर्थात् नेत्र के गोलक का व्यास बढ़ जाए।
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इस दोष के कारण दूर की वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बनकर रेटिना व नेत्र-लेंस के बीच P पर बन जाने से [देखें चित्र (a)] प्रतिबिम्ब स्पष्ट नहीं दिखता। ऐसे मनुष्य का दूर-बिन्दु अनन्त पर न होकर आँख के काफी पास F पर होता है तथा निकट बिन्दु भी 25 सेमी से कम दूरी पर होता है। निकट-दृष्टि दोष का निवारण निकट-दृष्टि दोष में नेत्र का दूर-बिन्दु F अनन्त से कम दूरी पर ऐसी स्थिति में होता है; जहाँ से चलने वाली किरणें बिना समंजन क्षमता लगाये रेटिना पर मिलती हैं देखें चित्र (b)]।

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इस दोष को दूर करने के लिए ऐसे अवतल लेंस का उपयोग किया जाता है कि अनन्तता पर रखी वस्तु से चलने वाली किरणें इस लेंस से निकलने पर, नेत्र के दूर-बिन्दु F से चली हुई प्रतीत हों। तब ये किरणें नेत्र-लेंस से अपवर्तित होकर रेटिना F पर मिलती हैं; जहाँ वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब बन जाता है तथा वस्तु स्पष्ट दिखायी देने लगती है।

प्रश्न 6.
37.5 सेमी फोकस दूरी के अवतल लेंस की सहायता से 25 सेमी दूर रखी पुस्तक पढ़ने वाले व्यक्ति की दृष्टि में कौन-सा दोष होगा? उसकी आँख से कितनी दूरी पर प्रतिबिम्ब बनेगा? (2009)
हल:
दिया है : f = – 37.5 सेमी (चूँकि लेंस अवतल है) मनुष्य अवतल लेंस की सहायता से पुस्तक को 25 सेमी दूर रखकर स्पष्ट पढ़ सकता है। अत: यदि मनुष्य बिना लेंस के पुस्तक को दूरी पर रखकर पढ़ सकता है, तो लेंस 25 सेमी की दूरी पर स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब υ दूरी पर बनाता है; अत: u = – 25 सेमी, υ = ?
लेंस का सत्र = 1f – 1υ = 1u से 1υ = 1f – 1u
137.5 – 125 = –275 – 125
2375 = 575
υ = – 755 = -15 सेमी
अतः प्रतिबिम्ब 15 सेमी की दूरी पर बनेगा। पुन: चूँकि वह अवतल लेंस का प्रयोग करता है, अत: व्यक्ति की दृष्टि में निकट दृष्टि दोष है।

प्रश्न 7.
एक निकट दृष्टि दोष वाला मनुष्य अपनी आँख से 10 मीटर से दर की वस्तओं को स्पष्ट नहीं देख सकता। अनन्त पर स्थित किसी वस्तु को देखने के लिए कितनी फोकस दूरी, प्रकृति व क्षमता वाले लेंस की आवश्यकता होगी? (2009, 12, 13, 14, 15, 17)
हल:
इस दोष के निवारण के लिए व्यक्ति को ऐसे लेंस का उपयोग करना होगा, जो अनन्त पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब 10 मीटर की दूरी पर बना सके, अर्थात् = -10, υ = -10 मीटर =1000 सेमी

लेंस के सूत्र
1f – 1υ = 1u से
1f = 11000 – 1r
या 1f = 11000
f = -100 सेमी = – 10 मीटर
तथा लेंस की क्षमता =
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= – 0.1 D
चूँकि लेंस की क्षमता ऋणात्मक है; अत: लेंस अवतल होगा।

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प्रश्न 8.
एक निकट दृष्टि दोष वाला व्यक्ति 15 सेमी दूर स्थित पुस्तक को स्पष्टतः पढ़ सकता है। पुस्तक को 25 सेमी दूर रखकर पढ़ने के लिए उसे कैसा और कितनी फोकस-दूरी का लेंस अपने चश्मे में प्रयुक्त करना पड़ेगा? (2009)
हल:
इस व्यक्ति को ऐसी फोकस-दूरी के लेंस का प्रयोग करना चाहिए जिससे कि पुस्तक को 25 सेमी दूर रखने पर उसका प्रतिबिम्ब चश्मे से 15 सेमी की दूरी पर बने अर्थात्
u = – 25 सेमी (उचित चिह्न सहित), υ = – 15 सेमी (उचित चिह्न सहित)
लेंस के सूत्र 1f – 1υ = 1u से,
1f = 115 – 1(25) = 115 + 1(25)
1f = 10+6150 = 4150 = – 275
f = 752 = – 37.5 सेमी
चूँकि फोकस-दूरी ऋणात्मक है, अत: उसे 37.5 सेमी फोकस दूरी के अवतल लेंस का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 9.
एक मनुष्य चश्मा पहनकर 25 सेमी दूरी पर रखी पुस्तक पढ़ सकता है। चश्मे में प्रयुक्त लेंस की क्षमता – 2.0 D है। यह मनुष्य बिना चश्मा लगाये हुए पुस्तक को कितनी दूर रखकर पढ़ेगा? हल-इस चश्मे के द्वारा मनुष्य की आँख से 25 सेमी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब उस स्थान पर बनेगाः जहाँ बिना चश्मा लगाये वह पुस्तक को रखकर पढ़ सकता है। माना यह दूरी ५ है तथा u = – 25 सेमी।
:: P = 1f या – 2 = 1f या -2f = 1 म
या f = 12 सेमी या f = – 50 सेमी
लेंस के सूत्र
1υ – 1u = 1f से,
1υ – 1(25) = 1(50) या 1υ + 125 = – 150
या 1υ = – 150 – 125 या 1υ + 1250 = 350
υ = 503 = – 16.7 सेमी
अत: वह बिना चश्मा लगाये 16.7 सेमी की दूरी पर आँख के सामने रखी पुस्तक को पढ़ सकता है।

प्रश्न 10.
दूर दृष्टि दोष से पीड़ित एक मनुष्य के निकट बिन्दु की दूरी 0.40 मीटर है अर्थात् वह कम से कम 40 सेमी की दूरी तक देख सकता है। इस दोष के निवारण हेतु उपयोग में लाये गये लेंस की प्रकृति बताइए तथा फोकस दूरी व क्षमता का परिकलन कीजिए। स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25 सेमी है। (2009, 12, 13, 14)
हल:
इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस का प्रयोग करना चाहिए। इस व्यक्ति द्वारा प्रयोग किये गये उत्तल लेंस की फोकस-दूरी इतनी होनी चाहिए जिससे कि 25 सेमी दूरी पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब आँख के सामने 0.40 मीटर अर्थात् 40 सेमी पर बने। अर्थात् u = – 25 सेमी (उचित चिह्न सहित) υ = – 40 सेमी (उचित चिह्न सहित)
लेंस के सूत्र
1f = 1υ = 1u से,
1f = 140 – 125
=-140 + 125 = 5+8200 = 3200
या लेंस की फोकस दूरी f = 2003 = 66.7 सेमी
लेंस की क्षमता = 10066.7 = 1.5 डायोप्टर

प्रश्न 11.
वर्णान्धता से आप क्या समझते हैं? (2015)
उत्तर:
नेत्र में यह ऐसा दोष होता है जिसके कारण मनुष्य कुछ निश्चित रंगों में अन्तर नहीं कर पाता। यह दोष एक आनुवंशिक दोष है जो जन्मजात होता है। इसका कोई उपचार नहीं है। जिन व्यक्तियों में यह दोष होता है, वे सामान्यत: देख तो ठीक सकते हैं परन्तु ये विभिन्न रंगों में अन्तर नहीं कर सकते।

प्रश्न 12.
प्रकाश के प्रकीर्णन को समझाइए। किस रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम किसका सबसे अधिक होता है ? (2011, 12, 16, 18)
उत्तर:
जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है जिसमें अति सूक्ष्म आकार के कण (जैसे-धूल व धुएँ के कण, वायु के अणु) विद्यमान हों तो इन कणों के द्वारा प्रकाश का कुछ भाग सभी दिशाओं में फैल जाता है। इस घटना को ‘प्रकाश का प्रकीर्णन’ कहते हैं। प्रयोग द्वारा ज्ञात हुआ है कि लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम तथा बैंगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन ‘सबसे अधिक होता है।

प्रश्ना13.
हीरा क्यों चमकता है ? (2014)
उत्तर:
हीरे से वायु में आने वाली किरण के लिए क्रान्तिक कोण बहुत कम, केवल 24° होता है। अत: जब बाहर का प्रकाश किसी कटे हुए हीरे में प्रवेश करता है तो वह उसके भीतर विभिन्न तलों पर बार-बार पूर्ण परावर्तित होता रहता है। जब किसी तल पर आपतन कोण 24° से कम हो जाता है, तब ही प्रकाश हीरे से बाहर आ पाता है। इस प्रकार हीरे में सभी दिशाओं से प्रवेश करने वाला प्रकाश केवल कुछ ही दिशाओं में हीरे से बाहर निकलता है। अत: इन दिशाओं से देखने पर हीरा अत्यन्त चमकदार दिखाई देता है।

प्रश्न 14.
मरीचिका से क्या तात्पर्य है? (2014)
या रेगिस्तान में मरीचिका दिखाई देती है। कारण स्पष्ट कीजिए। (2016, 17)
उत्तर:
कभी-कभी रेगिस्तान में यात्रियों को दूर से पेड़ के साथ-साथ उसका उल्टा प्रतिबिम्ब भी दिखाई देता है। अतः इन्हें ऐसा भ्रम हो जाता है कि वहाँ कोई जल का तालाब है जिसमें पेड़ का उल्टा प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा है। परन्तु वास्तव में वहाँ तालाब नहीं होता है। जब सूर्य की गर्मी से रेगिस्तान का रेत गर्म होता है ठण्डी वायु – तो उसे छूकर पृथ्वी के पास की वायु अधिक गर्म (सघन) FAR हो जाती है। इससे कुछ ऊपर तक वाय की परतों का ताप लगातार घटता जाता है। अत: वायु की गर्म वायु – नीचे वाली परतें अपेक्षाकृत विरल होती हैं। जब (विरल) पेड़ से प्रकाश-किरणें पृथ्वी की ओर आती हैं तो उन्हें अधिकाधिक विरल परतों से होकर आना पड़ता है, इसलिए प्रत्येक परत पर अपवर्तित किरण अभिलम्ब से दूर हटती जाती है।
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अत: प्रत्येक अगली परत पर आपतन कोण बढ़ता जाता है तथा किसी विशेष परत पर क्रान्तिक कोण से चित्र बड़ा हो जाता है। इस परत पर किरण पूर्ण परावर्तित होकर ऊपर की ओर चलने लगती है। चूँकि ऊपर वाली परतें अधिकाधिक सघन हैं, अत: ऊपर उठती हुई किरण अभिलम्ब की ओर झुकती जाती है। जब यह किरण यात्री की आँख में प्रवेश करती है तो पृथ्वी के नीचे से आती प्रतीत होती है तथा यात्री को पेड़ का उल्टा प्रतिबिम्ब दिखाई देता है।

प्रश्न 15.
सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य लाल क्यों दिखाई देता है ?
उत्तर:
उगते अथवा डूबते सूर्य की किरणें वायुमण्डल में काफी अधिक दूरी तय करके हमारी आँख में पहुँचती हैं। इन किरणों का मार्ग में धूल के कणों तथा वायु के अणुओं द्वारा बहुत अधिक प्रकीर्णन होता है। इस प्रकीर्णन के कारण सूर्य के प्रकाश में से नीली व बैंगनी किरणें निकल जाती हैं, क्योंकि इन किरणों का प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है। अत: आँख में विशेष रूप से शेष लाल किरणें ही पहुँचती हैं जिसके कारण सर्य लाल दिखाई देता है। दोपहर के समय जब सर्य सिर के ऊपर होता है तब किरणें वायुमण्डल में अपेक्षाकृत बहुत कम दूरी तय करती हैं। अतः प्रकीर्णन कम होता है और लगभग सभी रंगों की किरणें आँख तक पहुँच जाती हैं। अत: सूर्य श्वेत दिखाई देता है।

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प्रश्न 16.
पृथ्वी से आकाश का रंग हल्का नीला क्यों दिखाई देता है ? समझाइये। (2013)
या चन्द्रमा से देखने पर आकाश किस रंग का दिखाई देता है? (2017)
उत्तर:
सूर्य से आने वाला प्रकाश, जिसमें अनेक रंग होते हैं, जब वायुमण्डल में को होकर गुजरता है तो वायु के अणुओं एवं धूल के महीन कणों द्वारा इसका प्रकीर्णन होता है। बैंगनी व नीले रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन लाल रंग के प्रकाश की अपेक्षा लगभग 16 गुना अधिक होता है। अत: नीला व बैंगनी प्रकाश चारों ओर बिखर जाता है। यह बिखरा हुआ प्रकाश हमारी आँख में पहुँचता है तथा हमें आकाश नीला दिखाई देता है।

यदि वायुमण्डल न होता (चन्द्रमा पर वायुमण्डल नहीं होता) तो सूर्य के प्रकाश का मार्ग में प्रकीर्णन नहीं होता तथा हमें आकाश काला (dark) दिखाई देता। यही कारण है कि चन्द्रमा के तल से देखने पर आकाश काला दिखाई पड़ता है। अन्तरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी के वायुमण्डल से बाहर पहुँचने पर आकाश काला ही दिखाई देता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव नेत्र के प्रमुख भागों का वर्णन कीजिए। किसी वस्तु का मानव नेत्र से प्रतिबिम्ब बनना किरण आरेख द्वारा स्पष्ट कीजिए। (2010)
या मानव नेत्र का नामांकित चित्र बनाइए तथा रेटिना पर प्रतिबिम्ब का बनना किरण आरेख द्वारा समझाइए। (2010, 11, 12, 17)
या मानव नेत्र का चित्र बनाकर विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव नेत्र एक प्रकार का कैमरा है। इसके द्वारा फोटो कैमरे की भाँति वस्तुओं के वास्तविक प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनते हैं।
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मानव नेत्र का गोलक (Eye-ball) यह लगभग गोलाकार पिण्ड है, जो सामने के भाग को छोड़कर चारों ओर से दृढ़ अपारदर्शी परत से ढका होता है। इसके प्रमुख अवयव निम्नलिखित हैं –
1. दृढ़-पटल तथा रक्तक-पटल (Sclerotic and Choroid) नेत्र-गोलक की बाहरी अपारदर्शी कठोर परत को दृढ़-पटल कहते हैं। यह श्वेत होता है। दृढ़-पटल नेत्र के भीतरी भागों की सुरक्षा करता है। इसके भीतरी पृष्ठ से लगी काले रंग की झिल्ली होती है, जिसे रक्तक-पटल कहते हैं।

2. कॉर्निया (Cornea) नेत्र-गोलक के सामने का भाग कुछ उभरा हुआ तथा पारदर्शी होता है। इसे कॉर्निया कहते हैं। प्रकाश इसी भाग से नेत्र में प्रवेश करता है।

3. आइरिस (Iris) कॉर्निया के पीछे की ओर रंगीन (काली, भूरी अथवा नीली) अपारदर्शी झिल्ली का एक पर्दा होता है; जिसे आइरिस कहते हैं। इसके बीच में एक छिद्र होता है, जिसे पुतली (pupil) कहते हैं। आइरिस का कार्य नेत्र में जाने वाले प्रकाश की मात्रा को नियन्त्रित करना है। अधिक प्रकाश में यह संकुचित होकर पुतली को छोटा कर देती है तथा कम प्रकाश में पुतली को फैला देती है जिससे नेत्र में जाने वाले प्रकाश की मात्रा बढ़ जाती है। नेत्र में यह क्रिया स्वत: होती है।

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4.  नेत्र-लेंस (Eye-lens) पुतली के पीछे पारदर्शी ऊतकों (tissues) का बना द्वि-उत्तल लेंस होता है, जिसके द्वारा बाहरी वस्तुओं का उल्टा, छोटा तथा वास्तविक प्रतिबिम्ब लेंस के पीछे दृश्य-पटल (retina) पर बनता है। लेंस, मांसपेशियों की एक विशेष प्रणाली, जिसे सिलियरी प्रणाली (ciliary system) कहते हैं, द्वारा टिका रहता है। ये पेशियाँ लेंस पर उपयुक्त दाब डालकर उसके पृष्ठों की वक्रता को बढ़ा-घटा सकती हैं, जिससे लेंस की फोकस दूरी कम या अधिक हो जाती है। इन पेशियों द्वारा लेंस पर ठीक उतना दाब पड़ता है कि बाहरी वस्तु का प्रतिबिम्ब दृश्य-पटल पर स्पष्ट बने।

5. दृष्टि-पटल (Retina) नेत्र-गोलक के भीतर पीछे की ओर रक्तक-पटल के ऊपर पारदर्शी झिल्ली दृष्टि-पटल (रेटिना) होती है। इस परदे पर विशेष प्रकार की तन्त्रिकाओं (nerves) के सिरे होते हैं, जिन पर प्रकाश पड़ने से संवेदन उत्पन्न होते हैं। यह संवेदन तन्त्रिकाओं के एक समूह, जिसे दृष्टि-तन्त्रिका (optic nerve) कहते हैं, के द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचते हैं।

6. जलीय द्रव तथा कांचाभ द्रव (Aqueous Humor and Vitreous Humor) कॉर्निया तथा नेत्र-लेंस के बीच के स्थान में जल के समान द्रव भरा होता है, जो अत्यन्त पारदर्शी तथा 1.336 अपवर्तनांक का होता है। इसे जलीय द्रव कहते हैं। इसी प्रकार लेंस के पीछे दृश्य-पटल तक का स्थान एक गाढ़े, पारदर्शी एवं उच्च अपवर्तनांक के द्रव से भरा होता है। इसे कांचाभ द्रव कहते हैं। ये दोनों द्रव प्रकाश के अपवर्तन में लेंस की सहायता करते हैं।

7.  पीत बिन्दु (Yellow Spot) दृष्टि-पटल के मध्य में पीला भाग होता है; जिस पर बना प्रतिबिम्ब बहुत ही स्पष्ट होता है।

8. अन्ध बिन्दु (Blind Spot) दृष्टि-पटल के जिस स्थान को छेदकर दृष्टि तन्त्रिकाएँ मस्तिष्क को जाती हैं; उस स्थान पर पड़ने वाले प्रकाश का दृष्टि-पटल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस स्थान को अन्ध बिन्दु कहते हैं।

मानव नेत्र से प्रतिबिम्ब बनना नेत्र के सामने रखी किसी वस्तु से चली प्रकाश की किरणें कॉर्निया पर गिरती हैं तथा अपवर्तित होकर नेत्र में प्रवेश करती हैं। फिर ये क्रमशः जलीय द्रव, लेंस व कांचाभ द्रव में से होती हुई रेटिना पर गिरती हैं; जहाँ वस्तु का उल्टा प्रतिबिम्ब बनता है। प्रतिबिम्ब बनने का सन्देश दुक तन्त्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क में पहुँचता है; जिससे यह प्रतिबिम्ब अनुभव के आधार पर सीधा दिखायी देता है।
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प्रश्न 2.
प्रिज्म क्या है ? किसी प्रिज्म द्वारा प्रकाश का अपवर्तन समझाइए। या प्रिज्म क्या है? प्रिज्म द्वारा प्रकाश का विचलन समझाइए तथा प्रिज्म के पदार्थ के अपवर्तनांक के लिए व्यंजक लिखिए। (2009)
उत्तर:
प्रिज्म प्रिज्म किसी पारदर्शी माध्यम के उस भाग को कहते हैं जो कि किसी कोण पर झुके हुए दो समतल पृष्ठों के बीच में स्थित होता है। इन पृष्ठों को ‘अपवर्तक पृष्ठ’ तथा इनके बीच के कोण को ‘अपवर्तक कोण’ कहते हैं। दोनों पृष्ठों को मिलाने वाली रेखा को ‘अपवर्तक कोर’ कहते हैं। प्रिज्म द्वारा प्रकाश का विचलन माना कि ABC (देखें चित्र) काँच के एक प्रिज्म का मुख्य-परिच्छेद है। कोण BAC अपवर्तक कोण है तथा वायु के सापेक्ष काँच का अपवर्तनांक ang है। माना कि आपतित । किरण PQ, प्रिज्म के पृष्ठ AB के बिन्दु Q पर गिरती है।

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इस पृष्ठ पर किरण अपवर्तन के पश्चात् Q पर खींचे गये अभिलम्ब की ओर झुक कर QR दिशा में चली जाती है। किरण QR पृष्ठ AC पर अपवर्तन के पश्चात् R पर खींचे P गये अभिलम्ब से दूर हट कर, RS दिशा में बाहर निकलती है। स्पष्ट है कि प्रिज्म, PQ दिशा में आने वाली किरण को RS दिशा में विचलित कर देता है। इस प्रकार यह प्रकाश की दिशा में विचलन (deviation) उत्पन्न कर देता है। आपतित किरण PQ को आगे तथा निर्गत किरण RS को पीछे बढ़ाने पर वे बिन्दु D पर काटती हैं। इन दोनों किरणों के बीच बना कोण δ (डेल्टा) ‘विचलन कोण’ (angle of deviation) कहलाता है।

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यदि हम प्रिज्म पर गिरने वाली किरण के आपतन कोण i को बढ़ाते जाएँ तो विचलन कोण δ का मान घटता जाता है तथा एक विशेष आपतन कोण के लिए विचलन कोण न्यूनतम हो जाता है। आपतन कोण और बढ़ाने पर विचलन कोण फिर बढ़ने लगता है।

इस प्रकार एक, और केवल एक ही, विशेष आपतन कोण के लिए विचलन कोण न्यूनतम होता है। इस न्यूनतम विचलन कोण को ‘अल्पतम विचलन कोण’ (angle of minimum deviation) कहते हैं। यदि किसी प्रिज्म का कोण A तथा किसी रंग की किरण के लिए अल्पतम विचलन कोण δ. हो, तो प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक
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प्रश्न 3.
वर्ण विक्षेपण से क्या तात्पर्य है। उदाहरण देकर समझाइए। (2011, 17)
एक किरण आरेख द्वारा प्रिज्म से श्वेत प्रकाश के विक्षेपण को समझाइए। (2016, 17)
या प्रिज्म में श्वेत प्रकाश के गुजरने पर न्यूनतम व अधिकतम विचलन किन रंगों का होता (2018)
उत्तर:
प्रकाश का विक्षेपण जब सूर्य के प्रकाश की संकीर्ण प्रकाश-पुंज को प्रिज्म के एक फलक पर डाला जाता है, तो प्रिज्म के दूसरे पटल या फलक से निर्गत प्रकाश सात रंगों में विभाजित हो जाता है तथा इसे पर्दे पर लेने पर सात रंगों की एक पट्टी प्राप्त होती है। प्रकाश का इस प्रकार सात रंगों में विभाजित होना प्रकाश का विक्षेपण या वर्ण-विक्षेपण कहलाता है। प्रकाश के विक्षेपण के दौरान पर्दे पर प्राप्त विशेष क्रम में सात रंगों की पट्टी को स्पेक्ट्रम कहते हैं; जिसका अर्थ है रंगों का मिश्रण।

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श्वेत प्रकाश के विक्षेपण के दौरान प्राप्त सात रंगों में एक क्रम होता है जो इस प्रकार है, नीचे से ऊपर की ओर बैंगनी (Violet), जामुनी (Indigo), नीला (Blue), हरा (Green), पीला (Yellow), नारंगी (Orange) तथा लाल (Red)। इन रंगों के क्रम को याद रखने के लिए शब्द ‘VIBGYOR’ को याद रखें; जो इन रंगों के अंग्रेजी भाषा के शब्दों के पहले अक्षर से बना है।

परिक्षेपण का कारण यह है कि विभिन्न रंगों के प्रकाश का अपवर्तन भिन्न-भिन्न होता है। बैंगनी प्रकाश का अपवर्तन (विचलन) सबसे अधिक तथा लाल प्रकाश का अपवर्तन (विचलन) सबसे कम होता है। इसी कारण बैंगनी रंग स्पेक्ट्रम में सबसे नीचे तथा लाल रंग स्पेक्ट्रम में सबसे ऊपर प्राप्त होता है।

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प्रश्न 4.
आवश्यक किरण आरेख खींचकर प्रिज्म की सहायता से पुष्टि कीजिए कि सूर्य का श्वेत प्रकाश विभिन्न रंगों का सम्मिश्रण है। (2016)
उत्तर:
किसी झिरों से आते हुए सूर्य के प्रकाश को यदि किसी प्रिज्म में से गुजारा जाए, तो प्रिज्म के दूसरी ओर रखे पर्दे पर वर्णक्रम (spectrum) प्राप्त होता है। इस वर्णक्रम में प्रिज्म के आधार की ओर से बैंगनी (Violet), जामुनी (Indigo), नीला (Blue), हरा (Green), पीला (Yellow), नारंगी (Orange) और लाल (Red) रंग प्राप्त होते हैं। प्रिज्म द्वारा सूर्य के प्रकाश के स्पेक्ट्रम प्राप्त होने के दो कारण हो सकते हैं –
1. सूर्य का प्रकाश विभिन्न रंगों के प्रकाश से मिलकर बना है। प्रिज्म इन रंगों को अलग-अलग कर देता है।
2. प्रिज्म अपने में से गुजरने वाले प्रकाश को विभिन्न रंगों में रंग देता है। इसके लिए निम्नलिखित प्रयोग करते हैं –

यदि हम एक प्रिज्म पर सूर्य के प्रकाश की पतली किरण डालें तथा पर्दे के स्थान पर वैसा ही दूसरा प्रिज्म उल्टा करके इस प्रकार रखें कि उनके संलग्न फलक समान्तर हों, तो दूसरे प्रिज्म से बाहर निकलने वाला प्रकाश पुनः श्वेत हो जाता है। इस प्रयोग में पहले प्रिज्म द्वारा अलग-अलग किये गये रंगों को दूसरे प्रिज्म ने पुन: जोड़ दिया जिससे श्वेत प्रकाश बन गया। यदि प्रिज्म प्रकाश को रँगता, तो दूसरे प्रिज्म से श्वेत प्रकाश न निकलता बल्कि और रंग निकलते। इससे सिद्ध होता है कि श्वेत प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना है। प्रिज्म श्वेत प्रकाश को केवल अवयवी रंगों में विभक्त कर देता है।
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