Bihar Board Class 10 History लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी Notes

  • लोकतांत्रिक राज्य में केवल भाषा और क्षेत्र की विविधता ही नहीं होती है, वरन ग धर्म जाति संप्रदाय लिंग जैसे विभेद भी अवश्य देखने को मिलते हैं।
  • लोकतांत्रिक राज्यों में जनता के बीच विभिन्नताओं असमानताओं तथा विभेदों के रहते हुए भी उनके बीच तालमेल स्थापित किया जाता है।
  • लोकतंत्र सैद्धांतिक रूप से समानता पर आधृत शासन-पद्धति है।
  • विभिन्न लोकतांत्रिक पद्धतियों में विरोधाभास के उदाहरण भी मिलते हैं जिसे विद्वानों ने लोकतंत्र में इंद्व की भी संज्ञा दी है।
  • लोकतंत्र में विविधता तथा विभिन्नताओं के कारण सामाजिक विभाजन की संभावना बनी रहती है।
  • सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति के कारणों में जन्म सबसे बड़ा कारण होता है। जन्म के अतिरिक्त व्यक्तिगत विभेद तथा व्यक्तिगत पसंद के कारण भी सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति होती है।
  • सामाजिक विभेद ही सामाजिक विभाजन और सामाजिक संघर्ष के लिए मूलरूप से उत्तरदायी है।
  • विविधता कभी-कभी सामाजिक एकता को बनाए रखने में भी सहायक होता है।
  • सामाजिक विभेद हमेशा सामाजिक विभाजन का कारण बने, यह आवश्यक नहीं है।
  • भिन्न-भिन्न जाति के लोग भी समान धर्म में आस्था रखते हुए सामाजिक विभेद को मिटाने में सहायक होते हैं।
  • लोकतंत्र में विविधता स्वामित्व है, परंतु विविधता में एकता भी लोकतंत्र का ही एक गुण है।
  • सामाजिक विभेद लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक भी है। धर्म धन क्षेत्र भाषा जाति संप्रदाय के नाम पर आपस में उलझना लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर बना डालता है। इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।
  • जब तक विविधताएँ एक सीमा में रहती है तब तक कोई परेशानी नहीं होती है, परंतु जब विविधताएँ सीमा का उल्लंघन करने लगती है तब सामाजिक विभाजन अवश्यभावी हो जाता है और आपसी संघर्ष में वृद्धि हो जाती है।
  • जब सामाजिक विभेद अन्य विभेदों से अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है तब स्वाभाविक रूप से सामाजिक विभाजन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • विभिन्नताओं में टकराव की स्थिति लोकतानिक व्यवस्था के लिए घातक है।
  • सामाजिक विभेदों का लोकतांत्रिक राजनीति पर प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता है। विभिन्न राजनीतिक दलों का गठन भी सामाजिक विभेदों के आधार पर होता है। उत्तरी आयरलैंड में नेशनलिस्ट पार्टियाँ तथा युनियननिष्ट पार्टियों का गठन प्रोटेस्टेंटो और कैथोलिको का प्रतिनिधित्व करने के लिए हुआ है। विभिन्न राजनीतिक दल अपनी प्रतिदिता का आधार भासामाजिक विभेद को बना लेते हैं।
  • जब सामाजिक विभेद सजनीतिक विभेद में परिवर्तित हो जाता है तब देश का विखंडन अवश्यभावी हो जाता है। यूगोस्लाविया इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
  • सामाजिक विभेदों की राजनीति के अच्छे परिणाम भी देखने को मिलते हैं। अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक विभेद और राजनीतिक में अटूट संबंध देखने को मिलता है।
  • सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम तीन बातों पर निर्भर करते हैं- स्वयं की पहचान की चेतना, समाज के विभिन्न समुदायों की मांग को राजनीतिक दलों द्वारा उपस्थित करने का तरीका तथा सरकार की मांगों के प्रति सोच।
  • सामाजिक विभेदों की राजनीति का हमेशा गलत परिणाम होगा, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। सच तो यह है कि सामाजिक विभेदों की राजनीति लोकतंत्र को सशक्त करने में सहायक होता है।
  • सामाजिक विभेदों की राजनीति से लोकतांत्रिक व्यवस्था में संघर्ष और हिंसा की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है, परंतु इसपर काबू करने का प्रयास भी होता रहता है।
  • सामाजिक विभेद की राजनीति का परिणाम अच्छा ही हो, इसके लिए शासन को कुछ सावधानियां बरतने की आवश्यकता है।