Bihar Board Class 10 History समाजवाद एवं साम्यवाद Subjective Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
1854-56 के क्रीमिया युद्ध में किसकी हार हुई थी?
उत्तर-
रूस की।

प्रश्न 2.
रूसी क्रांति किसके नेतृत्व में हुई थी?
उत्तर-
1917 की रूसी क्रांति बोल्शेविक दल के नेता लेनिन के नेतृत्व में हुई थी।

प्रश्न 3.
जार एलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या 1881 ई० में किसने की?
उत्तर-
1881 में जार एलेक्जेंडर की हत्या निहिलस्टों ने कर दी।

प्रश्न 4.
रूस के सम्राट को क्या कहा जाता था?
उत्तर-
रूस के सम्राट को जार कहा जाता था।

प्रश्न 5.
रूस में किस राजवंश का शासन था ?
उत्तर-
रूस में रोमोनोव वंश का शासन था।

प्रश्न 6.
रूस की संसद का क्या नाम था ?
उत्तर-
रूस की संसद का नाम ड्यूमा था।

प्रश्न 7.
रूस में कृषि-दासता की प्रथा किस वर्ष समाप्त हुई।
उत्तर-
रूस में कृषि दासता की प्रथा 1861 ई. में समाप्त हुई।

प्रश्न 8.
रासपुटिन कौन था ?
उत्तर-
रासपुटिन एक बदनाम और रहस्यमय पादरी था।

प्रश्न 9.
वार एंड पीस उपन्यास के लेखक कौन थे?
उत्तर-
वार एंड पीस उपन्यास के लेखक लियो टॉल्सटाय थे।

प्रश्न 10.
रूस में कृषि-दासता की प्रथा किसने समाप्त की?
उत्तर-
1861 तक रूस में किसानों के कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था। अधिकांश किसान बँधुआ मजदूर थे। वे सामंतों के अधीन थे और जमीन से बंधे हुए थे। 1861 में क्रमिया युद्ध की पराजय के पश्चात जार एलेक्जेंडर द्वितीय ने इस बंधुआ प्रथा का अंत करके किसानों को मुक्ति दी। इसलिए उसे ‘मुक्तिदाता जार’ कहा जाता है। इस प्रकार कृषि-दासता (serfdom) का अंत हुआ।

प्रश्न 11.
साम्यवादी शासन का पहला प्रयोग कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
साम्यवादी शासन का पहला प्रयोग रूस में हुआ था। रूसी क्रांति ने पुरान राजनीतिक व्यवस्था को नष्ट कर समाजवाद तथा साम्यवाद के आधार पर नए रूस का निर्माण किया। फलतः, इसका प्रभाव दुनिया के कोने-कोने में पड़ा और हर जगह साम्यवाद का नारा पुरानी व्यवस्था को गंभीर चुनौती देने लगा।

प्रश्न 12.
किसने सुधार के लिए आतंकवाद का सहारा लिया ?
उत्तर-
रूस में एक नागरिक वर्ग ऐसा था जो चाहता था कि रूस में सुधार आंदोलन चलाया जाए। इन्होंने निहिलिस्ट आंदोलन आरंभ किया तथा ये निहिलिस्ट के नाम से जाने जाते थे। ये निहिलिस्ट स्थापित व्यवस्था को आतंक का सहारा लेकर समाप्त करना चाहते थे। 1881 में जार एलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या निहिलिस्टों ने कर दी।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
समाजवादी दर्शन क्या है ?
उत्तर-
समाजवाद उत्पादन में मुख्यतः निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देता है। समाजवादी शोषण उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहते हैं। समाजवादी व्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके अंतर्गत उत्पादन के सभी साधनों कारखानों तथा विपणन में सरकार का एकाधिकार हो। ऐसी व्यवस्था में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है।

प्रश्न 2.
रॉबर्ट ओवेन का संक्षिप्त परिचय दें?
उत्तर-
इंगलैंड में समाजवाद का प्रवर्तक रॉबर्ट ओवेन को माना जाता है। इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप श्रमिकों के शोषण को रोकने हेतु ओवेन ने एक आदेश समाज की स्थापना का प्रयास किया। उसके स्कॉटलैंड को न्यू लूनार्क नामक स्थान पर एक आदर्श कारखाना और मजदूरों के आवास की व्यवस्था की। इसमें श्रमिकों को अच्छा भोजन, आवास और उचित मजदूरी देने की व्यवस्था की गयी। श्रमिकों की शिक्षा, चिकित्सा की भी व्यवस्था की गई। साथ ही काम के घंटे घटाए गए और बल मजदूरी समाप्त की गयी। ओवेन के इस प्रयास से मुनाफा में वृद्धि हुई इससे वह संतुष्ट हुआ।

प्रश्न 3.
1917 ई० की क्रांति के समय रूस में किस राजवंश का शासन था? इस शासन का स्वरूप क्या था ?
उत्तर-
1917 ई की क्रांति के पूर्व रूस में रोमोनोव वंश का शासन था। इस वंश के शासन का स्वरूप स्वेच्छाचारी राजतंत्र था। इस वंश के शासकों ने स्वेच्छाचारी राजतंत्र की स्थापना की। रूस का सम्राट जार अपने आपको का ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था। वह सर्वशक्तिशाली था। राज्य की सारी शक्तियाँ उसी के हाथों में केन्द्रित थी। उसकी सत्ता पर किसी का नियंत्रण नहीं था। राज्य के अतिरिक्त वह रूसी चर्च का भी प्रधान था। राज्य के अतिरिक्त वह रूसी चर्च का भी प्रधान था। प्रजा जार और उसके अधिकारियों से भयभीत और त्रस्त रहती थी।

प्रश्न 4.
निहिलिज्म से आप क्या समझते हैं ? रूस पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
रूसी नागरिकों का एक वर्ग ऐसा था जो चाहता था कि रूस में सुधार आन्दोलन जार के द्वारा किए जाएँ। जार एलेक्जेंडर द्वितीय ने कई सुधार कार्यक्रम भी चलाए, परंतु इससे सुधारवादी संतुष्ट नहीं हुए। इनमें से कुछ ने निहिलिस्ट आंदोलन आरंभ किया। ये निहिलस्ट के नाम से जाने जाते थे। ये स्थापित व्यवस्था को आतंक का सहारा लेकर समाप्त करना चाहते थे। 1881 में जार एलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या निहिलस्टों ने कर दी। इन निहिलिस्टो के विचारों से प्रभावित होकर क्रांतिकारी जारशाही के विरुद्ध एकजुट होने लगे।

प्रश्न 5.
बौद्धिक जागरण ने रूसी क्रांति को किस प्रकार प्रभावित किया ?
उत्तर-
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में रूस में बौद्धिक जागरण हुआ जिसने लोगों को निरंकुश राजतंत्र के विरुद्ध बगावत करने की प्रेरणा दी। अनेक विख्यात लेखकों और बुद्धिजीवियों लियो टॉलस्टाय, ईरान तुर्गनेव, फ्योदोर दोस्तोवस्की, मैक्सिम गोर्की ने अपनी रचनाओं द्वारा सामाजिक अन्याय एवं भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था का विरोध कर एक नए प्रगतिशील समाज के निर्माण का आह्वान किया। रूसी लोग विशेषतः किसान और मजदूर, कार्ल मार्क्स के दर्शन से गहरे रूप से प्रभावित हुए। वे शोषण और अत्याचार विरुद्ध संघर्ष करने को तत्पर हो गए।

प्रश्न 6.
मेन्शिविकों और बोल्शेविको के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से रूस में राजनीतिक दलों का उत्कर्ष हुआ। कार्ल मार्क्स के एक प्रशंसक और समर्थक लेखानीव ने 1883 में रूसी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की। इस दल ने मजदूरों को संघर्ष के लिए संगठित करना आरंभ किया। 1903 में संगठनात्मक मुद्दों को लेकर सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी दो दलों में विभक्त हो गया। मेन्शेविक (अल्पमत वाले) तथा वोल्शेविक (बहुमत वाले) मेन्शेविक संवैधानिक रूप से देश में राजनीतिक परिवर्तन चाहते थे तथा मध्यवर्गीय क्रांति के समर्थक थे। परंतु बोल्शेविक इसे असंभव मानते थे तथा क्रांति के द्वारा परिवर्तन लाना चाहते थे जिसमें मजदूरों की विशेष भूमिका हो।

प्रश्न 7.
रूस में प्रति-क्रांति क्यों हुई ? बोल्शेविक सरकार ने इसका सामना कैसे किया ?
उत्तर-
बोल्शेविक क्रांति की नीतियों से वैसे लोग व्यग्र हो गए जिनकी संपत्ति और अधिकारों को नई सरकार ने छीन लिया था। अतः सामंत, पादरी, पूँजीपति नौकरशाह सरकार के विरोधी बन गए। वे सरकार का तख्ता पलटने का प्रयास कर रहे थे। उन्हें विदेशी सहायता भी प्राप्त थी। लेनिन ने प्रति क्रांतिकारियों का कठोरतापूर्वक दमन करने का निश्चय किया। इसके लिए चेका नामक विशेष पुलिस दस्ता का गठन किया गया। इसने निर्मतापूर्वक हजारों षड्यंत्रकारियों को मौत के घाट उतार दिया। चेका के लाल आतंक ने षड्यंत्रकारियों की कमर तोड़ दी।

प्रश्न 8.
कौमिण्टर्न की स्थापना क्यों की गई? इसका क्या महत्व था ?
उत्तर-
मार्क्सवाद का प्रचार करने एवं विश्व के सभी मजदूरों को संगठित करने के उद्देश्य से विभिन्न देशों के साम्यवादी दलों के प्रतिनिधि मास्को में एकत्रित हुए। सभी देशों की साम्यवादी पार्टियों का एक संघ बनाया गया जो कोमिण्टर्न कहलाया। इसका मुख्य कार्य विश्व में क्रांति का प्रचार करना एवं साम्यवादियों की सहायता करना था। कौमिण्टर्न का नेतृत्व रूस के साम्यवादी दल के पास रहा। लेनिन के इस कार्य से पूँजीवादी देशों में बेचैनी फैल गयी। रूस से मधुर संबंध बनाने को वे बाह्य हो गए। इंगलैंड ने 1921 में रूस से व्यापारिक संधि कर ली। 1924 तक इटली, जर्मनी, इंगलैंड ने रूस की बोल्शेविक सरकार को मान्यता प्रदान कर दी।

प्रश्न 9.
नई आर्थिक नीति (NEP) पर एक टिप्पणी लिखें?
उत्तर-
लेनिन ने 1921 में एक नई आर्थिक नीति (NEP) लागू की। इसके अनुसार सीमित रूप से किसानों और पूँजीपतियों को व्यक्तिगत संपत्ति रखने की अनुमति दी गई। यह नीति कारगर हुई।
खेती की पैदावार बढ़ी तथा उद्योग-धंधों में भी उत्पादन बढ़ा। इससे रूस समृद्धि के मार्ग पर ‘ आगे बढ़ा। नई आर्थिक नीति की कुछ मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं
(i) किसानों से अनाज की जबरन उगाही बन्द कर दी गई। अनाज के बदले उन्हें निश्चित कर देने को कहा गया। शेष अनाज का उपयोग किसान अपनी इच्छानुसार कर सकता था।
(ii) सैद्धांतिक रूप से जमीन पर राज्य का अधिकार मानते हुए भी व्यावहारिक रूप से किसानों को जमीन का स्वामित्व दिया गया।

प्रश्न 10.
कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
कम्युनिस्ट इंटरनेशनल एक संस्था थी जिसकी स्थापना प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1919 में हुई थी। इस संस्था का उद्देश्य साम्यवाद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित करना था। इसके प्रभाव से अनेक देशों में साम्यवादी संगठनों की स्थापना हुई। साथ ही, अनेक प्रजातंत्रीय देशों में राजनीतिक समानता के साथ-साथ सामाजिक एवं आर्थिक समानता लाने का भी प्रयास किया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के आरंभ होने पर इस संस्था को भंग कर दिया गया।

प्रश्न 11.
‘सोवियत’ से क्या समझते हैं ?
उत्तर-
रूस में राजनीतिक संगठन के सबसे निचले स्तर पर स्थानीय समितियाँ थी जिन्हें ‘सोवियत’ कहा जाता था। आरंभ में यह मजदूरों के प्रतिनिधियों की परिषद थी जिसकी स्थापना हड़तालों के संचालन के लिए की गई थी, पर शीघ्र ही यह राजनतिक सत्ता का उपकरण बन गई। मजदूरों की भाँति किसानों की परिषदों या सोवियतों का निर्माण हुआ। भी सोवियतों के प्रतिनिधि एक राष्ट्रीय कांग्रेस का संगठन करते थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजवाद क उदय और विकास को रेखांकित करें।
उत्तर-
समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसने आधुनिक काल में समाज को एक नया रूप प्रदान किया। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप समाज में पूँजीपति वर्गों द्वारा मजदूरों का लगातार शोषण अपने चरमोत्कर्ष पर था। उन्हें इस शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने तथा वर्ग विहीन समाज की स्थापना करने में समाजवादी विचारधारा ने अग्रणी भूमिका अदा की। समाजवाद उत्पादन में मुख्यतः निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देती है। यह एक शोषण उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहता है। अतः समाजवादी व्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके अन्तर्गत उत्पादन के सभी साधनों, कारखानों तथा विपणन में सरकार का एकाधिकार हो। ऐसी व्यवस्था में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है।

समाजवादी विचारधारा की उत्पत्ति 18वीं शताब्दी के प्रबोधन आन्दोलन के दार्शनिकों के लेखों में ढूँढे जा सकते हैं। आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी थे, जिनमें सेंट साइमन, चार्ल्स फूरिए लुई ब्लां तथा रॉबर्ट ओवेन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। समाजवादी आंदोलन और विचारधारा मुख्यतः दो भागों में विभक्त की जा सकती है – (i) आरंभिक समाजवादी अथवा कार्ल मार्क्स के पहले के समाजवादी (ii) कार्ल मार्क्स के बाद के समाजवादी। आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी या “स्वप्नदर्शी” (Utopian) समाजवादी कहे गए। वे उच्च और अव्यावहारिक आदर्श से प्रभावित होकर “वर्ग संघर्ष” की नहीं बल्कि “वर्ग समन्वय” की बात करते थे। दूसरे प्रकार के समाजवादियों में फ्रेडरिक एंगेल्स, कार्ल मार्क्स और उनके बाद के चिंतक जो ‘साम्यवादी’ कहलाए ने वर्ग समन्वय के स्थान पर “वर्ग संघर्ष” की बात कही। इन लोगों ने समाजवाद की एक नई व्याख्या प्रस्तुत की जिसे “वैज्ञानिक समाजवाद” कहा जाता है।

19वीं शताब्दी में समाजवादी विचारधारा का तेजी से प्रसार हुआ। फ्रांस में लुई ब्लाँ ने सामाजिक कार्यशालाओं की स्थापना कर पूँजीवाद की बुराइयों को समाप्त करने की बात कही। जर्मनी भी समाजवादी विचारधारा से अपने को अलग नहीं रख सका। रूस में भी समाजवाद ने अपनी जड़ें जमा ली। कार्ल मार्क्स ने आरंभिक समाजवादियों से प्रेरणा लेकर ही नई समाजवादी व्याख्या प्रस्तुत की।

प्रश्न 2.
साम्यवाद के जनक कौन थे ? समाजवाद और साम्यवाद में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
साम्यवाद के जनक फेडरिक एंगेल्स तथा कार्ल मार्क्स थे। समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसने आधुनिक काल में समान को एक नया रूप प्रदान किया। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप समाज में पूँजीपति वर्गों द्वारा मजदूरों का लगातार शोषण अपने चरमोत्कर्ष पर था। उन्हें इस शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने तथा वर्ग विहीन समाज की स्थापना करने में समाजवादी विचारधारा ने अग्रणी भूमिका अदा की। समाजवाद उत्पादन में मुख्यतः निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देता है। यह एक शोषण उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहता है। अतः समाजवादी व्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके अंतर्गत उत्पादन के सभी साधनों कारखानों तथा विपणन में सरकार का एकाधिकार हो। ऐसी व्यवस्था में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है। आरंभिक समाजवादियों में सेंट साइमन, चार्ल्स फूरिए, लुई ब्लां तथा रॉबर्ट ओवेन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी या स्वप्नदर्शी थे। वे उच्च और अव्यवहारिक आदर्श से प्रभावित होकर ‘वर्ग संघर्ष’ की नहीं बल्कि ‘वर्ग समन्वय’ की बात करते थे।

दूसरे प्रकार के समाजवादियों में फ्रेडरिक एंगेल्स, कार्ल मार्क्स और उनके बाद के चिंतक साम्यवादी कहलाए जो वर्ग समन्वय के स्थान पर “वर्ग संघर्ष” की बात की। इन लोगों ने समाजवाद की एक नई व्याख्या प्रस्तुत की जिसे “वैज्ञानिक समाजवाद” कहा जाता है। मार्क्स और एंगेल्स ने मिलकर 1848 में कम्यूनिस्ट मेनिफेस्टो अथवा साम्यवादी घोषणापत्र प्रकाशित किया। मार्क्स ने पूंजीवाद की घोर भर्त्सना की ओर श्रमिकों ने हक की बात उठाई। मजदूरों को अपने हक के लिए लड़ने को उसने उत्प्रेरित किया। मार्क्स ने अपनी विख्यात पुस्तक दास कैपिटल का प्रकाशन 1867 में किया जिले “समाजवादियों का बाइबिल” कहा जाता है। मार्क्सवादी दर्शन साम्यवाद के नाम से विख्यात हुआ। मार्क्स का मानना था कि मानव ‘इतिहास वर्ग संघर्ष’ का इतिहास है। इतिहास उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण के लिए दो वर्गों में चल रहे निरंतर संघर्ष की कहानी है।

प्रश्न 3.
1917 की रूसी क्रांति के प्रमुख कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-
बीसवीं शताब्दी के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना रूस की क्रांति थी। इस क्रांति ने रूस के सम्राट जार के एकतंत्रीय निरंकुश शासन का अंत कर मात्र लोकतंत्र की स्थापना का ही प्रयत्न नहीं किया अपितु सामाजिक आर्थिक और व्यवसायिक क्षेत्रों में कुलीनों पूँजीपतियों और जमींदारों की शक्ति का अंत किया तथा मजदूरों और किसानों की सत्ता को स्थापित किया। इस क्रांति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

(i) जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासनः- 1917 से पूर्व रूस में रोमनोव राजवंश का शासन था। इस समय रूस के सम्राट की जार कहा जाता था। जार निकोलस-II जिसके शासनकाल में क्रांति हुई राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था। उसे प्रजा के सुखः-दुख के प्रति कोई चिन्ता नहीं थी। जार ने जो अफसरशाही बनायी थी वह अस्थिर जड़ और अकुशल थी।

(ii) कृषकों की दयनीय स्थिति- रूस में जनसंख्या का बहुसंख्यक भाग कृषक ही थे, परन्तु उनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। 1861 ई. में जार एलेक्जेंडर द्वितीय के द्वारा कृषि दासता समाप्त कर दी गई थी, परन्तु इससे किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ था। खेत छोटे थे जिनपर वे पुराने ढंग से खेती करते थे। पूँजी का अभाव तथा करों के बोझ के कारण किसानों के पास क्रान्ति के सिवाय कोई विकल्प नहीं था।

(iii) औद्योगिकरण की समस्या – रूसी औद्योगीकरण पश्चिमी पूँजीवादी औद्योगीकरण से भिन्न था। यहाँ कुछ ही क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उद्योगों का संकेद्रण था। यहाँ राष्ट्रीय पूँजी का अभाव था। अतः उद्योगों के विकास के लिए विदेशी पूँजी पर निर्भरता बढ़ गई थी। विदेशी पूँजीपति आर्थिक शोषण को बढ़ावा दे रहे थे। अतः चारो ओर असंतोष व्याप्त था।

(iv) रूसीकरण की नीति- सोवियत रूस विभिन्न राष्ट्रीयताओं का देश था। यहाँ मुख्य रूप से स्लाव जाति के लोग रहते थे। इनके अतिरिक्त किन पोल, जर्मन, यहूदी आदि अन्य जातियों के भी लोग थे। रूस का अल्पसंख्यक समूह जार निकोलस-II द्वारा जारी की गई समीकरण की नीति से परेशान था। इसके अनुसार जार ने देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति लादने का प्रयास किया। 1863 में इस नीति के विरुद्ध पोोले ने विद्रोह किया जिसे निर्दयतापूर्वक दबा दिया गया लेकिन रूसी राजतंत्र के विरुद्ध उनका आक्रोश बढ़ता गया।

(v) विदेशी घटनाओं का प्रभाव- रूस की क्रांति में विदेशी घटनाओं की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण थी। सर्वप्रथम क्रीमिया के युद्ध 1854-56 में रूस की पराजय ने उस देश में सुधारों का युग आरम्भ किया। तत्पश्चात 1904-05 के रूस-जापान युद्ध ने रूस में पहली क्रांति को जन्म दिया और अंततः प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय ने बोल्शेविक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया।

(vi) बौद्धिक कारण- 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में रूस में बौद्धिक जागरण हुआ.जिसने लोगों को निरंकुश राजतंत्र के विरूद्ध बगावत करने की प्रेरणा दी। अनेक विख्यात लेखकों एवं बुद्धिजीवियों लियो टॉल्सटाय, तुर्गनेव फ्योदोर दोस्तोवस्की, मैक्सिम गार्की ने अपनी रचनाओं द्वारा सामाजिक अन्याय एवं भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था का विरोध कर एक नए प्रगतिशील समान के निर्माण का आह्वान किया। रूसी लोग विशेषतः किसान और मजदूर कार्ल मार्क्स के दर्शन सभी गहरे रूप से प्रभावित हुए। साम्यवादी घोषणा-पत्र और दास कैपिटल द्वारा मार्क्स ने सामाजिक विचारधारा और वर्ग-संघर्ष के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। मार्क्स के विचारों से श्रमिक वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ और वे शोषण और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने को तत्पर हो गए।