अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
होम्योस्टैसिस क्या है? उदाहरण सहित लिखिए। (2010, 16)
उत्तर:
होम्योस्टैसिस या समस्थैतिकता (homeostasis) अन्त:वातावरण की स्थायी नियमित दशा है जो जन्तु के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। यह स्वनियामक होती है तथा शरीर के अन्दर विभिन्न प्रकार के नियमन (regulation), नियन्त्रण (control) तथा समन्वयन (co-ordination) के द्वारा सम्भव होती है। उदाहरणार्थ : रासायनिक समन्वयन व तन्त्रिकीय समन्वयन।
प्रश्न 2.
यदि किसी तन्त्रिका कोशिका के सभी डेन्डॉन्स तथा डेन्डाइट्स काट दिये जायें तो उस जन्तु की दिनचर्या पर क्या प्रभाव पड़ेगा? (2011)
उत्तर:
जन्तु की बाह्य उद्दीपनों के प्रति संवेदना समाप्त हो जायेगी।
प्रश्न 3.
मेरुरज्जु (सुषुम्ना)की गुहा तथा उसमें पाये जाने वाले द्रव का नाम बताइए। (2009)
उत्तर:
मेरुरज्जु की गुहा न्यूरोसील (neurocoel) कहलाती है तथा इसमें सेरेब्रो-स्पाइनल द्रव्य (cerebro-spinal fluid) पाया जाता है।
प्रश्न 4.
एक व्यक्ति के हाथ में आलपिन चुभा दी गई। उसने हाथ झटके से तुरन्त हटा लिया। इस कार्य में कौन-सी घटना घटित हुई? (2011)
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रिया।
प्रश्न 5.
सरल एवं प्रतिबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाओं में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
सरल अर्थात् अननुबन्धित (unconditioned) प्रतिवर्ती क्रियाएँ यकायक होती हैं तथा इनमें कोई पूर्व अनुभव, प्रशिक्षण या सीखने की बात सम्मिलित नहीं होती, जबकि प्रतिबन्धित (conditioned) प्रतिवर्ती क्रियाओं में पूर्व अनुभव, प्रशिक्षण आदि का प्रभाव रहता है।
प्रश्न 6.
ऑक्सिन तथा साइटोकाइनिन के मुख्य कार्य लिखिए। (2017)
उत्तर:
ऑक्सिन पौधों में प्ररोह की कोशिकाओं में दीर्धीकरण प्रेरित करते हैं जबकि साइटोकाइनिन का प्रमुख कार्य कोशिका विभाजन को प्रेरित करना है।
प्रश्न 7.
एथिलीन का पौधों की वृद्धि एवं फल के पकने पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
एथिलीन एक पादप हॉर्मोन के समान कार्य करता है तथा तने (पौधे) के लिए वृद्धि रोधक है किन्तु फलों को पकने में सहायता करता है।
प्रश्न 8.
किस अन्तःस्रावी ग्रन्थि के हॉर्मोन की कमी से घंघा रोग हो जाता है? एक प्रारम्भिक बचाव लिखिए। (2009)
उत्तर:
थाइरॉइड ग्रन्थि के थाइरॉक्सिन नामक हॉर्मोन की कमी से घेघा रोग होता है। इसके बचाव के लिए आयोडीनयुक्त नमक खाना चाहिए।
प्रश्न 9.
इन्सुलिन का क्या महत्त्व है? यह कहाँ बनता है? (2009, 12, 14)
उत्तर:
इन्सुलिन ऊतकों, विशेषकर पेशियों में कार्बोहाइड्रेट्स के उपयोग पर नियन्त्रण करता है। यह यकृत कोशिकाओं में ग्लाइकोजेनेसिस (glycogenesis) का प्रेरक है। यह लिपोजेनेसिस (lipogenesis) का भी प्रेरक है। यह अग्न्याशय की लैंगरहैन्स की द्वीपिकाओं में बनता है।
प्रश्न 10.
मनुष्य में उपापचयी रोग विकार का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2013)
उत्तर:
इस रोग में रुधिर शर्करा का ग्लाइकोजन में परिवर्तन नहीं हो पाता है, जिससे रुधिर में शर्करा (ग्लूकोज) की मात्रा में वृद्धि होती है। यह रोग शरीर में इन्सुलिन निर्माण में कमी होने पर होता है।
प्रश्न 11.
इन्सुलिन के अल्पस्राव से रुधिर में ग्लूकोज की प्रतिशत मात्रा बढ़ जाने वाले रोग का नाम लिखिए। (2011)
उत्तर:
डायबिटीज।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
तन्त्रिका तन्त्र किसे कहते हैं तथा यह कितने प्रकार का होता है? (2017)
उत्तर:
मनुष्य तथा स्तनियों सहित सभी कशेरुकियों में तन्त्रिका तन्त्र विशेष प्रकार के ऊतक, तन्त्रिका ऊतक द्वारा निर्मित होता है। इस ऊतक में अत्यन्त विशिष्ट कोशिकाएँ होती हैं। यह तीन प्रकार का होता है –
- केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र
- परिधीय तन्त्रिका तन्त्र
- स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र
प्रश्न 2.
मेरुरज्जु (सुषुम्ना) की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए। (2017)
या सुषुम्ना की संरचना का वर्णन नामांकित चित्र बनाकर कीजिए। (2013, 15)
या मेरुरज्जु किसे कहते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मस्तिष्क का पश्च भाग लम्बा होकर, खोपड़ी के पश्च छोर पर उपस्थित महारन्ध्र (foramen magnum) से निकलकर, रीढ़ की हड्डी में फैला रहता है। यही मेरुरज्जु या सुषुम्ना (spinal cord) है। रीढ़ की हड्डी के मध्य में एक तन्त्रिका नाल (neural canal) होती है। मेरु रज्जु तन्त्रिका नाल में स्थित रहती है। मेरु रज्जु मस्तिष्क के समान मृदुतानिका (piamater) तथा दृढ़तानिका (duramater) झिल्ली से ढकी रहती है। इन दोनों झिल्लियों के बीच में एक लसदार तरल पदार्थ सेरब्रोस्पाइनल भरा रहता है।
मेरुरज्जु के दो प्रमुख कार्य होते हैं –
- मेरुरज्जु मस्तिष्क से प्राप्त तथा मस्तिष्क को जाने वाले आवेगों के लिए रास्ता प्रदान करता है।
- प्रतिवर्ती क्रियाओं का संचालन एवं नियमन मेरुरज्जु द्वारा ही होता है।
प्रश्न 3.
प्रतिवर्ती क्रिया किसे कहते हैं? प्रतिवर्ती क्रियाओं के कुछ सामोन्य उदाहरण दीजिए। (2017, 18)
उत्तर:
ऐसी अनैच्छिक क्रियाएँ जो अनायास, अविलम्ब, यन्त्रवत् एवं सहज ही घटित होती हैं और सुषुम्ना में संवेदी प्रेरणा पहुँचने पर चालक प्रेरणा के रूप में अपवाहक अंगों द्वारा तुरन्त ही घटित हो जाती हैं, प्रतिवर्ती क्रियाएँ कहलाती हैं। प्रतिवर्ती क्रियाओं के कुछ सामान्य उदाहरण निम्नवत् हैं –
- खाँसना एवं छींकना श्वसन मार्ग में किसी ठोस कण के पहुंचने पर फेफड़ों से मुख के द्वारा तीव्र गति से वायु बाहर निकलती है, जिससे कि अवांछित कण वायु के दबाव से बाहर निकल जायें। तीव्र उच्छ्वास के कारण स्वर पट्टियों में कम्पन्न उत्पन्न होने से खाँसी की ध्वनि उत्पन्न होती है। छींकने में भी ऐसा ही होता है, अन्तर केवल इतना है कि इसमें वायु मुख के स्थान पर नाक से बाहर निकलती है।
- नेत्र प्रतिक्षेप क्रिया किसी वस्तु के अचानक सामने आने पर पलकों का अविलम्ब झपकना नेत्र प्रतिक्षेप क्रिया कहलाता है।
- जानु-झटक प्रतिक्षेप यदि किसी व्यक्ति को स्टूल अथवा मेज पर बैठाकर उसके घुटने के जानुफलक स्नायु (knee-cap tendon) पर थपथपाया जाये तो उसकी टाँग स्वत: ही झटके के साथ उठकर आगे बढ़ जाती है। यह भी एक प्रतिवर्ती क्रिया है।
- लार स्रावण प्रतिवर्ती क्रिया वांछित भोजन के सामने आने पर लार का स्रावण होने लगना एक प्रतिवर्ती क्रिया है।
- अन्य उदाहरण उबासी (yawning) आना, साइकिल चलाना, टाइप करना, नृत्य करना तथा वाद्य संगीत आदि प्रतिवर्ती क्रियाओं के कुछ अन्य सामान्य उदाहरण हैं।
प्रश्न 4.
कृषि में पादप हॉर्मोन्स की भूमिका पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2011)
उत्तर:
आजकल कृषि क्षेत्र में ऑक्सिन्स, जिबरेलिन्स, साइटोकाइनिन्स हॉर्मोन्स का व्यापक उपयोग हो रहा है। ऑक्सिन्स को कलमों में नई जड़ें निकलने, विलगन रोकने, फूलों को झड़ने से रोकने, अनिषेक फल पैदा करने, फलों को अधिक व जल्दी पकाने, फल व बीज संग्रहण आदि में प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 5.
साइटोकाइनिन के मुख्य कार्य लिखिए। (2017)
उत्तर:
1. कोशिका विभाजन साइटोकाइनिन्स ऑक्सिन के साथ स्थायी व जीवित कोशिका में भी विभाजन प्रेरित कर सकते हैं किन्तु ये प्रायः अकेले सक्रिय नहीं होते हैं।
2. कोशिका दीर्घन तथा भिन्नन ये कोशिकाओं में दीर्घन (elongation) को प्रेरित करते हैं। कैलस (callus) में उच्च ऑक्सिन व कम साइटोकाइनिन सान्द्रता से जड़ों के तथा उच्च साइटोकाइनिन व कम ऑक्सिन से प्ररोह के निर्माण का प्रेरण होता है।
3. शीर्ष प्रमुखता का प्रतिरोध शीर्षस्थ कलिका की उपस्थिति में भी पार्श्व कलिकाओं की वृद्धि साइटोकाइनिन की उपस्थिति से सम्भव हो जाती है। इस प्रकार साइटोकाइनिन तथा ऑक्सिन सान्द्रता के सन्तुलन से शीर्ष प्रमुखता नियन्त्रित होती है।
4. प्रकाश संवेदी बीजों का अंकुरण तम्बाकू व सलाद जैसे बीज जिनको अंकुरण के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है, साइटोकाइनिन से उपचारित करने पर अन्धकार में ही उगाये जा सकते हैं। उपर्युक्त के अतिरिक्त खनिजों का एकत्रण, दीप्तिकालिता का प्रतिस्थापन, फ्लोएम में संवहन का नियन्त्रण, प्राथमिक जड़ के दीर्घन का रोधन, जड़ों का प्रेरण, जड़ के व्यास में वृद्धि, वाहिनिकाओं (tracheids) के लिग्नीभवन में वृद्धि आदि भी साइटोकाइनिन से प्रभावित होते हैं। साइटोकाइनिन्स का उपयोग प्रसुप्तावस्था भंग करने में, उच्च ताप तथा रोगों के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ाने आदि में भी किया जाता है।
प्रश्न 6.
गैसीय अवस्था में पाया जाने वाला हॉर्मोन कौन-सा है? तथा इसके मुख्य कार्य क्या हैं? (2015, 16, 18)
या पादप हॉर्मोन एथिलीन के दो प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
गैसीय अवस्था में पाया जाने वाला पादप हॉर्मोन एथिलीन है। इसे फल परिपक्वन हॉर्मोन भी कहा जाता है।
एथिलीन के कार्य –
- एथिलीन फलों को पकाने में महत्त्वपूर्ण होती है।
- इसके प्रभाव से समव्यासी वृद्धि होती है, जिससे आयतन में वृद्धि होती है। इस प्रकार यह तने की लम्बाई में वृद्धि को कम किन्तु मोटाई में अधिक करती है।
- इसके प्रभाव से मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि होती है। कुछ पौधों में ऑक्सिन के समान पुष्पन (flowering) तीव्र होता है। जैसे – अनन्नास (pineapple) में। अन्यथा यह पत्तियों, फलों व पुष्पों के विलगन (abscission) को तेज करता है।
- इसके प्रभाव से पार्श्व कलियों की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है।
- यह कलमों (cuttings) से जड़ की उत्पत्ति, पार्श्व मूलों का निर्माण, मूल रोमों का निर्माण आदि का प्रेरण करता है। उपर्युक्त के अतिरिक्त इसकी अधिक सान्द्रता पुष्पों में निद्रा रोग (sleep disease) उत्पन्न करती है तथा ऑक्सिन के स्थानान्तरण को प्रतिबन्धित करके तने पर गुरुत्वानुवर्तन के प्रभाव को नष्ट कर देती है।
प्रश्न 7.
अन्तःस्रावी ग्रन्थियों या नलिका-विहीन ग्रन्थियों की परिभाषा दीजिए। किन्हीं दो अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों के नाम तथा उनसे स्रावित हॉर्मोन्स के नाम लिखिए। (2011, 12)
या नलिका-विहीन ग्रन्थियों से आप क्या समझते हैं? थाइरॉइड ग्रन्थि का कार्य बताइए। (2013, 17, 18)
या अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ किन्हें कहते हैं? हमारे शरीर में पायी जाने वाली मुख्य अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों के नाम लिखिए। (2015, 17)
उत्तर:
अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ:
हॉर्मोन स्रावित करने वाली ग्रन्थियों को नलिका विहीन ग्रन्थियाँ या अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ कहते हैं, क्योकि इनमें वाहिकाएँ नहीं होती और ये अपना स्राव सीधे रुधिर में छोड़ती हैं। रुधिर के साथ प्रत्येक हॉर्मोन शरीर में विशिष्ट स्थान पर पहुँचकर विशिष्ट परिवर्तन करता है जैसे वृद्धि की दर, गौण लैंगिक लक्षणों का प्रतिलक्षित होना, लैंगिक परिपक्वता आदि।
मानव शरीर में पायी जाने वाली अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ –
मनुष्य के शरीर में पायी जाने वाली प्रमुख अन्त:स्रावी ग्रन्थियाँ निम्नलिखित हैं –
- पीयूष ग्रन्थि (Pituitary gland) यह मस्तिष्क में स्थित होती है। इसके द्वारा स्रावित हॉर्मोन ऑक्सीटोसीन, वैसोप्रेसिन, सोमेटोट्रॉपिक आदि हैं।
- थाइरॉइड ग्रन्थि (Thyroid gland) यह गले में स्थित होती है। इसके द्वारा थायरॉक्सिन हॉर्मोन स्रावित होता है।
- पैराथाइरॉइड ग्रन्थि (Parathyroid gland) यह भी गले में स्थित होती है।
- एड्रीनल ग्रन्थि ( अधिवृक्क) (Adrenal gland) यह उदर में वृक्क के पास स्थित होती है।
- थाइमस ग्रन्थि (Thymus gland) यह वक्ष में स्थित होती है।
- पीनियल काय (Pineal body) यह मस्तिष्क में स्थित होती है।
प्रश्न 8.
जीवों में विभिन्न क्रियाओं का नियमन और नियन्त्रण करने वाले रसायन का नाम बताइए। यह किन ग्रन्थियों में उत्पन्न होता है?
या हॉर्मोन्स क्या होते हैं? (2014)
उत्तर:
हॉर्मोन ऐसे रासायनिक सन्देशवाहक होते हैं जो अन्तःस्रावी ग्रन्थि से सीधे रुधिर में स्रावित होकर सारे शरीर में संचरित होते हैं और इनकी सूक्ष्म मात्रा ही किन्हीं विशिष्ट कोशिकाओं या विशिष्ट अंगों की कोशिकाओं की कार्यिकी को वातावरणीय दशाओं की आवश्यकतानुसार प्रभावित करती है। हॉर्मोन प्राय: स्टेरॉइड्स, प्रोटीन्स अथवा अमीनो अम्ल होते हैं।
प्रश्न 9.
एड्रीनल ग्रन्थि के कॉर्टेक्स भाग से स्रावित हॉर्मोन्स के नाम लिखिए तथा उनके कार्यों का उल्लेख कीजिए। (2012, 17)
उत्तर:
एड्रीनल ग्रन्थि के कॉर्टेक्स भाग से एण्ड्रोजेन्स तथा इस्ट्रोजेन्स हॉर्मोन स्रावित होते हैं। इन हॉर्मोन्स का कार्य पेशियों एवं जननांगों के विकास को प्रेरित करना है।
प्रश्न 10.
मास्टर ग्रन्थि शरीर में कहाँ पायी जाती है? इसका क्या महत्त्व है? (2018)
या पीयूष ग्रन्थि कहाँ पायी जाती है? इसके पिछले पिण्ड से स्त्रावित हॉर्मोन का नाम तथा कार्य बताइए। (2012, 17, 18)
उत्तर:
मास्टर ग्रन्थि अर्थात् पीयूष ग्रन्थि (pituitary gland) अग्र मस्तिष्क के पश्च भाग में डाइएनसिफैलॉन नामक संरचना की निचली सतह पर स्थित होती है। यह शरीर की लगभग समस्त अन्तःस्रावी ग्रन्थियों पर नियन्त्रण रखती है। इसके पश्चभाग से निकलने वाला प्रमुख हॉर्मोन ऑक्सीटोसिन है। यह गर्भावस्था में गर्भाशय की पेशियों के संकुचन को प्रेरित कर प्रसव पीड़ा उत्पन्न करता है, यह दुग्ध ग्रन्थियों से दुग्ध स्रावण में सहायता करता है तथा सम्भोगावस्था में गर्भाशय की भित्ति में संकुचन प्रेरित कर शुक्राणुओं का अण्डवाहिनी तक मार्ग प्रशस्त करता है।
प्रश्न 11.
मनुष्य में पायी जाने वाली किन्हीं चार वाहिका विहीन ग्रन्थियों के नाम तथा उनके कार्य लिखिए। (2014, 15, 17, 18)
या थाइरॉइड ग्रंथि के कार्यों का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
मनुष्य में पायी जाने वाली चार प्रमुख नलिकाविहीन – (अन्तःस्रावी) ग्रन्थियाँ तथा उनके कार्य
प्रश्न 12.
पीयूष ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित किन्हीं चार हॉर्मोन के नाम लिखिए। प्रत्येक के कार्य का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर:
पीयूष ग्रन्थि द्वारा स्रावित चार प्रमुख हॉर्मोन व उनके कार्य इस प्रकार हैं –
1. सोमैटोट्रॉपिक या वृद्धि हॉर्मोन (Growth hormone or GH) यह शरीर की वृद्धि का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रेरक होता है। इसके अल्प स्रावण से व्यक्ति बौना (dwarf) रह जाता है और अति स्रावण से शरीर आनुपातिक भीमकाय हो जाता है।
2. पुटिका प्रेरक हॉर्मोन (FSH) यह पुरुषों में वृषण की शुक्रजनन नलिकाओं की वृद्धि तथा शुक्राणुजनन को प्रेरित करता है। स्त्रियों में यह अण्डाशयों की ग्रैफियन पुटिकाओं की वृद्धि और विकास, अण्डजनन तथा मादा हॉर्मोन्स, एस्ट्रोजेन्स (estrogens) के स्रावण को प्रेरित करता है।
3. थाइरोट्रॉपिक या थाइरॉइड प्रेरक हॉर्मोन्स TSH यह थाइरॉइड ग्रन्थि की वृद्धि एवं स्रावण क्रिया का प्रेरक होता है।
4. ऑक्सीटोसिन (Oxytocin) यह गर्भावस्था में गर्भाशय की पेशियों के संकुचन को प्रेरित कर प्रसव पीड़ा उत्पन्न करता है, दुग्ध ग्रन्थियों से दुग्ध स्रावण में सहायता करता है तथा सम्भोगावस्था में गर्भाशय की भित्ति में संकुचन प्रेरित कर शुक्राणुओं का अण्डवाहिनियों तक मार्ग प्रशस्त करता है।
प्रश्न 13.
अग्न्याशय बहिःस्रावी तथा अंतःस्रावी दोनों प्रकार की ग्रन्थि है। स्पष्ट कीजिए। (2014, 15)
या अग्न्याशय एक अन्तःस्त्रावी ग्रन्थि एवं बहिःस्रावी ग्रन्थि का कार्य करती है। इससे उत्पन्न होने वाले प्रत्येक तरह के स्रावित पदार्थों के नाम लिखिए तथा कार्य भी बताइए।
(2015)
उत्तर:
अग्न्याशय (pancreas) एक संयुक्त ग्रन्थि है। यह पाचन के लिए बहिःस्त्रावी ग्रन्थि (exocrine gland) के रूप में कार्य करती तथा अग्न्याशयिक रस (pancreatic juice) बनाती है। इसके अतिरिक्त यह एक अन्तःस्रावी ग्रन्थि (endocrine gland) है तथा इसमें पाये जाने वाली लैंगरहैन्स की द्वीपिकायें, हॉर्मोन्स (hormones) का स्रावण करती हैं, जो विभिन्न प्रकार से कार्बोहाइड्रेट्स के उपापचय में महत्त्वपूर्ण हैं। स्रावित हॉर्मोन व उनके कार्य –
1. इन्सुलिन (Insulin) इन्सुलिन लाल रुधिर कणिकाओं (RBCs) तथा मस्तिष्क की तन्त्रिका कोशिकाओं के अतिरिक्त शरीर की अन्य सभी कोशिकाओं में ग्लूकोज के प्रति पारगम्यता बढ़ाता है। इसलिये ग्लूकोज रुधिर व ऊतक द्रव्य से शरीर की अन्य कोशिकाओं में जाता रहता है। इससे उपचय (anabolism) क्रिया तथा श्वसन क्रिया बढ़ती है।
2. ग्लूकैगोन (Glucagon) यह यकृत में वसा तथा अमीनो अम्लों का ग्लूकोनियोजेनेसिस (gluconeogenesis) कराता है। यह ग्लाइकोजन तथा अन्य कार्बनिक पदार्थों से ग्लूकोज का निर्माण कराता है।
3. सोमैटोस्टैटिन (Somatostatin) यह पचे हुए भोजन के अवशोषण तथा स्वांगीकरण को बढ़ाता है।
4. पैंक्रिएटिक पॉलीपेप्टाइड (Pancreatic polypeptide) इसका कार्य अभी ज्ञात नहीं हो सका है।
प्रश्न 14.
किसी एक अन्तःस्रावी ग्रन्थि तथा एक बहिःस्रावी ग्रन्थि का नाम तथा प्रत्येक द्वारा स्रावित एक हॉर्मोन का कार्य लिखिए। (2010)
या थाइरॉइड ग्रन्थि से स्रावित हॉर्मोन का नाम बताइए तथा इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर:
यद्यपि कोई भी बहिःस्रावी ग्रन्थि किसी प्रकार का हॉर्मोन स्रावित नहीं करती है, परन्तु बहिःस्त्रावी ग्रन्थि अग्न्याशय (pancreas) के अन्दर उपस्थित लैंगर हैन्स की द्वीपिकायें (islets of langerhans) अन्तःस्रावी ग्रन्थि की तरह कार्य करती हैं और इन्सुलिन (insulin) सहित कई हॉर्मोन्स का स्रावण करती हैं। इन्सुलिन लाल रुधिर कणिकाओं तथा तन्त्रिका कोशिकाओं के अतिरिक्त शरीर की अन्य सभी कोशिकाओं में ग्लूकोज के प्रति पारगम्यता बढ़ाता है।
सभी अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ एक-एक या अधिक संख्या में हॉर्मोन्स स्रावित करती हैं; जैसे-थाइरॉइड (thyroid) से थाइरॉक्सिन (thyroxin) सहित कई हॉर्मोन्स निकलते हैं। थाइरॉक्सिन वृद्धि तथा उपापचय (metabolism) का नियन्त्रण करता है।
प्रश्न 15.
हॉर्मोन तथा विकर क्या होते हैं? इनमें कोई दो अन्तर लिखिए। (2017, 18)
उत्तर:
हॉर्मोन हॉर्मोन्स ऐसे रासायनिक सन्देशवाहक होते हैं जो अन्त: स्रावी ग्रन्थि से सीधे रुधिर में स्रावित होकर सारे शरीर में संचरित होते हैं और इनकी सूक्ष्म मात्रा ही किन्हीं विशिष्ट कोशिकाओं या विशिष्ट अंगों की कोशिकाओं की कार्यिकी को वातावरणीय दशाओं की आवश्यकतानुसार प्रभावित करती है। विकर (एन्जाइम्स) पाचन क्रिया से सम्बन्धित रासायनिक क्रियाओं में कुछ सूक्ष्म मात्रा में पाए जाने वाले पदार्थ विशेष महत्त्व के हैं, जो इन क्रियाओं को उत्तेजित करते हैं तथा चलाते हैं। इन पदार्थों को विकर या एन्जाइम कहते हैं। ये एन्जाइम्स पाचक रसों में होते हैं।
प्रश्न 16.
हॉर्मोन्स तथा एन्जाइम्स में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2009, 10)
उत्तर:
हॉमोन्स तथा एन्जाइम्स में अन्तर –
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रतिवर्ती क्रिया को चित्र की सहायता से समझाइए। इसका क्या महत्त्व है ? (2011, 18)
या प्रतिवर्ती क्रिया किसे कहते हैं? प्रतिवर्ती चाप को नामांकित चित्र बनाकर उदाहरण सहित समझाइए। (2011, 14, 17, 18) या प्रतिवर्ती क्रिया का महत्त्व बताइए तथा सचित्र वर्णन कीजिए। (2014)
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रिया किसी उद्दीपन के फलस्वरूप शीघ्रतापूर्वक होने वाली स्वचालित और अनैच्छिक क्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया कहते हैं। कार्य-विधि प्रतिवर्ती क्रियाएँ जो अनैच्छिक होती हैं और जिन पर मस्तिष्क का किसी भी प्रकार का नियन्त्रण नहीं होता संवेदी प्रेरणा द्वारा सुषुम्ना अथवा मस्तिष्क में पहुँचने पर तुरन्त ही चालक प्रेरणा के रूप में अपवाहक अंगों में स्थानान्तरित हो जाती हैं। इस प्रकार प्रतिवर्ती क्रियाएँ अनायास, अविलम्ब, यन्त्रवत् एवं सहज ही घटित होती हैं। इस प्रकार की क्रियाओं का सर्वप्रथम पता हाल (Hall, 1833) ने लगाया था।
सुषुम्ना से प्रत्येक स्पाइनल तन्त्रिका दो मूलों के रूप में निकलती है –
1. संवेदी तन्तुओं से बना पृष्ठ मूल (dorsal root) तथा
2. चालक तन्तुओं से बना अधर मूल (ventral root)।
संवेदना प्राप्त होने पर आवेग (impulse) की लहर पृष्ठ मूल से होकर पृष्ठ मूल गुच्छक में स्थित न्यूरॉन तथा उसके एक्सॉन में होती हुई सुषुम्ना के धूसर द्रव्य में पहुंचती है। यहाँ से सिनैप्टिक घुण्डियों से होता हुआ आवेग चालक तन्त्रिका कोशिकाओं के डेण्ड्राइट्स में जाता है। अब यह आवेग ज्यों-का-त्यों चालक प्रेरणा बनकर प्रभावी अंग में पहुँचता है। प्रभावी अंगों की पेशियाँ तुरन्त क्रियाशील होकर इन्हें गति प्रदान करती हैं। संवेदांग से लेकर अपवाहक अंग तक के इस प्रकार के आवेग पथ को प्रतिवर्ती चाप (reflex arc) कहा जाता है।
महत्त्व प्रतिवर्ती क्रियाएँ हमारे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। जिनके दो प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं –
1. प्रतिवर्ती क्रियायें सुषुम्ना द्वारा सम्पादित होती हैं, अत: मस्तिष्क (brain) का कार्य भार (बोझ) कम होता है।
2. ये तुरन्त तथा तीव्र गति से होती हैं, अतः सम्भावित दुर्घटना को रोकने में सहायता मिलती है।
प्रश्न 2.
मानव मस्तिष्क का नामांकित चित्र बनाइए तथा संक्षिप्त में वर्णन कीजिए। (2017, 18)
उत्तर:
मनुष्य में मस्तिष्क अत्यन्त विकसित परन्तु अति कोमल अंग होता है। इसका आयतन 1200 cc से 1500 cc होता है। यह मस्तिष्क कोष में सुरक्षित रहता है। मस्तिष्क के चारों ओर झिल्लियों का दोहरा आवरण होता है। दोनों झिल्लियों के बीच में एक तरल पदार्थ भरा रहता है, जो बाहरी आघातों से मस्तिष्क की सुरक्षा करता है। मस्तिष्क के तीन प्रमुख भाग होते हैं – अग्र, मध्य तथा पश्च मस्तिष्क। अग्र मस्तिष्क में घ्राण पिण्ड (olfactory lobes), प्रमस्तिष्क (cerebrum) तथा डाइएनसिफैलॉन (diencephalon) होते हैं।
1. प्रमस्तिष्क (Cerebrum) यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग होता है; यह सम्पूर्ण मस्तिष्क का लगभग 9/10 भाग होता है। प्रमस्तिष्क धूसर पदार्थ (grey matter) तथा श्वेत पदार्थ (white matter) द्वारा निर्मित होता है। प्रमस्तिष्क को एक लम्बी खाँच दायें तथा बायें गोलार्डों में विभक्त करती है। प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध के अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भाग धूसर द्रव्य में ही स्थित होते हैं; जैसे- स्मृति केन्द्र, सोचने-विचारने का केन्द्र आदि। हृदय की गति, भोजन ग्रहण करना, साँस लेना आदि सभी कार्य प्रमस्तिष्क द्वारा संचालित किए जाते हैं।
प्रमस्तिष्क ही घृणा, प्रेम, हर्ष, विषाद, दुःख व भय आदि संवेगों का केन्द्र है। अग्रमस्तिष्क का पिछला भाग डाइएनसिफैलॉन है। इसमें दो प्रमुख भाग होते हैं- थैलेमस तथा हाइपोथैलेमस। थैलेमस दर्द, ठण्डा व गर्म को पहचानने का कार्य करता है जबकि हाइपोथैलेमस भूख, प्यार, घृणा व ताप नियन्त्रण का केन्द्र है। ये वसा तथा कार्बोहाइड्रेट के उपापचय का भी नियन्त्रण करते हैं। अत: डाइनसिफैलॉन ताप नियमन, उपापचय तथा जनन क्रिया, दृक पिण्ड दृष्टि ज्ञान आदि का नियन्त्रण और नियमन करता है। डाइएनसिफैलॉन के हाइपोथैलेमस से पीयूष ग्रन्थि लगी होती है।
2. अनुमस्तिष्क (Cerebellum) यह प्रमस्तिष्क के पिछले भाग में नीचे की ओर स्थित होता है। यह प्रमस्तिष्क से छोटा होता है तथा दो भागों में विभक्त होता है। चलना, कूदना, दौड़ना आदि गति के सभी कार्य अनुमस्तिष्क द्वारा नियन्तित्र होते हैं। शरीर का सन्तुलन (equilibrium) भी इसी से बना रहता है।
3. मस्तिष्क पुच्छ या मेड्यूला ऑब्लांगेटा (Medulla oblongata) यह अनुमस्तिष्क के सामने स्थित होता है तथा मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है। यह बेलनाकार होता है। यह भाग श्वसन तन्त्र, हृदय व परिसंचरण तन्त्र अर्थात् अनैच्छिक क्रियाओं का केन्द्र है।
प्रश्न 3.
पादप हॉर्मोन्स पर टिप्पणी लिखिए। (2012, 14)
या पादप हॉर्मोन्स क्या है? किन्हीं तीन पादप हॉर्मोन्स के नाम तथा कार्यों का उल्लेख कीजिए। (2014, 16)
या पादप हॉर्मोन्स की चार प्रमुख विशेषताएँ बताइए। (2016)
उत्तर:
पादप हॉर्मोन (Plant hormones) पादपों में वृद्धि तथा विकास को नियन्त्रित करने के लिए कुछ विशिष्ट रासायनिक पदार्थ होते हैं जिन्हें पादप हॉर्मोन या वृद्धि नियामक (growth regulators) कहते हैं। पादप हॉर्मोन्स वे जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं जो पेड़-पौधों में निश्चित स्थानों पर बनते हैं तथा संवहन ऊतकों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में संचरित होकर उनकी वृद्धि को नियन्त्रित करते हैं।
पादप हॉर्मोन मुख्यतः विभज्योतक कोशिकाओं और नई उगती पत्तियों एवम् फलों में स्रावित होते हैं। पादप हॉर्मोन्स की मुख्य विशेषताएँ
ये जड़, तना एवं कलिका के शीर्षस्थ विभज्योतक में बनते हैं तथा फ्लोएम में से होकर अन्य अंगों में पहुँचते हैं और सभी भागों में विसरित होकर वृद्धि का नियन्त्रण करते हैं।
- इन्हें पौधों से निष्कासित किया जा सकता है।
- ये पादप वृद्धि तथा वृद्धिरोधन को नियन्त्रित करते हैं।
- सामान्य से कम या अधिक मात्रा में होने पर इनका उल्टा प्रभाव पड़ता है।
- ये कार्बनिक प्रकृति के होते हैं।
- ये अति अल्प मात्रा में ही प्रभावशील होते हैं।
पादप हॉर्मोन्स का वर्गीकरण पादप हॉर्मोन्स को मुख्यत: दो वर्गों में बाँटते हैं –
- वृद्धि प्रवर्धक जो वृद्धि की दर को बढ़ाते हैं। उदाहरण : जिबरेलिन्स, साइटोकाइनिन्स।
- वृद्धि निरोधक जो वृद्धि की दर को कम करते हैं। उदाहरण : एब्सिसिक अम्ल, एथिलीन।
प्रश्न 4.
ऑक्सिन एवं जिबरेलिन हॉर्मोन्स के कार्यों का वर्णन कीजिए। (2013, 17)
या ‘ऑक्सिन्स हमारे लिए लाभदायक हैं।’ इस कथन की पुष्टि कीजिए। (2012)
या दो पादप वृद्धि नियन्त्रक हॉर्मोन्स का नाम बताइए तथा उनके कार्य का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर:
दो पादप वृद्धि हॉर्मोन ऑक्सिन्स व जिबरेलिन्स हैं।
ऑक्सिन्स के प्रभाव तथा उपयोगिता –
1. कोशिका दीर्घन तथा वृद्धि दर पर प्रभाव ऑक्सिन से कोशिका दीर्घन होने के कारण ही तनों तथा फलों के आयतन में वृद्धि होती है। कोशिका दीर्घन ऑक्सिन्स की उपस्थिति में भित्ति दाब घट जाने तथा जल के लिए भित्ति की पारगम्यता बढ़ जाने के कारण परासरणी सान्द्रता बढ़ने से तथा कोशिका भित्ति का लचीलापन (plasticity) बढ़ जाने के कारण होता है।
2. संवहन एधा में कोशिका विभाजन कोशिका विभाजन की दर तथा एधा की मौसमी सक्रियता ऑक्सिन से नियन्त्रित होती है। रोपण (grafting), क्षति (injury) आदि के समय कैलस (callus) का निर्माण इसी के कारण होता है।
3. शीर्ष प्रमुखता अधिकतर पादपों में शीर्ष कलिका की उपस्थिति में पार्श्व कलिकाओं की वृद्धि रुकी रहती है। इस स्थिति को शीर्ष प्रमुखता (apical dorminance) कहते हैं। शीर्ष कलिका को हटाने पर पार्श्व कलिकायें तेजी से बढ़ती हैं। ऐसा माना जाता है कि शीर्ष कलिका में अवरोधक, ऑक्सिन बनते हैं जो नीचे जाकर पार्श्व कलिकाओं की वृद्धि को रोकते हैं।
4. वर्तन गतियाँ एकदिशीय प्रकाश के कारण अन्धकार के क्षेत्र में ऑक्सिन की सान्द्रता अधिक हो जाती है। तनों में अधिक सान्द्रता अधिक वृद्धि प्रेरित करती है, अत: तने प्रकाश की ओर मुड़ जाते हैं अर्थात् धनात्मक प्रकाशानुवर्तन (positive phototropism) प्रदर्शित करते हैं।
दूसरी ओर जड़ों में ऑक्सिन की अधिक सान्द्रता वृद्धि को संदमित करती है, अत: जड़ें प्रकाश के विपरीत मुड़ जाती हैं और ऋणात्मक प्रकाशानुवर्तन (negative phototropism) प्रदर्शित करती इसी प्रकार गुरुत्वाकर्षण के कारण अनुप्रस्थ स्थिति में निचले तल पर ऑक्सिन की सान्द्रता अधिक होने से तने व जड़ में क्रमशः ऋणात्मक एवं धनात्मक गुरुत्वानुवर्तन (geotropism) प्रभावित होता है।
5. मूल प्रेरण यदि कलम को ऑक्सिन में डुबोकर भूमि में लगाया जाये तो जड़ें शीघ्रता से उत्पन्न होती हैं। ऑक्सिन्स पार्श्व मूलों का प्रेरण भी करते हैं।
6. प्रसुप्तावस्था आलू जैसे कन्दों पर ऑक्सिन के छिड़काव से कलियों का अंकुरण रुका रहता है जिससे उनका संग्रहण अधिक समय तक किया जा सकता है।
7. अनिषेकफलन बीज रहित फलों के निर्माण में ऑक्सिन्स का उपयोग होता है। ये अनिषेकफलन (parthenocarpy) प्रेरित करते हैं।
8. खरपतवारनाशक 2, 4-D जैसे ऑक्सिन संकीर्ण पत्ती वाली फसल (एकबीजपत्री) के साथ उगने वाली बड़ी पत्तियों वाली खरपतवार को नष्ट कर देते हैं।
उपर्यक्त के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रक्रिया आदि में ऑक्सिन्स का उपयोग महत्त्वपूर्ण है; जैसे-पक्वनपूर्व फलों की गिरने से रोकथाम, पातन की रोकथाम, फलों को मीठा करने में, लघु शाखाओं के निर्माण में (जैसे-सेब में), फलन का प्रेरण आदि में।
जिबरेलिन्स के प्रभाव तथा उपयोगिता –
1. बोल्टिंग जिबरेलिन पर्वो की कोशिकाओं का दीर्घन करके तनों की लम्बाई बढ़ाता है। द्विवर्षीय पौधों में जिनका तना अत्यन्त हासित होता है अर्थात् पर्वसन्धियाँ अत्यधिक पास-पास होती हैं; जिबरेलिन देने से तेजी से बढ़ने लगता है। इसे बोल्टिंग कहते हैं; जैसे-चुकन्दर (sugar beat) तथा आनुवंशिक बौने पौधे।
2. दीर्घ प्रकाशावधि वाले पौधों में शीघ्र पुष्पन जिबरेलिन के प्रभाव से दीर्घ प्रकाशावधि पादपों; जैसे-हेनबेन (Hyoscyamus niger) में लघु प्रकाशावधि में ही पुष्प उत्पन्न होने लगते हैं जबकि सामान्य अवस्था में दीर्घ प्रकाशावधि में ही पुष्प उत्पन्न होते हैं।
3. बसन्तीकरण का प्रतिस्थापन कुछ द्विवर्षीय पौधों में पुष्पन के लिए शीतकाल के कम तापमान की आवश्यकता होती है, जिबरेलिन के प्रभाव से यह आवश्यकता समाप्त की जा सकती है।
4. प्रसुप्तावस्था को दूर करना आलू के कन्दों (tubers) व शीतकालीन कलिकाओं को जिबरेलिन देने से उनकी प्रसुप्तावस्था टूट जाती है तथा अंकुरण प्रारम्भ हो जाता है।
5. अनिषेकफलन सेब, नाशपाती जैसे फलों में ऑक्सिन की अपेक्षा जिबरेलिन द्वारा अनिषेकफलन अधिक सफलता से कराया जा सकता है। इसी प्रकार अनेक फल; जैसे-अंगूर इनके प्रभाव से बड़े तथा बीज रहित उत्पन्न होते हैं। उपर्युक्त के अतिरिक्त बीजों में शीघ्र अंकुरण, जीर्णता नियन्त्रण, पुष्पों व फलों का परिवर्द्धन आदि में जिबरेलिन उपयोगी हैं।
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