Bihar Board Class 10 History भारत में राष्ट्रवाद Subjective Important Questions and Answers

 


Bihar Board Class 10 History भारत में राष्ट्रवाद Subjective Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सीमांत गाँधी किन्हें कहा जाता है।
उत्तर-
खान अब्दुल गफ्फार खाँ को।

प्रश्न 2.
मणिपुर एवं नागालैंड में नमक सत्याग्रह का प्रसार किसने किया?
उत्तर-
रानी गैडिनल्यू ने।

प्रश्न 3.
गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन को समर्थन क्यों दिया?
उत्तर-
हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए क्योंकि गांधी को भारत में एक बड़ा जन आंदोलन असहयोग आंदोलन चलाना था।

प्रश्न 4.
असहयोग आंदोलन में चौरी-चौरा की घटना का क्या महत्व है ?
उत्तर-
5 फरवरी, 1922 को चौरी-चौरा में हुई घटना के कारण ही महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था।

प्रश्न 5.
स्वराज पार्टी का गठन किस उद्देश्य से किया गया?
उत्तर-
स्वराज पार्टी का गठन का उद्देश्य प्रांतीय विधायिकाओं में प्रवेश कर सरकार पर दबाव डालकर स्वराज की स्थापना के लिए प्रयास करना था।

प्रश्न 6.
कांग्रेस के किस अधिवेशन में पूर्ण स्वाधीनता की मांग की गई ? इस अधिवेशन के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर-
कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन, 1929 में पूर्ण स्वाधीनता की मांग की गई। इस अधिवेशन के अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू थे।

प्रश्न 7.
गांधी जी ने दांडी की यात्रा क्यों की?
उत्तर-
गांधी जी के दांडी यात्रा का मुख्य उद्देश्य समुद्र के पानी से नमक बनाकर सरकार के नमक कानून का उल्लंघन करना था।

प्रश्न 8.
1932 के पूना समझौता का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर-
1932 में गांधीजी और डॉ. अंबेडकर के बीच पूना समझौता हुआ जिसके परिणामस्वरूप । दलित वर्गों के लिए प्रांतीय और केन्द्रीय विधायिकाओं में कुछ स्थान आरक्षित हुए।

प्रश्न 9.
अल्लूटी सीताराम राजू कौन थे ?
उत्तर-
आंध्र प्रदेश के गुडेम पहाड़ियों में वन कानूनों के विरोध में आदिवासियों के विद्रोह का नेतृत्व अल्लूरी सीताराम राजू ने किया।

प्रश्न 10.
गाँधीजी के स्वराज्य झंडा में कौन-कौन-से रंग और प्रतीक थे ?
उत्तर-
गाँधीजी के स्वराज्य झंडा में सफेद, हरा और लाल रंग थे। झंडे के बीच में जो चरखा का चित्र बना हुआ था। वह स्वावलंबन का प्रतीक था। इस झंडे को हाथ में लेकर लोग गौरवपूर्ण ढंग से जुलूसों और प्रदर्शनों में भाग लेकर ब्रिटिश शासन के प्रति अवज्ञा का भाव प्रदर्शित करते थे।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत में राष्ट्रवाद उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से कैसे विकसित हुआ? .
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रवाद का उदय और विकास हिन्द-चीन के समान औपनिवेशिक शासन की प्रतिक्रियास्वरूप हुआ। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से औपनिवेशिक राज की प्रशासनिक, आर्थिक और अन्य नीतियों के विरुद्ध असंतोष की भावना बलवती होने लगा। यद्यपि 1857 के विद्रोह के पूर्व भी अंगरेजी आधिपत्य के विरुद्ध क्षेत्रीयता के आधार पर औपनिवेशिक शासन का विरोध किया गया था परन्तु राष्ट्र की अवधारणा और राष्ट्रीय चेतना का विकास 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से ही हुआ।

प्रश्न 2.
प्रथम विश्वयुद्ध ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को किस प्रकार बढ़ावा दिया ?
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध 20वीं शताब्दी के यूरोपीय इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। यह युद्ध औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप उत्पन्न औपनिवेशिक व्यवस्था बनाए रखने के कारण हुआ। युद्ध आरंभ होने पर अंगरेजी सरकार ने यह घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य भारत में एक उत्तरदायी शासन की स्थापना करना है। सरकार ने यह भी कहा कि ब्रिटिश सरकार जिन आदर्शों के लिए लड़ रही थी उन्हें युद्ध की समाप्ति के बाद भारत में भी लागू किया जाएगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभावों के कारण भारत में राष्ट्रीयता की भावना बलवती हुई और स्वतंत्रता आंदोलन तीव्र हो उठा। प्रथम विश्वयुद्ध के आर्थिक और राजनीतिक परिणामों ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को प्रभावित किया।

प्रश्न 3.
भारतीयों ने रॉलेट कानून का विरोध क्यों किया?
उत्तर-
भारतीय क्रांतिकारियों में उभरती हुई राष्ट्रीयता की भावना को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायाधीश सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में रॉलेट आयोग का गठन किया। भारतीय नेताओं के विरोध के बावजूद भी यह विधेयक 8 मार्च, 1919 को लागू कर दिया गया। इस कानून का विरोध भारतीयों ने जबर्दस्त रूप से किया। इस कानून के अंतर्गत एक विशेष न्यायालय का गठन किया गया जिसके निर्णय के विरूद्ध कोई अपील नहीं किया जा सकता था। इस कानून के द्वारा सरकार किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर गिरफ्तार करने उसपर मुकदमा चला सकती थी। गांधीजी ने इस कानून को अनुचित स्वतंत्रता का हनन करनेवाला तथा व्यक्ति के मूल अधिकारों की हत्या करनेवाला बताया।

प्रश्न 4.
साइमन कमीशन भारत क्यों आया? भारतीयों में इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर-
1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम द्वारा स्थापित उत्तरदायी शासन की स्थापना में किए गए प्रयासों की समीक्षा करने एवं आवश्यक सुझाव देने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने 1927 में सरजॉन साइमन की अध्यक्षता में साइमन कमीशन का गठन किया। इसके सभी 7 सदस्य अंग्रेज थे। इस कमीशन का उद्देश्य सांविधानिक सुधार के प्रश्न पर विचार करना था। इस कमीशन में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया जिसके कारण भारतीयों में इस कमीशन का तीव्र विरोध हुआ। भारतीयों में इसकी प्रतिक्रिया का एक और कारण यह था कि भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था। 3 फरवरी, 1928 को कमीशन के बम्बई पहुंचने पर इसका स्वागत हड़ताल, पदर्शन और कालेझंडों से हुआ तथा ‘साइमन वापस जाओ’ के नारों से हुआ।

प्रश्न 5.
नमक यात्रा पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ नमक सत्याग्रह से माना जाता है। नमक कानून भंग करने के लिए गांधीजी ने दांडी को चुना जो साबरमती आश्रम से 240 किलोमीटर दूर थी। गांधी अपने 78 विश्वस्त सहयोगियों के साथ 12 मार्च, 1930 को साबरमती से दांडी यात्रा आरंभ की। नमक यात्रा में गांधी के साथ सैंकड़ों युवक, किसान, मजदूर, महिलाएं शामिल हो गए। गांधीजी को देखने और उनका भाषण सुनने के लिए हजारों लोग एकत्र होते थे। 24 दिनों के लम्बी यात्रा के बाद 6 अप्रैल, 1930 को गांधी दांडी पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर अहिंसक ढंग से सरकार के नमक कानून को भंग किया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के कारणों पर प्रकाश डालें ?
उत्तर-
भारत में राष्ट्रवाद का उदय और विकास 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध की प्रमुख घटना है। भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के प्रमुख कारण हैं

(i) अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध असंतोष- अंग्रेजी नीतियों के प्रति बढ़ता असंतोष . भारतीय राष्ट्रवाद के विकास का प्रमुख कारण था। अंगरेजी सरकार की नीतियों के शोषण का शिकार देशी रजवाड़े ताल्लुकेदार, महाजन, कृषक मजदूर, मध्यमवर्ग सभी बने/पूँजीपति वर्ग भी सरकार की भेदभाव आर्थिक नीति से असंतुष्ट था। ये सभी अंगरेजी शासन को अभिशाप मानकर इसका खात्मा करने का मन बनाने लगे।

(ii) आर्थिक कारण– भारतीय राष्ट्रवाद के उदय का एक महत्वपूर्ण कारण आर्थिक कारण था। सरकारी आर्थिक नीतियों के कारण कृषि और कुटीर उद्योग-धंधे नष्ट हो गए। किसानों पर लगान एवं कर्ज का बोझ बढ़ गया। किसानों को नगरी फसल उपजाने को बाध्य कर उसका भी मुनाफा सरकार ने उठाया। देशी उद्योगों की स्थिति भी दयनीय हो गयी। अंगरेजी आर्थिक नीतियों के कारण भारतीय धन का निष्कासन हुआ, जिससे भारत की गरीबी बढ़ी। इससे भारतीयों में प्रतिक्रिया हुई एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ।

(iii) अंगरेजी शिक्षा का प्रसार- भारत में अंगरेजी शिक्षा के प्रचार के कारण भारतीय लोग भी अमेरिका, फ्रांस तथा यूरोप की अन्य महान क्रांतियों से परिचित हुए। रूसो, वाल्टेयर, मेजिनी, गैरीबाल्डी जैसे दार्शनिकों एवं क्रांतिकारियों के विचारों का प्रभाव उनपर पड़ा। वे भी अब स्वतंत्रता, समानता एवं नागरिक अधिकारों के प्रति सचेत होने लगे।

(iv) साहित्य एवं समाचारपत्रों का योगदान- राष्ट्रीय चेतना जागृत करने में प्रेस और . साहित्य का भी महत्वपूर्ण योगदान था। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से अंगरेजी और भारतीय भाषाओं में अनेक समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ प्रकाशित होनी आरंभ हुई जैसे हिंदू पैट्रियाट, हिन्दू, आजाद, संवाद कौमुदी इत्यादि। इनमें भारतीय राजनीतिक एवं सामाजिक मुद्दों को उठाकर सरकारी नीतियों की आलोचना की गई।

(v) सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन का प्रभाव- 19वीं शताब्दी के सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन ने भी राष्ट्रीयता की भावना विकसित की। इस समय तक भारतीय समाज एवं धर्म कुरीतियों और रूढ़ियों से ग्रस्त हो चुका था। राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द के प्रयासों से नई चेतना जगी। ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन ने एकता, समानता एवं स्वतंत्रता की भावना जागृत की तथा भारतीयों में आत्म-सम्मान, गौरव एवं राष्ट्रीयता की भावना का विकास करने में योगदान दिया।

प्रश्न 2.
जालियाँवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ? इसने राष्ट्रीय आंदोलन को कैसे बढ़ावा दिया?
उत्तर-
भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सरकार ने 1919 में रॉलेट कानून (क्रांतिकारी एवं अराजकता अधिनियम) बनाया। इस कानून के अनुसार सरकार किसी को भी संदेह ने आधार पर गिरफ्तार कर बिना मुकदमा चलाए उसको दंडित कर सकती थी तथा इसके खिलाफ कोई अपील भी नहीं की जा सकती थी। भारतीयों ने इस कानून का कड़ा विरोध किया। इसे ‘काला कानून’ की संज्ञा दी गई। गांधीजी ने इस कानून को अनुचित, अन्यायपूर्ण, स्वतंत्रता का हनन करनेवाला तथा नागरिकों के मूल अधिकारों की हत्या करने वाला बताया। उन्होंने जनता से शांतिपूर्वक इस कानून का विरोध करने को कहा।

अमृतसर में एक बहुत ही बड़ा प्रदर्शन हुआ जिसकी अध्यक्षता डॉ. सत्यपाल और डॉ. किचलू कर रहे थे। सरकार ने दोनों को अमृतसर से निष्कासित कर दिया। जनरल डायर ने पंजाब में फौजी शासन लागू कर आतंक का राज्य स्थापित कर दिया। पंजाब के लोग अपने प्रिय नेता की गिरफ्तारी तथा सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी मेले के अवसर पर जालियाँवाला बाग में एक विराट सम्मेलन का आयोजन कर विरोध प्रकट कर रहे थे जिसके कारण ही डायर ने निहत्थी जनता पर गोलियाँ चलवा दी। यह घटना जालियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना गया।

जालियांवाला बाग की घटना ने पूरे भारत को आक्रोशित कर दिया। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन और हड़ताल हुए। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने घटना के विरोध में अपना ‘सर’ का खिताब वापस लौटाने की घोषणा की। वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकरन नायर ने इस्तीफा दे दिया। गांधीजी ने कैंसर-ए-हिन्द की उपाधि त्याग दी। जालियांवाला बाग हत्याकांड ने राष्ट्रीय आंदोलन में एक नई जान फूंक दी।

प्रश्न 3.
खिलाफत आंदोलन क्यों हुआ? गांधीजी ने इसका समर्थन क्यों किया?
उत्तर-
तुर्की का खलीफा जो आंदोलन साम्राज्य का सुल्तान भी था, संपूर्ण इस्लामी जगह का धर्मगुरू था। पैगंबर के बाद सबसे अधिक प्रतिष्ठा उसी की थी। प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी के साथ तुर्की भी पराजित हुआ। पराजित तुर्की पर विजयी मित्रराष्ट्रों ने कठोर संधि थोप दी (सेब्र की संधि) ऑटोमन साम्राज्य को विखंडित कर दिया गया। खलीफा और ऑटोमन साम्राज्य के साथ किए गए व्यवहार से भारतीय मुसलमानों में आक्रोश व्याप्त हो गया। वे तुर्की के सुल्तान और खलीफा की शक्ति और प्रतिष्ठा की पुनः स्थापना के लिए संघर्ष करने को तैयार हो गए। इसके लिए ही खिलाफत आंदोलन आरंभ किया गया। खिलाफत आंदोलन एक प्रति क्रियावादी आंदोलन के रूप में आरंभ हुआ, लेकिन शीघ्र ही मध्य साम्राज्य विरोधी और राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में परिणत हो गया।

महात्मा गांधी खिलाफत आंदोलन को सत्य और न्याय पर आधारित मानते थे। इसलिए उन्होंने इसे अपना समर्थन दिया। 1919 में वह दिल्ली में आयोजित ऑल इंडिया खिलाफत सम्मेलन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उन्होंने सरकार को धमकी दी कि यदि खलीफा के साथ न्याय नहीं किया जाएगा तो वह सरकार के साथ असहयोग करेंगे। गांधीजी ने इस आंदोलन को अपना समर्थन देकर हिन्दू-मुसलमान एकता स्थापित करने और एक बड़ा सशक्त राजविरोधी आंदोलन असहयोग
आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया। .

प्रश्न 4.
असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के स्वरूप में क्या अंतर था ? महिलाओं की सविनय अवज्ञा आंदोलन में क्या भूमिका थी? . उत्तर-
असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के स्वरूप में काफी विभिन्नता थी। असहयोग आंदोलन में जहाँ सरकार के साथ असहयोग करने की बात थी वहीं सविनय अवज्ञा आंदोलन में न केवल अंग्रेजों का सहयोग न करने के लिए बल्कि औपनिवेशिक कानूनों का भी उल्लंघन करने के लिए आह्वान किया जाने लगा। असहयोग आंदोलन की तुलना में सविनय अवज्ञा आंदोलन व्यापक जनाधार वाला आंदोलन साबित हुआ।

सविनय अवज्ञा आंदोलन में पहली बार स्त्रियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। वे घंटों की चहारदीवारी से बाहर निकलकर गांधीजी की सभाओं में भाग लिया। अनेक स्थानों पर स्त्रियों ने नमक बनाकर नमक-कानून भंग किया। स्त्रियों में विदेशी वस्त्र एवं शराब के दुकानों की पिकेटिंग की। स्त्रियों ने चरखा चलाकरे सूत काते और स्वदेशी को प्रोत्साहन दिया। शहरी क्षेत्रों में ऊँची जाति की महिलाएं आंदोलन में सक्रिय थी तो ग्रामीण इलाकों में संपन्न परिवार की किसान स्त्रियाँ।

प्रश्न 5.
भारतीय राजनीति में साम्यवादियों की भूमिका की विवेचना कीजिए ?
उत्तर-
1917 की महान रूसी क्रांति के बाद पूरे विश्व में साम्यवादी विचारधारा का प्रसार हुआ। 20वीं शताब्दी के आरंभ में भारत भी साम्यवादी विचारधारा के प्रभाव में आया। देश के अनेक भागों में बुद्धिजीवी साम्यवादी दर्शन से प्रभावित लोगों का समूह बनाकर इस विचारधारा को प्रोत्साहन दे रहे थे। विख्यात क्रांतिकारी एम. एन. राय ने 1920 में ताशकंद में हिन्दुस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की। भारत में इसका प्रचार करने के लिए कलकत्ता, बंबई, मद्रास लाहौर में साम्यवादी सभाएँ बननी शुरू हो गई। साम्यवादियों ने श्रमिकों और किसानों की ओर अपना ध्यान दिया। क्रांतिकारी आंदोलनों पर भी इनका प्रभाव पड़ा। अक्टूबर 1920 में बंबई में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की स्थापना हुई।

इसमें फूट पड़ने के बाद एन. एम. जोशी ने ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन फेडरेशन (AITUF) का गठन किया। इस तरह वामपंथ का प्रसार मजदूर संघों पर बढ़ रहा था। वामपंथ को प्रभाव में इन श्रमिक संगठनों ने मजदूरों की स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया। आगे चलकर 1934 में समाजवादियों के प्रयास से सभी श्रमिक संघों को मिलाकर ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की गई। साम्यवादियों ने किसानों की समस्याओं की ओर भी ध्यान दिया। लेबर स्वराज पार्टी भारत में पहली किसान मजदूर पार्टी थी लेकिन अखिल भारतीय स्तर पर दिसम्बर, 1928 में अखिल भारतीय मजदूर किसान पार्टी बनी।

साम्यवादियों ने किसान मजदूरों की स्थिति में सुधार लाने के अतिरिक्त साम्राज्यवाद एवं पूंजीवाद का विरोध भी किया। क्रांतिकारी आंदोलनों को भी इनका समर्थन मिला। फलतः असहयोग आंदोलन के बाद सरकार ने साम्यवादियों पर कड़ी कारवाई की। पेशवर षड्यंत्र केस (1922-23), कानपुर षड्यंत्र केस (1924) तथा मेरठ षड्यंत्र केस (1929-33) में मुकदमा चलाकर कुछ साम्यवादियों को दंडित किया गया। साम्यवादी विचारधारा का प्रभाव कांग्रेस के युवा वर्ग पर भी पड़ा। इन लोगों ने कांग्रेस पर अधिक सशक्त नीति अपनाने की मांग की। साथ ही किसानों मजदूरों की समस्याओं को भी उठाने का प्रयास किया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान साम्यवादियों ने कांग्रेस का विरोध करना शुरू किया जिसकी अंतिम परिणति सुभाष चन्द्र बोस द्वारा फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना के रूप में हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध और ‘भारत छोड़ो आंदोलन में भी साम्यवादियों ने अपनी भूमिका का निर्वहन किया।

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