अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किस योजनाकाल में भारत में औद्योगिकीकरण का विचार प्रस्तुत किया गया ?
उत्तर-
द्वितीय पंचवर्षीय योजनाकाल में भारत में औद्योगिकीकरण का विचार प्रस्तुत किया गया।

प्रश्न 2.
1854 में भारतीय पूँजी से सबसे पहली सूती वस्त्र की मिल कहाँ स्थापित की गयी थी?
उत्तर-
1854 में भारतीय पूँजी से सबसे पहली सूती वस्त्र की मिल मुंबई में स्थापित की गयी थी।

प्रश्न 3.
भारत का कौन राज्य जूट उत्पादन में अग्रणी है ?
उत्तर-
भारत का पश्चिम बंगाल जूट उत्पादन में अग्रणी राज्य है।

प्रश्न 4.
टीटागढ़ का कागज कारखाना किस राज्य में अवस्थित है ?
उत्तर-
पश्चिम बंगाल में टीटागढ़ का कागज कारखाना अवस्थित है।

प्रश्न 5.
भारत का पहला इस्पात कारखाना किस नदी घाटी में स्थापित हुआ था? :
उत्तर-
भारत में पहला इस्पात कारखाना सबसे पहले 1830 ई. में तमिलनाडु में पोर्टोनोवा नदी घाटी में स्थापित हुआ था।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गौण उत्पाद किसे कहते हैं। एक उदाहरण दें।
उत्तर-
प्राकृतिक उत्पादों में कुछ ऐसे उत्पाद हैं जिन्हें अधिकाधिक उपयोग में लाने के लिए संसाधित करने की आवश्यकता होती है। प्राथमिक उत्पादों को संसाधित करने से जो उपयोगी. पदार्थ प्राप्त होते हैं उन्हें गौण उत्पाद कहते हैं। रूई से तैयार किया गया कपड़ा और लौह अयस्क से तैयार किया गया इस्पात गौण उत्पाद के उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
निर्माण उद्योग से आप क्या समझते हैं ? दो उदाहरण दें।
उत्तर-
अधिक-से-अधिक कच्चा माल जुटाकर इससे बहुमूल्य और अधिक उपयोगी वस्तुओं का अधिकाधिक उत्पादन करने की प्रक्रिया ही निर्माण उद्योग है, अपनी कार्यकुशलता और तकनीकी ज्ञान से जब मानव प्राथमिक उत्पादों को गौण उत्पादों में परिवर्तित करता है तो उसका यह प्रयास और क्रियाशीलन निर्माण उद्योग या सिर्फ निर्माण कहलाता है। उदाहरण के लिए, गन्ने के 10 टन रस से 1 टन चीनी ही बनती है, परन्तु इसका मूल्य रस के मूल्य से 10 गुना हो जाता है। इसी प्रकार कच्चे माल बहुत सस्ते होते हैं, परन्तु उनसे बना माल मूल्यवान हो जाता है। जंगल में पेड़ के पत्ते का कोई मूल्य नहीं, परन्तु उसी से पत्तल बनाकर बेचने पर आमदनी होने लगती है।

प्रश्न 3.
उद्योगों का विकास क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
उद्योगों के विकास से लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठता है। भारत में कृषि पर आधारित अनेक उद्योग स्थापित हैं। जैसे सूती-वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग, चाय, कॉफी, जूट उद्योग आदि। कुछ उद्योग कृषि के विकास में लगे हैं, जैसे उर्वरक उद्योगा ।

उद्योगों में आत्मनिर्भरता लाने के लिए उच्च कोटि की कार्यकुशलता और प्रतिस्पर्धा लाने की आवश्यकता है। जब तक औद्योगिक उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर का नहीं होगा, तब तक अन्य देशों से हम प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते हैं। विदेशी मुद्रा अर्जित करने के लिए हमें ऐसा करना जरूरी है। विदेशी मुद्रा अर्जित कर राष्ट्रीय सम्पत्ति बढ़ा सकते हैं और देश को खुशहाल बना सकते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत में लोहा-इस्पात उद्योग के विकास का सकारण विवरण दें।
उत्तर-
लोहा-इस्पात उद्योग खनिज पर आधारित उद्योगों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण उद्योग है। जिसपर आधुनिक युग के छोटे-बड़े सभी उद्योग आश्रित हैं। भारत में लौह-इस्पात उद्योग का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। दिल्ली स्थित जंगरहित लौह स्तम्भ भारत में प्राचीन काल से ही निर्मित होने वाले उत्तम किस्म के इस्पात का एक सुन्दर उदाहरण है। आधुनिक लोहा और इस्पात कारखानों की स्थापना सन् 1779 ई. में तमिलनाडु के दक्षिण में अर्काट जिले में की गई थी। सभी कच्चे मालों की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं होने के कारण यह कारखाना असफल रहा। पुनः 1874 ई. में पश्चिम बंगाल में कुल्टी नामक स्थान पर बराकर लौह कम्पनी स्थापित हुई जिसे ब्रिटिश सरकार ने सन् 1882 में अपने नियंत्रण में ले लिया 1918 ई. में हीरापुर में एक इस्पात कारखाने की स्थापना की गई।

1936 ई. में इसे कुल्टी कारखाने में मिलाकर 1952 में इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी का नाम दिया गया। स्वतंत्रता के पूर्व श्री जमशेद जी टाटा के द्वारा एक महत्वपूर्ण प्रयास के तहत 1907 में साकची नामक स्थान पर एक इस्पात कारखाना की स्थापना की गई जो अभी टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी के रूप में देश के निजी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण कारखाना है।

स्वतंत्रता के बाद भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत 6 नवीन कारखानों की स्थापना की गई है। ये हैं-राउरकेला (उड़ीसा), भिलाई (मध्य प्रदेश), विशाखापत्तनम् (आंध्र प्रदेश), बोकारो, दुर्गापुर, सलेम। उड़ीसा के पाराद्वीप और कर्नाटक के विजयनगर में अन्य कारखानों का निर्माण हो रहा है। नवीन औद्योगिक नीति के तहतं निजी क्षेत्र में इस उद्योग का तेजी से.विकास हो रहा है।

भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का विकास बहुत तेजी गति से हो रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि यहाँ उच्च कोटि का हेमाटाइट और मैग्नेटाइट लौह-अयस्क मिलता है, जिसमें 50% 70% तक लौहांश पाया जाता है। झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में इसका बहुल्य है। कोयले की प्राप्ति रानीगंज, झुरिया, गिरिडीह और बोकारो कोयला क्षेत्रों से की जाती है। गालक के रूप में प्रयुक्त होनेवाले खनिजों की भी यहाँ कमी नहीं है।

उड़ीसा के सुन्दरगढ़, झारखण्ड के राँची, छत्तीसगढ़ के दुर्ग और मध्य प्रदेश के सतना तथा कर्नाटक के शियोगा जिलों में चूनापत्थर के भण्डार मिलते हैं। डोलोमाइट, मैंगनीज और ऊष्मा सह पदार्थ (refractory materials) लौह अयस्क तथा कोयला क्षेत्रों के निकट सुलभ हैं। यही कारण है कि इन सारी आवश्यक सुविधाओं से लबरेज होने के कारण भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का विकास बहुत ही तेजी के साथ हो रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि इस विकास की गति को लम्बे समय तक बनाए रखना आवश्यक है। जिससे यहाँ इस उद्योग के विकास की गति और तेज हो सके। जिसके फलस्वरूप यहाँ के लोगों (मजदूरों) कोअधिक-से-अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकेंगे और देश का आर्थिक विकास भी अपनी चरम सीमा पर होगा।

प्रश्न 2.
भारत में सूती कपड़े या चीनी उद्योग का विकास किन क्षेत्रों में और किन कारणों से हुआ है ? विस्तृत विवरण दें।
उत्तर-
भारत सूती वस्त्र का निर्माता प्राचीनकाल से रहा है। मुगलकालीन भारत में ढाका का मलमल विश्वविख्यात था। परन्तु इंग्लैण्ड के औद्योगिक क्रांति ने इसे बर्बाद कर दिया।

आज फिर सूती वस्त्र उद्योग देश का बड़ा उद्योग बन गया है। औद्योगिक उत्पादन में इसका 20% योगदान है। इस उद्योग में लगभग डेढ़ करोड़ लोग लगे हैं। भारत में कुल निर्यात में इसका योगदान 25% है।

सूती-वस्त्र उद्योग की स्थापना सबसे अधिक महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में हुआ है। महाराष्ट्र में 122 कारखाने स्थापित हैं। केवल मुंबई महानगर में 62 कारखाने स्थापित हैं। गुजरात दूसरा बड़ा वस्त्र उत्पादक राज्य है। यहाँ 120 कारखाना स्थापित हैं जिनमें 72 कारखाने अहमदाबाद में स्थापित हैं।

महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में वस्त्र उद्योग के विकास का मुख्य कारण है कपास की पर्याप्त उपलब्धत, कपास एवं मशीनरी के आयात-निर्यात की सुविधा मुंबई और कांडला बन्दरगाह से प्राप्त है। कुशल कारीगर की उपलब्धता है।

इसके अतिरिक्त मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, प. बंगाल में भी सूती-वस्त्र उद्योग का अच्छा विकास हुआ है। इन जगहों पर सस्ते श्रमिक, परिवहन के साधन जल-विद्युत की सुविधा उपलब्ध होने के कारण विकास में मदद मिला है।

चीनी उद्योग कृषि पर आधारित उद्योग है। इसका कच्चा माल गन्ना हैं। चीनी उद्योग को गन्ना उत्पादक क्षेत्र में ही स्थापित करना उपयुक्त होता है। इसीलिए चीनी मिलें गन्ना उत्पादक ‘राज्यों में मुख्य रूप से स्थापित की गयी हैं। उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा राज्यों में चीनी की मिलें स्थापित की गयी हैं।उत्तर प्रदेश में चीनी की लगभग 100 मिलें हैं। यहाँ इसके लिए निम्नांकित सुविधाएं उपलब्ध है

  • गन्ने की अच्छी खेती
  • परिवहन की अच्छी व्यवस्था,
  • सस्ते श्रमिक और घरेलू बाजार।

1960 तक यह देश का प्रथम उत्पादक राज्य था। परंतु अब उत्पादन घट कर एक-चौथाई पर आ गया है।
बिहार राज्य में चीनी की बीसों मिलें स्थापित हैं, परंतु उत्पादन कम है। उत्तर भारत में पंजाब और हरियाणा राज्य में भी एक दर्जन से अधिक चीनी की मिलें स्थापित हैं।

दक्षिण भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में चीनी की मिलें स्थापित . हैं। महाराष्ट्र में चीनी मिलों के लिए निम्नांकित सुविधाएँ प्राप्त हैं-

  • गन्ने की प्रतिहेक्टेयर उपज अधिक, रस का अधिक मीठा होना और रस अधिक . निकलना।
  • उपयुक्त जलवायु।
  • यहाँ चीनी की मिलें स्वयं गन्ने की खेती करती हैं।
  • समुद्री तट के कारण निर्यात की सुविधा। चीनी उत्पादन में आज महाराष्ट्र देश में प्रथम स्थान प्राप्त कर चुका है।

प्रश्न 3.
उद्योगों से होनेवाले प्रदूषण को कम करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
उत्तर-
जब से भारत में औद्योगिकीकरण की शुरूआत हुयी है, तब से भारत में उद्योगों का विकास बहुत तेजी से हुआ है। उद्योगों के विकास होने से यहाँ आर्थिक विकास हुआ है और लोगों को रोजगार के भी अवसर अधिक मात्रा में उपलब्ध हुए हैं। लेकिन उद्योगों के विकास होने से एक ओर अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं तो दूसरी ओर इसके बुरे परिणाम भी हमें झेलने . . पड़ रहे हैं। उद्योगों के विकास होने से प्रदूषण को बढ़ावा मिला है। जो मानव और जीव-जन्तुओं के लिए हानिकारक हैं। लेकिन विगत वर्षों में सरकार द्वारा उचित कदम उठाए गये हैं।

उद्योगों से होनेवाले प्रदूषण को कम करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए

  • कारखानों में ऊंची चिमनियाँ लगायी जाएँ, चिमनियों में इलेक्ट्रोस्टैटिक अवक्षेपण, स्क्रबर । उपकरण तथा गैसीय प्रदूषक पदार्थों को पृथक करने के लिए उपकरण लगाए जाएँ।
  • तापीय विद्युत की जगह जलविद्युतं का उपयोग कर वायु प्रदूषण में कमी लायी जा सकती है।
  • नदियों में गर्म जल तथा अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका शोधन कर लिया जाए। औद्योगिक कचरों से मिले जल की भौतिक, जैविक तथा रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा शोधन कर पुनःचक्रण (recycling) द्वारा पुनः प्रयोग योग्य बनाया जाए। ..
  • मशीनों, उपकरणों तथा जेनरेटरों में साइलेंसर लगाकर ध्वनि प्रदूषण को रोका जाए। कारखानों में कार्यरत श्रमिकों को कानों पर शोर नियंत्रण उपकरण पहनने के लिए प्रेरित किया जाए।
  • भूमि पर औद्योगिक कचरों को बहुत दिनों तक जमा होने से रोका जाए। _ अतः स्पष्ट है कि कल-कारखाने वाले उद्योगों के बढ़ने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है। प्राकृतिक पर्यावरण की गुणवत्ता घटने लगती है। इसलिए इसे रोकने के लिए समुचित कदम उठाए जाने चाहिए।