अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
धारा की दिशा बदलने पर परिनालिका की ध्रुवता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
ध्रुवता भी बदल जाती है।
प्रश्न 2.
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक S.I. पद्धति में बताइए। (2011, 16)
उत्तर:
वेबर/मीटर।
प्रश्न 3.
अनन्त लम्बाई के सीधे धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का सूत्र लिखिए। (2012, 14)
उत्तर:
जहाँ एक नियतांक है μ0 जिसे वायु या निर्वात की चुम्बकशीलता कहते हैं।
प्रश्न 4.
एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर लगने वाले बल का सूत्र लिखिए। (2013, 17)
उत्तर:
Bil sin θ; जबकि θ चालक की चुम्बकीय क्षेत्र से दिशा है।
प्रश्न 5.
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेशित कण पर कार्यकारी बल का सूत्र लिखिए। (2014)
उत्तर:
यदि कोई गतिमान आवेशित कण जिसका आवेश q है चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा से कोण θ पर। वेग से गतिमान है तो इस पर लगने वाला बल
F = Bq υ sin θ
प्रश्न 6.
दायें हाथ के अंगूठे का नियम क्या है? (2012, 13)
उत्तर:
यदि हम दायें हाथ में वैद्युत धारा ले जाने वाला तार इस प्रकार पकड़ें कि अँगुलियाँ तार पर लिपटी हों व अँगूठा वैद्युत धारा की दिशा में हो तो लिपटी हुई, अँगुलियों की दिशा चुम्बकीय बल रेखाओं की दिशा होगी।
प्रश्न 7.
चुम्बकीय फ्लक्स का क्या मात्रक है? (2015, 16, 17)
उत्तर:
वेबर या –
प्रश्न 8.
यदि 100 चक्करों की एक तार की कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में 2 सेकण्ड में 15 वेबर की वृद्धि होती है, तो कुण्डली में उत्पन्न विद्युत वाहक बल क्या होगा? (2013, 14, 15, 16)
हल:
दिया है, N = 100, Δt = 2 सेकण्ड, ΔΦ = 15 वेबर, e = ?
∴ कुण्डली में उत्पन्न वि० वा० बल e = N
=
उत्तर:
= 750 वोल्ट
प्रश्न 9.
प्रेरित विद्युत वाहक बल को परिभाषित कीजिए। (2014)
उत्तर:
जब किसी बन्द विद्युत परिपथ से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उस परिपथ में एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है और परिपथ में धारा बहने लगती है यह धारा केवल तभी तक बहती है जब तक कि चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता रहता है। इस उत्पन्न विद्युत वाहक बल को प्रेरित विद्युत वाहक बल कहते हैं।
प्रश्न 10.
लेन्ज का नियम क्या है ? (2009)
उत्तर:
लेन्ज के नियम के अनुसार, प्रेरित विद्युत वाहक बल सदैव उस कारण का विरोध करता है, जिसके द्वारा बल स्वयं उत्पन्न होता है।
प्रश्न 11.
डायनमो का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है।
प्रश्न 12.
घरों में भेजी जाने वाली ए० सी० (प्रत्यावर्ती धारा) किस वोल्टता तथा किस आवृति की होती है?
या घरों में प्रयुक्त विद्युत धारा की आवृत्ति कितनी होती है ?
उत्तर:
220 वोल्ट तथा 50 हर्ट्स की।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
चुम्बकीय बल रेखाओं से क्या तात्पर्य है? चुम्बकीय बल रेखाओं के गुण लिखिए। (2011, 17, 18)
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र में बल-रेखाएँ वे काल्पनिक रेखाएँ हैं जो उस स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा का अविरत प्रदर्शन करती हैं। चुम्बकीय बल-रेखा के किसी भी बिन्दु पर खींची गयी स्पर्श-रेखा उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है। एक समान चुम्बकीय क्षेत्र की बल-रेखाएँ परस्पर समान्तर तथा समदूरस्थ (equidistant) होती हैं। असमान चुम्बकीय क्षेत्र में बल-रेखाओं की सघनता कहीं अधिक व कहीं कम होती है। जिस क्षेत्र में बल-रेखाएँ सघन होती हैं वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता अधिक होती है तथा जिस क्षेत्र में बल-रेखाओं की सघनता कम होती है, वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता कम होती है।
चुम्बकीय बल-रेखाओं के गुण –
- चुम्बकीय बल-रेखाएँ सदैव चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से निकलती हैं तथा वक्र बनाती हुई दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती हैं और चुम्बक के अन्दर से आती हुई पुन: उत्तरी ध्रुव पर वापस आती हैं। इस प्रकार चुम्बकीय बल-रेखाएँ बन्द वक्र के रूप में होती हैं।
- दो बल-रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटतीं। यदि काटतीं, तो कटान-बिन्दु पर दो स्पर्श-रेखाएँ खींची जा सकती थी अर्थात् उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ होती जो कि असम्भव हैं।
- चुम्बक के ध्रुव के समीप जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र प्रबल होता है, वहाँ बल-रेखाएँ पास-पास होती हैं। ध्रुव से दूर जाने पर चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता घटती जाती है तथा बल-रेखाएँ भी परस्पर दूर-दूर होती जाती हैं।
- एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र की बल-रेखाएँ परस्पर समान्तर एवं बराबर-बराबर दूरियों पर होती हैं।
प्रश्न 2.
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता की परिभाषा लिखिए। चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक बल तथा धारा के पदों में लिखिए। (2011, 16, 18)
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता किसी चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता उस बल से व्यक्त की जाती है जो उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् स्थित एकांक लम्बाई के तार में एकांक प्रबलता की धारा प्रवाहित करने पर तार पर कार्य करता है। हम जानते हैं कि किसी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र से 90° का कोण बनाते हुए धारावाही चालक पर लगने वाला बल
F = Bil या B =
जहाँ F बल, B बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता, i चालक में प्रवाहित धारा तथा। चालक की लम्बाई है।
अत: B का मात्रक =
प्रश्न 3.
बायो सेवर्ट नियम क्या है? (2012, 14, 15, 16)
उत्तर:
बायो सेवर्ट ने प्रयोगों के आधार पर धारावाही चालक से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का सूत्र प्राप्त किया। इन प्रयोगों के आधार पर धारावाही चालक के एक छोटे खण्ड A द्वारा किसी बिन्दु P पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र B की तीव्रता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है –
- चालक खण्ड की लम्बाई Δl के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात् B ∝ Δl
- चालक खण्ड में प्रवाहित धारा i के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात् B ∝ i
- चालक खण्ड से बिन्दु की दूरी r के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है अर्थात् B ∝
1r2 - धारा की दिशा तथा बिन्दु के बीच के कोण के ज्या के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात् B ∝ sin θ
प्रश्न 4.
मैक्सवेल के दक्षिणावर्त पेंच का नियम क्या है? किरणे आरेख है। धारा सहित व्याख्या कीजिए। (2011)
उत्तर:
यदि हम पेंच कसते समय पेंचकस को दायें हाथ में पकड़कर इस प्रकार। घुमायें कि पेंच की नोंक धारा बहने की दिशा में चले तो जिस दिशा में पेंच को घुमाने के लिए अंगूठा घूमता है, वही चुम्बकीय बल-रेखाओं की दिशा होगी। चित्र में एक। तार में विद्युत-धारा नीचे से ऊपर की ओर बह रही है। पेंच की नोंक को ऊपर की ओर चलाने के लिए दाहिने हाथ के अंगूठे को वामावर्त दिशा में (ऊपर से देखने पर) चलाना पड़ेगा। यही चुम्बकीय-बल रेखाओं की दिशा होगी।
प्रश्न 5.
समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाला बल किन बातों पर निर्भर करता है? बल की दिशा किस नियम से ज्ञात की जाती है? (2013, 17)
उत्तर:
माना एक एकसमान बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र B में। लम्बाई का एक चालक स्थित है जिसमें। धारा प्रवाहित हो रही है (देखें चित्र)। यदि चालक व चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा के बीच ९ कोण बनता है तो चालक पर लगने वाले बल F का मान –
1. छड़ में प्रवाहित धारा (i) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
F∝ i
2. बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता (B) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
F ∝ B
3. चालक छड़ की लम्बाई के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
F ∝ l
4. चालक की लम्बाई एवं चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के बीच बनने वाले कोण (θ) की ज्या (अर्थात् sin θ) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
F ∝ sin θ
बल की दिशा फ्लेमिंग के बायें हस्त (बायें हाथ) के नियम द्वारा ज्ञात की जाती है।
प्रश्न 6.
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील आवेशित कण पर लगने वाला बल किन-किन कारकों पर निर्भर करता है? इस बल के लिए आवश्यक सूत्र लिखिए। (2017)
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील आवेशित कण पर लगने वाला बल कण के आवेश के परिमाण, चुम्बकीय क्षेत्र के परिमाण, कण के वेग व इसकी गति की दिशा व चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के बीच के कोण पर निर्भर करता है। यदि किसी गतिशील आवेशित कण का आवेश q, वेग। υ है तथा यह B तीव्रता वाले चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा से θ कोण बनाते हुए गति करता है तब इस पर लगने वाला बल
F = Bq υ sinθ
प्रश्न 7.
इलेक्ट्रॉन का आवेश 1.6 x 10-19 कूलॉम है। यह 1000 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र से 30° के कोण पर 5 x 106 मी/से के वेग से गति कर रहा है। इलेक्ट्रॉन पर आरोपित चुम्बकीय बल की गणना कीजिए। (2011, 13, 14, 16)
हल:
प्रश्नानुसार, q = 1.6 x 10-19 कूलॉम,
B = 1000 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर
θ = 30°, υ = 5 x 106 मी/से, F = ?
सूत्र F = Bq υ sin θ से,
आरोपित चुम्बकीय बल (F) = 1000 x 1.6 x 10-19 x 5 x 106 x sin 30°
= 8.0 x 10-10 x
उत्तर:
= 4.0 x 10-10 न्यूटन
प्रश्न 8.
1 मीटर लम्बे विद्युत चालक में 2.0 ऐम्पियर की धारा बह रही है। चालक को 2.5 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर तीव्रता वाले चुम्बकीय क्षेत्र में 30° के कोण पर रखा जाता है। चालक पर लगने वाले चुम्बकीय बल की गणना कीजिए। (2009, 11 12, 14, 15, 16, 17, 18)
हल:
प्रश्नानुसार, i = 2.0 ऐम्पियर, l = 1 मीटर,
B = 2.5 न्यूटन/ ऐम्पियर-मीटर, 0 = 30°, F = ?
सूत्र F = Bil sine से,
बल (F) = 2.5 x 2.0 x 1 x sin 30° = 5 x
उत्तर:
2.5 न्यूटन
प्रश्न 9.
1 मीटर लम्बे तार में कितनी धारा प्रवाहित की जाये कि उसे 1.2 न्यूटन प्रति ऐम्पियर-मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र में लम्बवत् रखने से उस पर 0.128 न्यूटन का बल उत्पन्न हो सके? (2012)
हल:
प्रश्नानुसार, F = 0.128 न्यूटन, l = 1 मीटर,
B = 1.2 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर, θ = 90°
सूत्र F = Bil sin θ से,
उत्तर:
0.11 ऐम्पियर
प्रश्न 10.
1.5 मीटर लम्बे तार में 0.5 ऐम्पियर की धारा बह रही है। यह तार 3.0 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर की तीव्रता वाले समरूप चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् रखा जाता है। उस चालक पर लगने वाले बल की गणना कीजिए। (2014, 15, 17, 18)
हल:
प्रश्नानुसार, 1 = 1.5 मीटर, i = 0.5 ऐम्पियर,
B = 3.0 न्यूटन / ऐम्पियर-मीटर, θ = 90°
F = Bil sin θ से, बल F = 3.0 x 0.5 x 1.5 sin 90°
= 2.25 x 1
उत्तर:
= 2.25 न्यूटन
प्रश्न 11.
चुम्बकीय फ्लक्स से क्या तात्पर्य है? इसका मात्रक बताइए। (2009)
उत्तर:
किसी क्षेत्र के लम्बवत् गुजरने वाली समस्त चुम्बकीय बल – रेखाओं की संख्या को उस क्षेत्र से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं, जिसे से निरूपित किया जाता है। चित्र में चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् एक – तल PQRS रखा हुआ है, जिसका क्षेत्रफल A है। यदि चुम्बकीय क्षेत्र की है तीव्रता B हो, तो PORS में से गुजरने वाला सम्पूर्ण चुम्बकीय फ्लक्स Φ = BA यदि PQRS तल चुम्बकीय क्षेत्र से θ कोण बनाए, तो चुम्बकीय फ्लक्स
Φ = BA cos θ
चुम्बकीय फ्लक्स का मात्रक –
M.K.S. पद्धति में का मात्रक = B का मात्रक x A का मात्रक
∴ चुम्बकीय क्षेत्र B का मात्रक न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर भी होता है। अतः Φ का एक अन्य मात्रक भी होता है।
Φ का मात्रक = B का मात्रक x A का मात्रक
= न्यूटन x मीटर/ऐम्पियर
अतः फ्लक्स + का मात्रक वेबर या न्यूटन x मीटर/ऐम्पियर है।
प्रश्न 12.
एक 0.2 मीटर लम्बे तार में 2 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है। तार के 0.5 मीटर दूर बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिए। (u = 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर)
हल:
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B = img
प्रश्नानुसार,
i = 2 ऐम्पियर, l = 0.2 मीटर, r = 0.5 मीटर, sin 0 = sin 90° = 1
उत्तर:
= 1.6 x 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर
प्रश्न 13.
एक लम्बे सीधे तार में 3.0 ऐम्पियर विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। तार से 50 सेमी दूर स्थित बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता (चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व) ज्ञात कीजिए। (2009, 11, 12, 15, 16, 17)
हल:
प्रश्नानुसार, i = 3.0 ऐम्पियर, r = 50 सेमी = 0.5 मीटर
∴ चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता =
=
=
उत्तर:
= 12 x 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर
प्रश्न 14.
50 फेरों वाली एवं 0.5 मीटर क्षेत्रफल वाली तार की एक कुण्डली को 2 x 10-2 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर के समचुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर कुण्डली से सम्बद्ध फ्लक्स कितना होगा? यदि कुण्डली का तल क्षेत्र के –
1. लम्बवत् हो
2. अनुदिश हो तथा
3. 30° का कोण बनाता है।
हल:
प्रश्नानुसार,
A = 0.5 मी2, B = 2 x 10-2 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर, N = 50
1. जब कुण्डली का तल क्षेत्र के लम्बवत् है, तो θ = 90°
सूत्र Φ = NBA cos θ, से
Φ = NBA cos 90° = 0 (∴ cos 90° = 0)
2. जब कुण्डली का तल क्षेत्र के अनुदिश है तो θ =0°
∴ Φ = NBA cos θ = 50 x 2 x 10-2 x 0.5 x 1 (∴ cos 0° = 1)
उत्तर:
= 0.5 वेबर
3. कुण्डली का तल क्षेत्र से 30° का कोण बनाता है।
Φ = NBA cos θ = 50 x 2 x 10-2 x 0.5 x cos 30°
=
=
उत्तर:
= 0.43 वेबर
प्रश्न 15.
1000 फेरों वाली एक वृत्ताकार कुण्डली 0.32 वेबर प्रति मीटर वाले चुम्बकीय क्षेत्र में स्थापित है। इसे 0.2 सेकण्ड के अन्तराल में क्षेत्र से बाहर कर दिया जाता है। कुण्डली से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन की गणना कीजिए तथा इससे उत्पन्न विद्युत वाहक बल की भी गणना कीजिए। कुण्डली का क्षेत्रफल 0.09 वर्ग मीटर है। (2015, 16)
हल:
कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स क Φ = NBA
जहाँ B = 0.32 वेबर/मी2 तथा A = 0.09 मी2
= 1000 x 0.32 x 0.09 = 28.8 वेबर
∴ चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन = Φ1 – Φ2 = 28.8 – 0 = 28.8 वेबर
(चूँकि कुण्डली चुम्बकीय क्षेत्र से बाहर हो जाती है ∴ Φ2 = 0)
उत्तर:
= 144 वोल्ट
प्रश्न 16.
वैद्युत मोटर व वैद्युत जनित्र के बीच क्या अन्तर है? (2014, 17)
उत्तर:
विद्युत मोटर इस सिद्धान्त पर कार्य करता है कि चुम्बकीय क्षेत्र में रखी कुण्डली में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर कुण्डली पर एक बल-युग्म कार्य करता है; जो कुण्डली को उसकी अक्ष के परित: घुमाने का प्रयास करता है। कुण्डली घूमने के लिए स्वतन्त्र होने के कारण वह घूमने लगती है। मोटर, फ्लेमिंग के वाम-हस्त नियम (Fleming’s left hand rule) पर कार्य करता है। यह विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में बदलता है।
विद्युत जनित्र (डायनमो) का सिद्धान्त यह है कि जब किसी बन्द कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है, तो उसमें से गुजरने वाली फ्लक्स रेखाओं में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, जिसके कारण कुण्डली में एक प्रेरित वि० वा० बल और बाह्य परिपथ व कुण्डली में प्रेरित विद्युत धारा बहती है। जनित्र, फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियम (Fleming’s right hand rule) पर कार्य करता है। यह यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है।
प्रश्न 17.
दिष्टधारा एवं प्रत्यावर्ती धारा में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2017)
उत्तर:
दिष्ट धारा (Direct current) दिष्ट धारा वह वैद्युत धारा है जिसका परिमाण नियत रहता है तथा परिपथ के किसी बिन्दु में को एक ही दिशा में प्रवाहित होती रहती है। प्राथमिक तथा संचायक सेलों द्वारा प्राप्त धारा, दिष्ट धारा ही होती है। प्रत्यावर्ती धारा (Alternating current) प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जिसका परिमाण आवर्त रूप से बदलता रहता है तथा दिशा बार-बार उत्क्रमित होती है रहती है।
वैद्युत जनित्र अथवा डायनमो द्वारा प्राप्त धारा प्रत्यावर्ती धारा ही होती है। यदि प्रत्यावर्ती धारा के परिमाण व समय के बीच ग्राफ खींचे तो वह एक ज्या-वक्र (sine curve) के रूप में आता है (देखें चित्र)। इस वक्र का भाग विद्युत जनित्र की कुण्डली के एक चक्कर को निरूपित करता है। इससे स्पष्ट है कि कुण्डली के प्रत्येक चक्कर में धारा की दिशा दो बार उत्क्रमित होती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर लगने वाले बल का सूत्र प्राप्त कीजिए। (2016) या
यदि कोई धारावाही चालक चुम्बकीय क्षेत्र के –
1. समान्तर
2. लम्बवत्
3. 60°
का कोण बनाते हुए रखा जाये तो चालक पर लगने वाले बल का सूत्र लिखिए। (2011, 13, 14, 15)
उत्तर:
यदि। लम्बाई का धारावाही चालक, जिसमें प्रवाहित धारा। है B चुम्बकीय क्षेत्र में, क्षेत्र से e कोण पर रखा हो तो उस पर लगने वाला बल
F = Bil sin θ
1. चालक, बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर हो इस स्थिति में θ का मान शून्य होने के कारण sin θ का मान शून्य होगा। अतः चालक पर लगने वाला बल शून्य (न्यूनतम) होगा।
2. चालक, बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् हो इस स्थिति में θ का मान 90° होने के कारण sin θ का मान 1 (अधिकतम) होगा। अत: चालक पर लगने वाला बल,
F = Bil sin θ या F = Bil sin 90° या F = Bil x 1 या F = Bil
अतः इस दशा में लगने वाला बल अधिकतम होगा।
3. चालक बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र से 60° का कोण बनाता हो इस स्थिति में θ का मान 60° होने के कारण sin θ का मान
प्रश्न 2.
एक इलेक्ट्रॉन 1200 न्यूटन प्रति ऐम्पियर-मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र में 2 x 104 मीटर प्रति सेकण्ड के वेग से प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन पर लगने वाले बल के परिमाण की गणना कीजिए, यदि वह –
1. क्षेत्र के लम्बवत्
2. क्षेत्र के समान्तर
3. क्षेत्र से 30° का कोण बनाते हुए प्रवेश करे (2016, 18)
(इलेक्ट्रॉन का आवेश = 1.6 x 10-19 कूलॉम)
हल:
चुम्बकीय क्षेत्र B में υ वेग से गतिमान आवेशित कण पर लगने वाला बल = q uB sin θ
जहाँ q कण का आवेश तथा θ चुम्बकीय क्षेत्र B व आवेशित कण के वेग के बीच कोण है।
यहाँ q =1.6 x 10-19 कूलाम, y =2 x 104 मी/सेकण्ड, B = 1200 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर
1. यदि θ = 90° (क्षेत्र के लम्बवत्)
तो अभीष्ट बल F =1.9 x 10-19 x 2 x 104x 1200 x sin 90°
= 4560 x 10-15 x 1 (∴ sin 90° = 1)
= 4.56 x 10-12 न्यूटन
2. यदि θ = 0° (क्षेत्र के समान्तर)
तो अभीष्ट बल F = q vB sinθ = 0 (∴ sin θ = 0)
3. यदि θ = 30°
तो अभीष्ट बल F = 1.9 x 10-19 x 2 x 104 x 1200 . sin 30°
= 4.56 x 10-12 x
उत्तर:
= 2.28 x 10-12 न्यूटन
प्रश्न 3.
एक इलेक्ट्रॉन जिसका द्रव्यमान 9x 10-31 किग्रा व आवेश – 1.6 x 10-19 कूलॉम है, x-अक्ष के समान्तर 3 x 106 मी/से के वेग से गति करता हुआ z – अक्ष के समान्तर कार्यरत 0.3 वेबर/मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र में प्रवेश करता है। उस पर कार्य करने वाले बल, त्वरण एवं त्वरण की दिशा ज्ञात कीजिए
(2013, 17)
हल:
दिया है,
q = 1.6 x 10-19 कूलॉम,
υ = 3x 106 मी/से,
B = 0.3 वेबर/मी2
F = ?
तथा θ = 90°
लारेंज बल के सूत्र F = B qυ sin θ से,
इलेक्ट्रॉन पर बल F = 0.3 x 1.6 x 10-19 x 3 x 106 x sin 90°
1.44 x 10-13 न्यूटन। (∴ sin 90° = 1)
तथा बल की दिशा इलेक्ट्रॉन की गति की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र दोनों की दिशा के लम्बवत् Y – अक्ष की दिशा में होगी। पुन: F = 1.44 x 10-13 न्यूटन, m = 9 x 10-31 किग्रा
∴ सूत्र F =ma से,
उत्पन्न त्वरण =
=
उत्तर:
= 1.6 x 1017 मी/से2
प्रश्न 4.
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण से क्या तात्पर्य है? प्रयोग द्वारा इसे कैसे प्रदर्शित करेंगे? (2014, 16, 17)
उत्तर:
जब किसी बन्द विद्युत परिपथ से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है, तो उस परिपथ में एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है और परिपथ में धारा बहने लगती है। यह धारा केवल तभी तक बहती है; जब तक कि चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता रहता है। इस क्रिया को वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण, उत्पन्न विद्युत वाहक बल को प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा उत्पन्न धारा को प्रेरित विद्युत धारा कहते हैं।
चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी फैराडे का प्रयोग विद्युत चुम्बकीय प्रेरण को निम्नलिखित प्रयोग द्वारा दिखाया जा सकता है प्रयोग पृथक्कित ताँबे के तार की गत्ते के खोखले बेलन पर एक कुण्डली बनाकर धागमापी से जोड़ देते हैं। यदि किसी चुम्बक का उत्तरी ध्रुव कुण्डली की ओर को तेजी से ले जाया जाता है, तो धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है |चित्र (a)]। जब इस चुम्बक को वापस कुण्डली से दूर हटाते हैं; तब भी धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है, परन्तु वह पिछले विक्षेप से विपरीत दिशा में होता है [चित्र (b)]।
यदि इसी कुण्डली की ओर चुम्बक का दक्षिणी ध्रुव लाया जाए या दूर हटाया जाए, तो भी धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है; परन्तु यह विक्षेप चित्र (a) व (b) वाली दिशा की अपेक्षा विपरीत दिशा में होता है [चित्र (c) तथा (d)] धारामापी में विक्षेप तभी तक होता है; जब तक चुम्बक व कुण्डली में आपेक्षिक गति होती है। दोनों के स्थिर रहने या दोनों के समान वेग से एक दिशा में चलने पर धारामापी में विक्षेप नहीं होता है। चुम्बक को जितनी तेजी से चलाया जाता है धारामापी में विक्षेप उतना ही अधिक होता है तथा यदि कुण्डली में फेरों की संख्या बढ़ा दी जाए, तो धारामापी में विक्षेप बढ़ जाता है।
नोट:
उपर्युक्त चित्रों में चुम्बक के दोनों ध्रुव दिखाने के स्थान पर एक ही ध्रुव दिखाया गया है। इस प्रयोग से स्पष्ट है कि धारामापी वाले परिपथ में सेल न होने पर भी धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है, जिससे विद्युत चुम्बकीय प्रेरण का प्रदर्शन होता है।
प्रश्न 5.
फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम लिखिए। प्रेरित विद्युत धारा की दिशा ज्ञात करने के सम्बन्ध में फ्लेमिंग का नियम लिखिए। (2012, 14, 15, 16, 18)
या फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियमों की व्याख्या कीजिए। प्रेरित धारा की दिशा कैसे ज्ञात की जाती है? (2012, 16, 18)
या फैराड़े के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम बताइए तथा प्रेरित विद्युत वाहक बल का सत्र लिखिए। (2009, 11)
या फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम लिखिए। (2015, 16)
उत्तर:
फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी दो नियम निम्नवत हैं –
प्रथम नियम “जब किसी बन्द कुण्डली (coil) में से होकर जाने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं (चुम्बकीय फ्लक्स) में परिवर्तन होता है, तो उस कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है; जो केवल उसी समय तक रहता है, जब तक चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता रहता है।” द्वितीय नियम “किसी कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल का परिमाण कुण्डली में होकर जाने वाली बल रेखाओं की संख्या (चुम्बकीय फ्लक्स) के परिवर्तन की दर के अनुक्रमानुपाती होता है।” यदि किसी कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स का मान Φ1 व बहुत कम समयान्तर Δt के बाद उसमें से गुजरने वाले
चुम्बकीय फ्लक्स का मान Φ1 हो, तो
कुण्डली में फ्लक्स के परिवर्तन की दर =
अतः प्रेरित विद्युत वाहक बल (e) =
अथवा e = K
जहाँ K एक नियतांक है। यदि K = 1 तो, e =
प्रेरित धारा की दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियम से ज्ञात की जाती है।
फ्लेमिंग के दायें हाथ का नियम यदि किसी चालक को चुम्बकीय क्षेत्र चुम्बकीय क्षेत्र में गति करायें, तो उसमें प्रेरित विद्युत वाहक बल की दिशा 90° उत्पन्न हो जाता है और यदि परिपथ बन्द हो, तो परिपथ में – प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है; जिसकी दिशा को 90° फ्लेमिंग के दाएँ हाथ वाले नियम से ज्ञात किया जा सकता है। प्रेरित धारा ! की दिशा RAM इस नियम के अनुसार, “यदि हम अपने दाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा अंगुली तथा अँगूठे को एक-दूसरे के लम्बवत् फैलाकर रखें और यदि तर्जनी अंगुली चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा, अंगूठा चालक की गति की दिशा में संकेत करे, तो मध्यमा अँगुली प्रेरित विद्युत धारा की दिशा प्रदर्शित करेगी (देखें चित्र)।
प्रश्न 6.
दिष्ट धारा जनित्र की क्रिया-विधि का सचित्र वर्णन करें। इसकी रचना एवं सिद्धान्त का भी उल्लेख करें। (2013, 17)
या दिष्ट धारा जनित्र का सिद्धान्त स्पष्ट कीजिए तथा इसकी संरचना व कार्य-प्रणाली दिष्ट धारा जा का सचित्र वर्णन कीजिए। (2009, 12, 13, 14, 16, 17, 18)
उत्तर:
दिष्ट धारा जनित्र की संरचना इसमें निम्नलिखित तीन भाग होते हैं –
1. क्षेत्र चुम्बक (Field magnets) N-S एक शक्तिशाली चुम्बक के ध्रुव खण्ड (Pole pieces) हैं। इस चुम्बक का कार्य एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करना है, जिसमें कुण्डली घूमती है।
2. आर्मेचर कुण्डली (Armature Coil) यह एक कच्चे लोहे के बेलन पर ताँबे के पृथक्कित तार के बहुत से चक्करों को लपेटकर बनायी जाती है। N-S
3. विभक्त वलय तथा बुश (Split rings and bushes) विभक्त वलय ताँबे के खोखले बेलन को लम्बाई के अनुदिश काटकर बनाए जाते हैं। कुण्डली के ऊपर लिपटे तार का एक सिरा एक विभक्त वलय S1 तथा दूसरा सिरा दूसरे विभक्त वलय S2 से जोड़ दिया जाता है।
S1 व S2 को कार्बन के दो बुश B1 तथा B2 लगातार छूते रहते हैं तथा इसका सम्बन्ध बाह्य परिपथ से रहता है। सिद्धान्त सिद्धान्त के लिए ‘अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर’ के प्रश्न 16 का उत्तर (सिद्धान्त) देखें।
कार्य-विधि (Working):
चित्र में ABCD एक कुण्डली है, जो दक्षिणावर्त दिशा में घुमायी जा रही है। कुण्डली के घूर्णन के कारण उससे गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है, जिससे कुण्डली में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण से प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है। कुण्डली में धारा की दिशा फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम से ज्ञात की जा सकती है। कुण्डली चित्र में दिखायी स्थिति (कुण्डली की क्षैतिज स्थिति) से आधा चक्कर पूरा करने तक बाह्य परिपथ में धारा की दिशा B2 से B1की ओर रहती है।
आधा चक्कर पूरा होने पर धारा की दिशा उलट जाती है। उसके बाद कुण्डली के घूर्णन के कारण S1 धनात्मक तथा S2 ऋणात्मक हो जाता है, परन्तु उसी समय S1 का सम्बन्ध B2 से तथा S2 का सम्बन्ध B1 से हो जाता है। अत: B2 धनात्मक तथा B1 ऋणात्मक ही रहते हैं तथा बाहरी परिपथ में धारा B2 से B1 की ओर ही प्रवाहित होती है। इस प्रकार बाह्य परिपथ में कुण्डली के पूरे चक्कर में धारा सदैव एक ही दिशा में बहती रहती है। इस प्रकार डायनमो से प्राप्त धारा के लिए यदि विद्युत वाहक बल तथा कुण्डली के घूर्णन कोण के बीच ग्राफ खींचा जाए, तो वह चित्र की आकृति का होता है।
इस प्रकार के डायनमो से प्राप्त विद्युत वाहक बल तथा प्रेरित धारा समान दिशा की अवश्य होती है, परन्तु उसका मान विभिन्न घूर्णन कोणों पर एक समान नहीं होता है या हम यह भी कह सकते हैं कि धारा या विद्युत वाहक बल का मान समय के साथ बदलता रहता है, स्थिर नहीं रहता। इस दोष को दूर करने के लिए विभिन्न तलों में विभिन्न कुण्डलियाँ बनाते हैं। उनसे प्राप्त विद्युत वाहक बल या धारा का मान समय के साथ बदलता नहीं है, अर्थात् स्थिर विद्युत वाहक बल प्राप्त होता है।
0 Comments