अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लोकतंत्र की बहाली के लिए किस देश में सप्तदलीय गठबंधन तैयार किया गया था?
उत्तर-
नेपाल में।

प्रश्न 2.
सूचना के अधिकार के लिए सर्वप्रथम कहाँ और कब आवाज उठाई गई थी?
उत्तर-
राजस्थान के भीम तहशील में, 1990 में।

प्रश्न 3.
दलित पैंथर्स नामक संगठन कहाँ स्थापित किया गया था?
उत्तर-
महाराष्ट्र में।

प्रश्न 4.
जनसंघर्ष के रूप में राजनीतिक आंदोलन के उदाहरण दें। ..
उत्तर-
जनसंघर्ष के रूप में राजनीतिक आंदोलन के उदाहरण हैं-चिली में सैनिक तानाशाही के विरुद्ध राजनीतिक आंदोलन, नेपाल में राजशाही के विरुद्ध आंदोलन, पोलैंड में एकल दल की तानाशाही के विरुद्ध जनसंघर्ष तथा म्यांमार में सैनिक शासन के विरुद्ध चल रहा जनसंघर्ष इत्यादि।

प्रश्न 5.
जन संघर्ष के रूप में सुधारवादी आंदोलन के उदाहरण प्रस्तुत करें।
उत्तर-
जनसंघर्ष के रूप में सुधारवादी आंदोलन के उदाहरण हैं- महाराष्ट्र में दलित पैंथर्स का आंदोलन, भारतीय किसान यूनियन का आंदोलन, आंध्र प्रदेश में महिलाओं द्वारा चलाया गया ताड़ी विरोधी आंदोलन।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दबाव समूह किसे कहते हैं ? इसके उदाहरण दें।
उत्तर-
दबाव समूह का लक्ष्य सत्ता पर प्रत्यक्ष नियंत्रण करने अथवा सत्ता में भागीदारी करने से नहीं होता। जब कभी जनसंघर्ष या आंदोलन होता है तब राजनीतिक दलों के साथ-साथ दबाव-समूह भी उसमें सम्मिलित हो जाते हैं और वे संघर्षकारी समूह बन जाते हैं। दबाव समूह किसी आंदोलन का समर्थन किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए करते हैं। उद्देश्य की पूर्ति के बाद उनका सत्ता से कोई लेना-देना नहीं होता। दबाव समूह के उदाहरणों में 1974 की संपूर्ण क्रांति नेपाल में सात राजनीतिक दल, किसान, मजदूर व्यवसायियों शिक्षक अभियंता के समूह , बोलिविया में फोडेकोर इत्यादि दबाव समूह के उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
दबाव समूह तथा राजनीतिक दल में मुख्य अंतर बताएँ।
उत्तर-
राजनीतिक दल एवं दबाव समूह में सबसे बड़ा अंतर यह है कि राजनीतिक दल का – उद्देश्य सत्ता में परिवर्तन लाकर उसपर आधिपत्य करना होता है, वहीं दबाव समूह का लक्ष्य सत्ता पर प्रत्यक्ष नियंत्रण करने अथवा सत्ता में भागीदारी नहीं होता। दबाव समूह किसी आंदोलन का समर्थन किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए करते हैं। उद्देश्य की पूर्ति के बाद उनका सत्ता से कोई लेना-देना नहीं होता। इसके विपरीत राजनीतिक दल उद्देश्य की पूर्ति के बाद सत्ता पर नियंत्रण भी करना चाहते हैं।

प्रश्न 3.
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में हित समूहों की उपयोगिता पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में हित समूहों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। दबाव समूह या हित समूहों की निम्नलिखित मुख्य उपयोगिताएँ हैं

  • सरकार को सजग बनाए रखना दबाव समूह विभिन्न तरीकों से सरकार का ध्यान जनता की उचित माँगों की ओर दिलाकर एक सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसके लिए हित समूह जनता का समर्थन और सहानुभूति भी प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
  • आंदोलन को सफल बनाना- लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में कई तरह के जनआंदोलन चलते रहते हैं हित समूह या दबाव समूह ऐसे आंदोलनों को सफल बनाने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
  • दबाव समूह और उनके द्वारा चलाए गए आंदोलनों से लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत
    हुई हैं। लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में हित समूह बाधक नहीं है, बल्कि सहायक होती हैं।

प्रश्न 4.
हित समूह या दबाव समूह राजनीतिक दलों पर किस प्रकार प्रभाव डालते हैं।
उत्तर-
दबाव समूह सक्रिय राजनीति में हिस्सा नहीं लेते, परंतु अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए राजनीतिक दलों पर भी प्रभाव डालते हैं। प्रत्येक आंदोलन का राजनीतिक पक्ष अवश्य होता है जिसके कारण दबाव समूह एवं राजनीतिक दलों के बीच प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संबंध अवश्य स्थापित हो जाता है। कभी-कभी राजनीतिक दल ही सरकार को प्रभावित करने के उद्देश्य से दबाव समूहों का गठन कर डालते हैं। ऐसे समूहों का नेतृत्व भी राजनीतिक दल ही.करने लगते हैं। ऐसे. दबाव समूह उस राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में काम करने लगते हैं।

प्रश्न 5.
जन संघर्ष का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
जन संघर्ष का अर्थ जनता द्वारा कुछ निश्चित बातों या वस्तुओं से संतुष्ट नहीं रहने पर सत्ता के विरुद्ध किया जानेवाला संघर्ष है। जनसंघर्ष अथवा जन आंदोलन का अर्थ “वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध अपनी असंतुष्टि तथा असहमति को अभिव्यक्त करना है।” यह जनसंघर्ष का नकारात्मक अर्थ है। लेकिन साकारात्मक अर्थ में सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में अनेक विकृतियाँ उत्पन्न होती रहती हैं। इन विकृतियों को दूर करने के उद्देश्य से जो जन संघर्ष अथवा आंदोलन होते हैं उसे जन संघर्ष का सकारात्मक पक्ष कहा जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतंत्र में जनसंघर्ष की उपयोगिता पर प्रकाश डालें
उत्तर-
विभिन्न देशों में जनसंघर्ष की विवेचना से यह स्पष्ट है कि लोकतंत्र में इसकी अनेक उपयोगिताएँ हैं जिनमें कुछ निम्नलिखित महत्वपूर्ण उपयोगिता हैं-

  • लोकतंत्र के विस्तार में सहायक-जनसंघर्ष की सबसे बड़ी उपयोगिता यह है कि यह लोकतंत्र की स्थापना और उसकी वापसी में तो सहायक होता ही है, लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था में लोकतंत्र के विस्तार में भी सहायक होता है। जनसंघर्ष के माध्यम से लोकतंत्र ये भागीदारी प्राप्त करनेवालों को भी सफलता मिलती है। इससे लोकतंत्र का विस्तार होता है तथा लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत होती हैं।
  • लामबंदी और संगठन को बल-जनसंघर्ष लोगों की लामबंदी और उन्हें संगठित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जनसंघर्ष की सफलता इसीपर निर्भर करती है।
  • विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों को सक्रिय करने में सहायक- जनसंघर्ष होने पर विभिन्न संगठनों तथा राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ जाती है। अनेक दबाव एवं हित समूह इसमें सम्मिलित होकर जनसंघर्ष को सफल बना देते हैं।

प्रश्न 2.
नेपाल में लोकतंत्र की वापसी का सविस्तार वर्णन करें।
उत्तर-
नेपाल में लोकतंत्र की वापसी के लिए व्यापक जनसंघर्ष हुआ। नेपाल में इक्कीसवीं शताब्दी के पूर्व ही लोकतंत्र की स्थापना हो चुकी थी। नेपाल के पूर्ववर्ती राजा वीरेन्द्र विक्रम सिंह ने नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के मार्ग प्रशस्त कर दिया था और स्वयं को औपचारिक रूप . से राज्य का प्रधान बनाए रखा। परंतु दुर्भाग्यवश उनकी हत्या कर दी गई। ज्ञानेन्द्र नेपाल के नए राजा बने जिनका लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था में विश्वास नहीं था। उन्होंने 2002 में संसद को भंगकर पूर्ण राजशाही की घोषणा कर दी। 2005 में राजा ज्ञानेंद्र ने जनता के द्वारा निर्वाचितं सरकार को भंग करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री शेखबहादुर देउबा को अपदस्थ कर दिया। देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। इतना ही नहीं अपने अधीन नए मंत्रिमंडल का गठन करते हुए तीन वर्ष तक सभी अधिकार अपने हाथ में लेने की भी घोषणा कर दी।

राजा ज्ञानेन्द्र के इस फैसले के खिलाफ नेपाल में लोकतंत्र की वापसी के लिए देश के प्रमुख राजनीतिक दलों ने आपस में समझौता कर सात दलों के गठबंधन की स्थापना कर ली। आगे चलकर माओवादी आंदोलनकारी जो राजशाही के विरुद्ध पहले से सक्रिय थे इस गठबंधन में शामिल हो गए। नेपाल में लोकतंत्र की वहाली के लिए राजनीतिक शक्तियों के एकजुट हो जाने . से जनता के बीच एक नया संदेश गया। जनता खुलकर लोकतंत्र की वापसी के लिए आंदोलन जो 6 अप्रैल 2006 से सात राजनीतिक दलों के गठबंधन द्वारा चलाया गया था के साथ जुड़ गई। इस प्रकार यह आंदोलन जनसंघर्ष में बदल गया। राजशाही के विरुद्ध जनता के आक्रोश के जनसैलाब के आगे सजशाही को झुकना पड़ा। 24 अप्रैल, 2006 के दिन नेपाल नरेश ज्ञानेन्द्र नेnसंसद को बहाल कर सत्ता सात राजनीतिक दलों के गठबंधन को सौंपने की घोषणा कर दी। इस . प्रकार नेपाल में लोकतंत्र की वापसी के साथ जनसंघर्ष का अंत हो गया।

प्रश्न 3.
भारत में 1974 के संघर्ष का वर्णन करें।
उत्तर-
जनसंघर्ष सिर्फ लोकतंत्र की स्थापना अथवा वापसी के लिए ही नहीं होता है, बल्कि एक लोकतांत्रिक और निर्वाचित सरकार को जनता की मांग मानने के लिए बाध्य करने के उद्देश्य से भी होता है। कुछ जनसंघर्ष ऐसे भी हैं जो एक निर्वाचित सरकार को बदलने के उद्देश्य से भी होते हैं। भारत में 1974 का जनसंघर्ष इसका ज्वलंत उदाहरण है। 1974 के जनसंघर्ष की पृष्ठभूमि बिहार में तत्कालीन सरकार के विरुद्ध छात्र आंदोलन से तैयार हुई। उसके बाद केन्द्र की काँग्रेसी सरकार की गलत नीतियों के कारण विभिन्न राजनीतिक दलों ने विकल्प की तलाश शुरू कर दी। 14 अप्रैल 1974 को दिल्ली में तत्काल काँग्रेस के बीजू पटनायक के निवास स्थान पर भारतीय क्रांति दल के चौधरी चरण सिंह की अध्यक्षता में आठ गैर-काँग्रेसी राजनीतिक दलों के विलय का निर्णय लिया गया। इसके ठीक एक दिन पहले 13 अप्रैल को दिल्ली के गाँधी शांति प्रतिष्ठान में ‘जनतंत्र समाज’ का गठन किया गया जिसमें जयप्रकाश नारायण और आचार्य कृपलानी की सक्रियता अधिक देखी गयी।

धीरे-धीरे तत्कालीन काँग्रेसी सरकार के विरुद्ध लोग संगठित होते गए और संपूर्ण देश में आंदोलन प्रारंभ हो गया। यह आंदोलन जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस आंदोलन को जनता का अपार समर्थन मिला। इस प्रकार इसने जनसंघर्ष का रूप धारण कर लिया। जनता पार्टी का गठन हुआ। आंदोलन को दबाने का भरसक प्रयास किया गया, परंतु यह जनसंघर्ष दबने की जगह उग्र रूप लेता गया। सरकार को राष्ट्रीय आपात की घोषणा करनी पड़ी। 1977 में देश में आम निर्वाचन हुआ तो जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला और केन्द्र में पहली बार मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व में गैर-काँग्रेसी सरकार का गठन हुआ।

प्रश्न 4.
जनसंघर्ष में राजनीतिक दलों एवं दबाव-समूहों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकतंत्र में जनसंघर्ष तभी सफल होता है जब इसका संचालन किसी संगठन द्वारा किया जाता है। नेपाल में सांत राजनीतिक दलों के गठबंधन तथा माओवादियों के सहयोग से जनसंघर्ष सफल हुआ। म्यांमार में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी नामक राजनीतिक दल की नेत्री आंग सान सूची के नेतृत्व में लोकतंत्र की वापसी का जनसंघर्ष जारी है। बोलिविया में फेडेकोर (FEDECOR) नामक संगठन के नेतृत्व में जनसंघर्ष चला जिसे किसानों, मजदूरों छात्र संघों और सोशलिस्ट पार्टी नामक राजनीतिक दल का भी समर्थन प्राप्त था। भारत में भी 1974 के जयप्रकाश’ । नारायण के जन आंदोलन को छात्रों, वकीलों, शिक्षकों इत्यादि के संघों के समर्थन के साथ-साथ जनतंत्र समाज जैसी गैर-राजनीतिक संस्था एवं विभिन्न राजनीतिक दलों का भी समर्थन प्राप्त था। इससे यह स्पष्ट होता है कि विभिन्न संगठनों अथवा विभिन्न वर्गों के संघों के माध्यम से आंदोलन करके सरकार को अपनी मांग मानने के लिए बाध्य किया जाता है। इसे दबाव-समूह के नाम से जाना जाता है। इन दबाव समूहों से जनसंघर्ष को तो सफल बनाया ही जाता है, नागरिकों की भी सत्ता में भागीदारी बढ़ जाती है।

दबाव समूहों की भूमिका भी जनसंघर्ष में काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। दबाव समूहों द्वारा ही सरकार की नीतियों को प्रभावित किया जाता है और जनता की मांगों को सरकार से मानने के लिए भी दबाव डाला जाता है। विभिन्न पेशे में लगे लोग जैसे वकील शिक्षक, डॉक्टर, अभियंता, सरकारी कर्मचारी अपने-अपने.हितों की रक्षा के लिए जब संघ बनाते हैं तो उसे हित-समूह कहा जाता है। जब ऐसे समूह द्वारा अपने पक्ष में सरकार को निर्णय करने के लिए बाह्य किया जाता है तब हित समूह दबाव समूह के रूप में कार्य करने लगते हैं। आधुनिक युग में राजनीतिक दल विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ हो जाते हैं। अतः राजनीतिक दलों के साथ-साथ अनेक हित-समूहों का भी विकास हो जाता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि जनसंघर्ष में राजनीतिक दलों के साथ-साथ दबाव-समूहों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है।