Bihar Board Class 10 History अर्थव्यवस्था और आजीविका Subjective Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
फ्लाईंग शटल का आविष्कार किसने किया ?
उत्तर-
जॉन के।

प्रश्न 2.
वाष्पचालित रेल इंजन का आविष्कार किसने किया?
उत्तर-
जॉर्ज स्टीफेंशन ने।

प्रश्न 3.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने गुमाश्तों को क्यों बहाल किया ?
उत्तर-
बुनकरों पर नियंत्रण रखने के लिए।

प्रश्न 4.
जमशेदपुर में पहला लौह इस्पात संयंत्र किसने स्थापित किया ?
उत्तर-
जे. एन. टाटा ने (1912)।

प्रश्न 5.
आदि औद्योगीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
यूरोप और इंगलैंड में कारखानों में उत्पादन होने के पूर्व की स्थिति को आदि-औद्योगीकरण कहते हैं।

प्रश्न 6.
चार्टर एक्ट का भारतीय व्यापार पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
चार्टर एक्ट (1813) के द्वारा भारतीय व्यापार पर से ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 7.
कलकत्ता में पहली जूट मिल किसने स्थापित की।
उत्तर-
हुकुम चन्द ने।

प्रश्न 8.
उत्पादन अपने उत्पादों का प्रचार करने के लिए कौन साधन अपनाते थे?
उत्तर-
उत्पादक अपने उत्पादों का प्रचार करने के लिए अपने सामानों पर लेबल लगाते थे। लेबलों से उत्पाद की गुणवत्ता स्पष्ट होती थी। 19वीं सदी के अंतिम चरण से उत्पादकों ने अपने-अपने उत्पाद के प्रचार के लिए आकर्षक कैलेंडर छपवाने आरंभ किए।

प्रश्न 9.
वर्तमान समय में भारत में कितने स्टील प्लांट हैं ? ।
उत्तर-
वर्तमान समय में भारत में 7 स्टील प्लांट कार्यरत हैं।

प्रश्न 10.
पहली देशी जूट मिल कहाँ स्थापित हुई ?
उत्तर-
पहली जूट मिल बंगाल के रिशरा नामक स्थान में 1855 में खोली गई।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
जॉबर कौन थे ?
उत्तर-
कारखानों तथा मिलों में मजदूरों और कामगारों की नियुक्ति का माध्यम जॉबर होते थे। प्रत्येक मिल मालिक जॉबर को नियुक्त करते थे। यह मालिक का पुराना तथा विश्वस्त कर्मचारी होता था। वह आवश्यकतानुसार अपने गाँव से लोगों को लाता था और उन्हें कारखानों में नौकरी दिलवाता था। मजदूरों को शहर में रहने और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने का काम जॉबर ही करते थे।

प्रश्न 2.
ब्रिटेन में महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी पर क्यों हमले किए ?
उत्तर-
बेरोजगारी की आशंका से मजदूर कारखानेदारी एवं मशीनों के व्यवहार का विरोध कर रहे थे। इसी क्रम में ऊन उद्योग में स्पिनिंग जेनी मशीन का जब व्यवहार होने लगा तब इस उद्योग में लगी महिलाओं ने इसका विरोध आरंभ किया। उन लोगों को अपना रोजगार छिनने की आशंका दिखाई पड़ने लगी। अतः ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर आक्रमण कर उन्हें तोड़ना आरंभ किया।

प्रश्न 3.
लंदन को फिनिशिंग सेंटर’ क्यों कहा जाता था?
उत्तर-
इंगलैंड के कपड़ा व्यापारी वैसे लोगों से जो रेशों के हिसाब से ऊन छांटते थे। (स्टेप्लसे) ऊन खरीदते थे। इस ऊन को वे सूत कातने वालों तक पहुँचाते थे। तैयार धागा वस्त्र बुनने वालों, चुन्नटो के सहारे कपड़ा समेटने वालों (पुलजे) और कपड़ा रंगने वालों (रंग साजों) के पास ले जाया जाता था। रंगा हुआ वस्त्र लंदन पहुँचता था। जहाँ उसकी फिनिशिंग होती थी। इसलिए लंदन को फिनिशिंग सेंटर कहा जाता था।

प्रश्न 4.
इंगलैंड ने अपने वस्त्र उद्योग को बढ़ावा देने के लिए क्या किया?
उत्तर-
इंगलैंड में यांत्रिक युग का आरंभ सूती वस्त्र उद्योग से हुआ। 1773 में लंकाशायर के वैज्ञानिक जान के वे फ्लाइंग शट्ल नामक मशीन बनाई। इससे बुनाई की रफ्तार बढ़ी तथा सूत की माँग बढ़ गई। 1765 में ब्लैकबर्न के जेम्स हारग्रीज ने स्पिनिंग जेनी बनाई जिससे सूत की कताई आठ गुना बढ़ गई। रिचर्ड आर्कराइट ने सूत कातने के लिए स्पिनिंग फ्रेम का आविष्कार किया जिससे अब हाथ से सूत कातने का काम बंद हो गया। क्रॉम्पटन ने स्पिनिंग म्युल नामक मशीन बनाई। इन मशीनों के आधार पर इंगलैंड में कम खर्च में ही बारीक सूत अधिक मात्रा में बनाए जाने लगे। इससे वस्त्र उद्योग में क्रांति आ गई। इन संयंत्रों की सहायता से इंगलैंड में वस्त्र उद्योगों को बढ़ावा मिला तथा 1820 तक इंगलैंड सूती वस्त्र उद्योगों का प्रमुख केन्द्र बन गया।

प्रश्न 5.
भारत में निरुद्योगीकरण क्यों हुआ?
उत्तर-
भारत इंगलैंड का सबसे महत्वपूर्ण उपनिवेशों में से श्रम था। सरकार ने भारत से कच्चे , माल का आयात और इंगलैंड के कारखानों से तैयार माल का भारत में निर्यात करने की नीति
अपनाई। इसके लिए सुनियोजित रूप स भारतीय उद्योगों विशेषतः वस्त्र उद्योग को नष्ट कर दिया गया। 1850 के बाद अंगरेजी सरकार की औद्योगिक नीतियाँ मुक्त व्यापार की नीति, भारतीय
वस्तुओं के निर्यात पर सीमा और परिवहन शुल्क लगाने, रेलवे, कारखानों में अंगरेजी पूंजी निवेश, भारत में अंगरेजी आयात का बढ़ावा देने इत्यादि के फलस्वरूप भारतीय उद्योगों का विनाश हुआ। कारखानों की स्थापना की प्रक्रिया बढ़ी जिससे देशी उद्योग अपना महत्व खोने लगे। इससे भारतीय उद्योगों का निरूद्योगीकरण हुआ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
19वीं शताब्दी में यरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों के बजाए हाथ से काम करनेवाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे। इसका क्या कारण था?
उत्तर-
19वीं शताब्दी में औद्योगीकरण के बावजूद हाथ से काम करनेवाले श्रमिकों की मांग बनी रही। अनेक उद्योगपति मशीनों के स्थान पर हाथ से काम करनेवाले श्रमिकों को ही प्राथमिकता देते थे। इसके प्रमुख निम्नलिखित कारण थे-

(i) इंगलैंड में कम मजदूरी पर काम करनेवाले श्रमिक बड़ी संख्या में उपलब्ध थे। उद्योगपतियों को इससे लाभ था। मशीन लगाने पर आनेवाले खर्च से कम खर्च पर ही इन श्रमिकों से काम करवाया जा सकता था। इसलिए उद्योगपतियों ने मशीन लगाने ‘ में अधिक उत्साह नहीं दिखाया।

(ii) मशीनों को लगवाने में अधिक पूंजी की आवश्यकता थी। साथ ही मशीन के खराब होने पर उसकी मरम्मत कराने में अधिक धन खर्च होता था। मशीनें उतनी अच्छी नहीं थी, जिसका दावा आविष्कारक करते थे।

(iii) एक बार मशीन लगाए जाने पर उसे सदैव व्यवहार में लाना पड़ता था, परंतु श्रमिकों की संख्या आवश्यकतानुसार घटाई-बढ़ाई जा सकती थी। मौसमी आधार पर श्रमिकों की संख्या की आवश्यकता पड़ती थी। उदाहरण के लिए इंगलैंड में जाड़े के मौसम में गैस घटों और शराबखानों में अधिक काम रहता था। बंदरगाहों पर जाड़ा में ही जहाजों की मरम्मत तथा सजावट का काम किया जाता था। क्रिसमस के अवसर पर बुक बाइंडरों और प्रिटरों को अतिरिक्त श्रमिकों की जरूरत पड़ती थी। उद्योगपति मौसम के अनुसार उत्पादन में कमी-बेशी को ध्यान में रखकर आसानी से मजदूरों की संख्या घटा-बढ़ा सकते थे। इसलिए उद्योमपति मशीनों के व्यवहार से अधिक हाथ से काम करनेवाले मजदूरों को रखना ज्यादा पसंद करते थे।

(iv) विशेष प्रकार के सामान सिर्फ कुशल कारीगर ही हाथ से बना सकते थे। मशीन विभिन्न डिजाइन और आकार के सामान नहीं बना सकते थे।

(v) विक्टोरियाकालीन ब्रिटेन में हाथ से बनी चीजों की बहुत अधिक मांग थी। हाथ से बने सामान परिवष्कृत, सुरुचिपूर्ण, अच्छी फिनिशवाली, बारीक डिजाइन और विभिन्न आकार की होती थी। कुलीन वर्ग इसकी उपयोग करना गौरव की बात मानते थे। इसलिए आधुनिकीकरण के युग में मशीनों के व्यवहार के बावजूद हाथ से काम करनेवाली श्रमिकों की मांग बनी रही।

प्रश्न 2.
18वीं शताब्दी तक अंतराष्ट्रीय बाजार में भारतीय वस्त्रों की माँग बने रहने का क्या कारण था?
उत्तर-
प्राचीन काल से ही भारत का वस्त्र उद्योग अत्यंत विकसित स्थिति में था। यहाँ विभिन्न प्रकार के वस्त्र बनाए जाते थे। उनमें महीन सूती (मलमल) और रेशमी वस्त्र मुख्य थे। उनकी माँग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काफी थी। कंपनी सत्ता की स्थापना एवं सुदृढ़ीकरण के आरंभिक चरण तक भारत के वस्त्र निर्यात में गिरावट नहीं आई। भारतीय वस्त्रों की मांग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बनी हुई थी जिसका मुख्य कारण था कि ब्रिटेन में वस्त्र उद्योग उस समय तक विकसित स्थिति में नहीं पहुंचा था। एक अन्य कारण यह था कि जहाँ अन्य देशों में मोटा सूत बनाया जाता था, वहीं भारत में महीन किस्म का सूत बनाया जाता था जिससे महीन सूती वस्त्र बनाया जाता था। ” इसलिए आर्मीनियम और फारसी व्यापारी पंजाब, अफगानिस्तान, पूर्वी फारस और मध्य एशिया के मार्ग से भारतीय सामान ले जाकर इसे बेचते थे। महीन कपड़ो के धान ऊँट की पीठों पर लादकर पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत से पहाड़ी दरों और रेगिस्तानों के पार ले जाए जाते थे। मध्य एशिया में इन्हें यूरोपीय मंडियों में भेजा जाता था।

प्रश्न 3.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी वस्त्र की नियमित आपूर्ति के लिए क्या व्यवस्था की ?
उत्तर-
बंगाल में राजनीतिक सत्ता की स्थापना के पहले ईस्ट इंडिया कंपनी को भारतीय बुनकरों से कपड़ा प्राप्त कर उनका निर्यात करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। बुनकरों से वस्त्र प्राप्त करने के लिए यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों में प्रतिद्वंद्विता होती थी। इसका लाभ स्थानीय व्यापारी भी उठाते थे। बुनकरों से वस्त्र खरीदकर वे ऊंची कीमत देनेवाली कंपनी को बेचते थे। कंपनी राज्य की स्थापना से परिदृश्य बदल गया। सूती वस्त्र उद्योग में व्याप्त प्रतिद्वंद्विता को समाप्त कर उसपर अपना एकाधिकार स्थापित करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने नियंत्रण एवं प्रबंधन की नई नीति अपनाई जिससे उसे वस्त्र की आपूर्ति लगातार होती रही। इसके लिए कंपनी ने निम्नलिखित कदम उठाए
(i) गुमाश्तो की नियुक्ति कपड़ा व्यापार परं एकाधिकार स्थापित करने के लिए बिचौलियों को समाप्त करना एवं बुनकरों पर सीधा नियंत्रण रखना आवश्यक था। इसके लिए कंपनी ने अपने नियमित कर्मचारी नियुक्त किए जो गुमाश्ता कहे जाते थे। इनका मुख्य काम बुनकरों पर नियंत्रण रखना, उनसे कपड़ा इकट्ठा करना तथा बुने गए वस्त्रों की गुणवत्ता का जांच करना था।

(ii) बुनकरों की पेशगी की व्यवस्था बुनकरों से स्वयं तैयार सामान प्राप्त करने के लिए कंपनी ने उन्हें अग्रिम राशि या पेशगी देने की नीति अपनाई। अग्रिम राशि प्राप्त कर बुनकर अब सिर्फ कंपनी के लिए ही वस्त्र तैयार कर सकते थे। वे अपना माल कंपनी के अतिरिक्त अन्य किसी कम्पनी या व्यापारी को नहीं बेच सकते थे। बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए ऋण भी उपलब्ध कराया गया। अग्रिम राशि और कर्ज से कपड़ा तैयार कर बुनकरों को माल गुमाश्तों को सौंपना पड़ा।

प्रश्न 4.
प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध तक भारत का औद्योगिक उत्पादन की धीमा रहा। परंतु युद्ध के दौरान और उसके बाद भारत का औद्योगिक उत्पादन में काफी तेजी आई जिसके निम्नलिखित प्रमुख कारण थे

(i) प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन में सैनिक आवश्यकता के अनुरूप अधिक सामान बनाए जाने लगे जिससे मैनचेस्टर में बनने वाले वस्त्र उत्पादन में गिरावट आई। इससे भारतीय उद्यमियों को अपने बनाए गए वस्त्र की खपत के लिए देश में ही बहुत बड़ा बाजार मिल गया। फलतः सूती वस्त्रों का उत्पादन तेजी से बढ़ा।

(ii) विश्वयुद्ध के लम्बा खींचने पर भारतीय उद्योगपतियों ने भी सैनिकों की आवश्यकता के लिए सामान बनाकर मुनाफा कमाना आरंभ कर दिया। सैनिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए देशी कारखानों में भी सैनिकों के लिए वर्दी, जूते, जूट की बोरियाँ, टेन्ट, जीन इत्यादि बनाए जाने लगे। इससे देशी कारखानों में उत्पादन बढ़ा।

(iii) युद्धकाल में कारखानों में उत्पादन बढ़ाने के अतिरिक्त अनेक नये कारखाने खोले गए। मजदूरों की संख्या में भी वृद्धि की गई। इनके कार्य करने की अवधि में भी बढ़ोतरी हुई। फलस्वरूप प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन ये तेजी से वृद्धि हुई।