Bihar Board Class 10 History व्यापार और भूमंडलीकरण Subjective Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रेशम माग कहाँ से आरंभ होता था?
उत्तर-
रेशम मार्ग का आरंभ चीन से होता था।

प्रश्न 2.
गुलामी प्रथा का प्रचलन किस देश में था?
उत्तर-
गुलामी प्रथा का प्रचलन इंगलैंड, जर्मनी एवं फ्रांस में था।

प्रश्न 3.
कॉर्न लॉ किस देश में पारित किया गया था ?
उत्तर-
कॉर्न लॉ को ब्रिटेन में पारित किया गया था।

प्रश्न 4.
अमेरिका में वृहत उत्पादन व्यवस्था किसने आरंभ की?
उत्तर-
हेनरी फोर्ड ने अमेरिका में वृहत उत्पादन व्यवस्था को आरंभ किया।

प्रश्न 5.
गिरमिटिया मजदूर किस देश से ले जाए जाते थे ?
उत्तर-
गिरमिटिया मजदूर भारत से ले जाए जाते थे।

प्रश्न 6.
अमेरिका के उपनिवेशीकरण में किसका महत्वपूर्ण योगदान था?
उत्तर-
अमेरिका के उपनिवेशीकरण में इंगलैंड का महत्वपूर्ण योगदान था।

प्रश्न 7.
अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय किन तीन प्रवाहों पर आधृत है ?
उत्तर-
अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय तीन प्रवाहों पर आधारित हैं वे हैं व्यापार, श्रम एवं पूंजी।

प्रश्न 8.
गिरमिटिया मजदूर कौन थे?
उत्तर-
औपनिवेशिक देशों के ऐसे मजदूर जिन्हें एक निश्चित समझौता द्वारा निश्चित समय के लिए अपने शासित क्षेत्रों में ले जाया जाता था, गिरमिटिया मजदूर कहलाते थे

प्रश्न 9.
ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में स्थापित दो वित्तीय संस्थाओं के नाम लिखें।
उत्तर-
ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में स्थापित दो वित्तीय संस्थाओं के नाम हैं-

  1. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं
  2. विश्व बैंक।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
साधारण शब्दों में वैश्वीकरण का अर्थ है अपनी अर्थव्यवस्था और विश्व अर्थव्यवस्था में सामंजस्य स्थापित करना। इसके अंतर्गत अनेक विदेशी उत्पाद अपना सामान और सेवाएं बेच सकते हैं। इसी प्रकार हम अपने देश से निर्मित माल और सेवाएँ दूसरे देशों में बेच सकते हैं। इस प्रकार वैश्वीकरण के कारण विभिन्न देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक-दुसरे से परस्पर रूप में निर्भर हते हैं।

प्रश्न 2.
भारत के सूती वस्त्र उद्योग में गिरावट के क्या कारण थे?
उत्तर-
18वीं शताब्दी तक भारतीय सूती कपड़े की मांग सारे विश्व में थी, परंतु 19वीं शताब्दी के आते-आते इस में गिरावट आती गयी जिसके निम्नलिखित प्रमुख कारण थे।

  • भारतीय सूती कपड़े के उद्योग की गिरावट का सबसे मुख्य कारण इंगलैंड की औद्योगिक क्रांति थी जिसके कारण अब उसने भारत से सूती कपड़े का आयात बंद कर दिया था।
  • औपनिवेशिक सरकार भारतीय बाजारों में ब्रिटिश निर्मित सूती वस्त्रों की भरमार कर  दी जो भारतीय वस्त्र के मुकाबले काफी सस्ते होते थे।
  • अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी काफी कम कीमत में भारतीय कपास या रूई खरीदकर इंगलैंड भेज देती थी। जिससे भारतीय निर्माताओं को अच्छी कपास मिलना मुश्किल हो गया। तथा
  • भारतीय सूती कपड़े के निर्यात पर काफी कर लगा दिए गए।

प्रश्न 3.
सत्रहवीं शताब्दी के पूर्व होनेवाले आदान-प्रदान का एक उदाहरण एशिया से और एक अमेरिका से दें।
उत्तर-
विभिन्न देशों के संपर्क का एक अन्य महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि खाने-पीने की वस्तुएँ एक देश से दूसरे देश में जाने लगी। व्यापारी और यात्री अपने देश का सामान ले जाते थे और विदेशों की विशिष्ट वस्तुओं को अपने यहाँ लाते थे। नूइल्स के विषय में विद्वानों का मानना है कि यह चीनी मूल का था और वहाँ से ही यह पश्चिमी जगत में पहुँचा। क्रिस्टोफर कोलम्बस अमेरिका से आलु, सोया, मूंगफली, मक्का, टमाटर इत्यादि अपने साथ यूरोप ले गया जहाँ से वे एशिया आए।

प्रश्न 4.
ब्रिटेन में कॉन लॉ समाप्त करने के क्या कारण थे? इसके क्या परिणाम हुए ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी से ब्रिटेन की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई जिसके कारण खाद्यान्न की मांग बढ़ने लगी। शहरों के विकास और औद्योगीकरण ने भी खाद्यान्नों की मांग बढ़ा दी। खाद्यानों की बढ़ती मांग ने कृषि उत्पादों की मांग में तेजी ला दी। इससे कृषि उत्पादों का मूल्य बढ़ गया। इसका लाभ बड़े कृषकों एवं भूस्वामियों ने उठाया। अपने उत्पादों को बेचने के लिए इन दोनों ने सरकार पर दबाव डालकर ब्रिटेन में कॉर्न लॉ द्वारा मक्का के आयात को प्रतिबंधित करवा दिया। फलतः इंगलैंड में भू-स्वामी कृषि उत्पादों को ऊंची कीमत पर बेचकर लाभ कमाने लगे। दूसरी ओर अनाज की बढ़ी कीमतों से उद्योगपति और शहरों में रहने वाले लोग त्रस्त हो गए। इन लोगों ने कॉर्न लॉ का जबर्दस्त विरोध किया और इसे वापस लेने की मांग की। सरकार को बाध्य होकर कॉर्न लॉ को समाप्त करना पड़ा तथा खाद्यान्न के आयात की अनुमति देनी पड़ी।

प्रश्न 5.
न्यू डील से आप क्या समझते हैं ? इसे क्यों लागू किया गया?
उत्तर-
आर्थिक महामंदी के प्रभावों को समाप्त करने एवं उसे नियंत्रित करने के उद्देश्य से 1932 में अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट ने नई आर्थिक नीति अपनाई। इसे न्यू डील का नाम दिया गया। इस नई नीति के अनुसार जनकल्याण की व्यापक योजना के अंतर्गत आर्थिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक नीतियों को नियमित करने का प्रयास किया गया। नई योजना का उद्देश्य कृषि और उद्योग में संतुलन स्थापित करना तथा मानव समान और स्वाधीनता को सुरक्षित रखना था। जनकल्याण की नीति के अंतर्गत परिवहन के साधनों तथा स्थानीय विकास कार्यों के लिए . आर्थिक सहायता दी गयी जिससे रोजगार के लिए नए अवसर उपलब्ध हो सके। औद्योगिक क्षेत्र में व्यापक और उत्पादन में नियमन का प्रयास किया गया। श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि की गयी उनके काम के घंटे भी नियत किए गए। किसानों की क्रयशक्ति को बढ़ाने.तथा उनकी सामान्र ।
आर्थिक स्थिति को युद्ध के पूर्व की स्थिति तक ले जाने का प्रयास किया गया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय के तीन प्रवाहों का उल्लेख करें। भारत से संबद्ध तीनों प्रवाहों का उदाहरण दें।
उत्तर-
9वीं शताब्दी से नई विश्व अर्थव्यवस्था का विकास हुआ। इसमें आर्थिक विनिमयों की प्रमुख भूमिका थी। अर्थशास्त्रियों के अनुसार आर्थिक विनिमय तीन प्रकार के प्रवाहों पर आधारित है वे हैं-(i) व्यापार, (ii) श्रम तथा (ii) पूंजी। 19वीं सदी से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का तेजी से विकास हुआ। परंतु यह व्यापार मुख्यतः कपड़ा और गेहूँ जैसे खाद्यानों तक ही सीमित थे। दूसरा प्रवाह श्रम का था। इसके अंतर्गत रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में लोग एक स्थान या देश से दूसरे स्थान और देश की जाने लगे। इसी प्रकार कम अथवा अधिक अवधि के लिए दूर-दूर के क्षेत्रों में पूँजी निवेश किया गया। विनिमय के ये तीनों प्रवाह एक-दूसरे से जुड़े हुए थे, यद्यपि कभी-कभी ये संबंध टूटते भी थे। इसके बावजूद अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में इन  तीनों प्रवाहों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

भारत से संबंधित तीनों प्रवाह का उदाहरण इस प्रकार हैं –

भारत से श्रम का प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय बाजार की माँग के अनुरूप उत्पादन बढ़ाने के लिए 19वीं शताब्दी से श्रम का प्रवाह भारत से दूसरे देशों की ओर हुआ। इन श्रमिकों को गिरमिटिया श्रमिक कहा जाता था क्योंकि इन्हें विदेशों में काम करने के लिए एक अनुबंध के तहत ले जाया गया।

वैश्विक बाजार में भारतीय पूंजीपति विश्व बाजार के लिए बड़े स्तर पर कृषि उत्पादों के लिए पूँजी की आवश्यकता थी। बागान मालिक बैंक और बाजार से अपने लिए पूँजी की व्यवस्था कर लेते थे परंतु असली कठिनाई छोटे किसानों की थी। अतः उन्हें साहूकारों और महाजनों की शरण में जाना पड़ा जो ऊँची सूद की दर पर किसानों को पूँजी उपलब्ध कराते थे। इससे महाजनी और साहूकारी का व्यवसाय चल निकला।

भारतीय व्यापार इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के पूर्व इंगलैंड को भारत से सूती वस्त्र और महीन कपास का निर्यात बड़ी मात्रा में किया जाता था। इसी बीच कृषि के विकास होने से ब्रिटेन में कपास का उत्पादन बढ़ गया साथ ही सरकार ने भारतीय सूती वस्त्र पर इंगलैंड में भारी आयात शुल्क लगा दिया। इसका असरं भारतीय निर्यात पर पड़ा। संती वस्त्र एवं कपास का निर्यात घट गया। दूसरी ओर मैनचेस्टर में बने वस्त्र का आयात भारत में बढ़ गया।

प्रश्न 2.
कैरीबियाई क्षेत्र में काम करनेवाले गिरमिटिया मजदूरों की जिंदगी पर प्रकाश डालें। अपनी पहचान बनाए रखने के लिए उन लोगों ने क्या किया ?
उत्तर-
गिरमिटिया मजदूर ऐसे मजदूरों को कहा जाता था जिन्हें विदेशों में काम करने के लिए एक अनुबंध अथवा एग्रीमेंट के अंतर्गत ले जाया गया। इन मजदूरों को कृषि, खाद्यानों, सड़क और रेल निर्माण कार्यों में लगाया गया। भारत से अधिकांश अनुबंधित श्रमिक पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और तमिलनाडु से ले जाए गए। भारत से श्रमिक मुख्यतः कैरीबियाई द्वीप समूह में स्थित त्रिनिदाद गुयाना, और सूरीनाम ले जाए गए। बहुतेरे जमैका, मॉरीशस एवं फिजी भी ले जाए गए। हालाकि ब्रिटिश सरकार ने 1921 में गिरिमिटिया श्रमिकों की व्यवस्था समाप्त कर दी।

इस प्रथा के समाप्त होने के बाद भी दशकों तक अनुबंधित मजदूरों के वंशज कैरीबियाई द्वीप समूह में कष्टदायक और अपमानपूर्ण जीवन व्यतीत करने को विवश किए गए। गिरमिटिया मजदूर सुखी-संपन्न जीवन की उम्मीद में अपना घर द्वार छोड़कर काम करने जाते थे लेकिन कार्य स्थल पर पहुँचकर उनका स्वप्न भंग हो जाता था। बागानों अथवा अन्य कार्यस्थलों पर उनका जीवन कष्टदायक था। उन्हें एक प्रकार की दासता की जंजीरों में जकड़ दिया गया था। इस स्थिति से ऊबकर अनेक मजदूर काम छोड़कर भागने का प्रयास करते थे परंतु मालिक के चंगुल से बच निकलना आसान नहीं था। पकड़े जाने पर उन्हें कठोर दंड दिया जाता था।

इस स्थिति स रहते हुए आप्रवासी भारतीयों ने जीवन की राह ढूँढी जिससे वे सहजता से नए परिवेश में खप सकें। इसके लिए उन लोगों ने अपनी मूल संस्कृति के तत्वों तथा नए स्थान के सांस्कृतिक तत्वों का सम्मिश्रण कर एक नई संस्कृति का विकास कर लिया। इसके द्वारा उन लोगों ने अपनी व्यक्तिगत और सामूहिक पहचान बनाए रखने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए त्रिनिदाद में गिरमिटिया श्रमिकों ने वार्षिक मुहर्रम के जुलूस को एक भव्य उत्सव और मेले के रूप में परिवर्तित कर दिया।

इस मेले का नाम उन लोगों ने ‘होसे मेला रखा। यह मेला सांप्रदायिक एकता और सद्भावना का प्रतीक बन गया। इसमें त्रिनिदाद में रहने वाले सभी धर्मों और नस्लों के श्रमिक भाग लेते थे। इसी प्रकार त्रिनिदाद और गुयाना में विख्यात ‘चटनी म्यूजिक’ में भी स्थानीय और भारतीय संगीत के तत्वों का मिश्रण कर आप्रवासी भारतीयों ने इसे बनाया। इस प्रकार आप्रवासी भारतीयों ने कैरीबियाई द्वीप समूह के सांस्कृतिक तत्वों को अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखते हुए भी आत्मसात करने का प्रयास किया।

प्रश्न 3.
आर्थिक महामंदी के कारणों की व्याख्या करें? भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
1929 ई. की आर्थिक महामंदी के निम्नलिखित कारण थे
(i) बुनियादी कारण-1929 के आर्थिक संकट का बुनियादी कारण स्वयं इस अर्थव्यवस्था के स्वरूप में ही समाहित था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का विस्तार हुआ तो दूसरी तरफ अधिकांश जनता गरीबी और अभाव में पिसती रही। नवीन तकनीकी प्रगति के कारण उत्पादन में तो भारी वृद्धि हुई लेनिन उत्पादित वस्तुओं के खरीदार बहुत कम थे।

(ii) कृषि उत्पादन एवं खाद्यानों के मूल में कमी-बढ़े हुए कृषि उत्पाद के खरीदार नहीं मिलने के कारण कृषि उत्पादों की कीमतें काफी गिर गयी जिससे किसानों की आय घट गयी। प्रमुख अर्थशास्त्री काडलिफ ने अपनी पुस्तक “दि कॉमर्स ऑफ नेशन” में लिखा कि विश्व के सभी भागों में कृषि उत्पादन एवं खाद्यानों के मूल की विकृति 1929-32 के आर्थिक संकटों के प्रमुख कारण थे।

(iii) यूरोपीय देशों के बीच संकुट-प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप के बहुत सारे देशों में अपनी तबाह हो चुकी अर्थव्यवस्था को नए सिरे से विकसित करने के लिए अमेरिका से कर्ज लिया। अमेरिकी पूँजीपतियों ने कर्ज तो दिए लेकिन जब अमेरिका में घरेलु संक्रट के संकेत मिले तो वे कर्ज वापस माँगने लगे। इस परिस्थिति से यूरोपीय देशों के बीच गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया। परिणामस्वरूप यूरोप के कई बैंक डूब गये तथा कई देशों के मुद्रा मुल्य गिर गया।

(iv) सट्टेबाजी की प्रवृत्ति- इन उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त अमेरिकी बाजारों में शुरू हुआ सट्टेबाजी की प्रवृत्ति भी आर्थिक मंदी में निर्णायक भूकिा निभाई। प्रथम महायुद्ध के पश्चात् अमेरिका की आर्थिक समृद्धि में वृद्धि के परिणामस्वरूप वहाँ के पूँजीपति अतिरिक्त पूँजी को सट्टा ।। लगाने की ओर आकर्षित हुए। शुरू में तो काफी लाभ हुआ बाद में संकट उभरकर सामने आ गया।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव-आर्थिक मंदी का प्रभाव विश्वव्यापी था। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। भारत पर आर्थिक मंदी के निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

(i) व्यापार में गिरावट-महामंदी के पूर्व वैश्विक अर्थव्यवस्था में आयातक और निर्यातक के रूप में भारत की महत्वपूर्ण भागीदारी थी। महामंदी का प्रभाव इस आयात-निर्यात व्यापार पर पड़ा। यह काफी घट गया। 1928-34 के मध्य आयात-निर्यात घटकर आधा रह गया।

(ii) कृषि उत्पादों के मूल्य में कमी-विश्व बाजार में कृषि उत्पादों के मूल्य में कमी आने के पश्चात भारतीय कृषि उत्पादों के मूल्य में भी गिरावट आई। 1928-1934 के मध्य गेहूँ की कीमत में 50 प्रतिशत की कमी आई।

(iii) किसानों की दयनीय स्थिति-महामंदी का सबसे बुरा प्रभाव किसानों पर पड़ा। मूल्य में कमी आने तथा बिक्री कम हो जाने से उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय बन गई। वे लगान चुकाने में असमर्थ हो गए लेकिन सरकार ने न तो लगान की राशि घटाई और न ही लगान माफ की। जिससे किसानों में असंतोष की भावना बढ़ी। इसी आर्थि संकट के कारण महात्मा गांधी ने भारत में व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया।

प्रश्न 4.
ब्रिटेन वुड्स समझौता की व्याख्या करें।
उत्तर-
दो महायुद्धों के बीच आर्थिक अनुभवों से सीख लेकर अर्थशास्त्रियों और राजनेताओं ने आर्थिक व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के लिए दो उपाय सुझाव ये थे- (i) आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक सरकारी हस्तक्षेप तथा (ii) अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों को सुनिश्चित करने में सरकार की भूमिका। इसे कार्यान्वित करने की प्रक्रिया पर विचार-विमर्श करने के लिए जुलाई 1944 में अमेरिका के न्यू हैम्पशायर में बबन वुड्स नामक स्थान पर एक सम्मेलन आयोजित किया गया। विचार-विमर्श करने के बाद दो संस्थाओं का गठन किया गया। इनमें पहला अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) था और दूसरा अंतराष्ट्रीय पुनर्निमाण एवं विकास बैंक अथवा विश्व बैंक (World Bank)। इन दोनों संस्थानों को ‘ब्रेटन वुड्स ट्विन’ या ‘क्रेटनवुड्स की जुड़वाँ संतान’ कहा गया।

आई. एम. एफ. ने अंतराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था और राष्ट्रीय मुद्राओं तथा मौद्रिक व्यवस्थाओं को जोड़ने की व्यवस्था की। इसमें राष्ट्रीय मुद्राओं के विनिमय की दर अमेरिकी मुंद्रा ‘डॉलर’ के मूल्य पर निर्धारित की गयी। डॉलर का मूल्य भी सोने के मूल्य से जुड़ा हुआ था। विश्व बैंक चने विकसित देशों को पुनर्निर्माण के लिए कर्ज के रूप में पूँजी उपलब्ध कराने की व्यवस्था की। इसी आधार पर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को नियमित करने का प्रयास किया गया। ब्रेटनवुड्स संस्थानों ने औपचारिक रूप से 1947 से काम करना आरंभ कर दिया। इन संस्थानों के निर्णयों पर पश्चिमी औद्योगिक देशों का नियंत्रण स्थापित किया गया। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को अई. एम. एफ. और विश्व बैंक के किसी भी निर्णय पर निषेधाधिकार (वीटो) प्रदान किया गया।