अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एक बहराष्ट्रीय निगम क्या है?
उत्तर-
बहुराष्ट्रीय कंपनी या बहुराष्ट्रीय निगम वह है जिसका एक से अधिक देशों में वस्तुओं के उत्पादन पर नियंत्रण या स्वामित्व होता है। बहुराष्ट्रीय कंपनी की क्रियाएँ या व्यापार एक देश में सीमित न होकर अनेक राष्ट्रों में फैली रहती है।

प्रश्न 2.
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अन्य कंपनियाँ से किस प्रकार भिन्न होती है ?
उत्तर-
एक बहुराष्ट्रीय निगम वह है जिसका एक से अधिक देशों में वस्तुओं के उत्पादन पर नियंत्रण या स्वामित्व होता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विभिन्न देशों में पूँजी का निवेश करती है। तथा इनके द्वारा किया गया निवेश अरबों रुपयों में होता है। कोका-कोला, सैंमसंग, इंफोसिस इत्यादि इसी श्रेणी में आते हैं। परंतु अन्य कंपनियों का कार्य छोटे स्तरों पर होता है। एक क्षेत्र विशेष राज्य या देश स्तर पर ही अन्य कंपनियां अपनी उत्पादन प्रक्रिया को करती है।

प्रश्न 3.
विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ता है। कैसे?
उत्तर-
प्राचीनकाल से ही विदेश व्यापार विभिन्न देशों को परस्पर जोड़ने का माध्यम रहा है। दो देशों के बीच मुक्त व्यापार होने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन होता है। बाजार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं तथा दो बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एकसमान होने लगता है। इस प्रकार विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने अथवा एकीकरण में सहायक होता है।

प्रश्न 4.
क्या आप मानते हैं कि फोर्ड मोटर्स एक बहुराष्ट्रीय निगम है ?
उत्तर-
‘फोर्ड मोटर्स’ एक अमेरिकी कंपनी है तथा यह विश्व की बड़ी कार निर्माता कंपनियों में सबसे बड़ी है। उसका उत्पादन 26 अलग-अलग देशों में फैला हुआ हो। फोर्ड मोटर्स एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है।

प्रश्न 5.
विदेशी निवेश से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
बहुराष्ट्रीय कंपनी अथवा निगम अपने देश के बाहर दूसरे देशों में जो पूँजी लगाते हैं, उसे विदेशी निवेश कहते हैं। विदेशी निवेश का एकमात्र उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करनेवाले प्रमुख कारक क्या है ?
उत्तर-
वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करनेवाले प्रमुख कारक है- प्रौद्योगिकी, परिवहन प्रौद्योगिकी, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तथा विदेशी व्यापार तथा विदेशी निवेशों का उदारीकरण।

प्रश्न 7.
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होनेवाली प्रगति ने वैश्वीकरण को कैसे संभव बनाया है ?
उत्तर-
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होनेवाली प्रगति वैश्वीकरण और विभिन्न देशों के एकीकरण को संभव बनानेवाले कारकों में एक प्रमुख कारक है। परिवहन प्रौद्योगिकी में सुधार होने से सुदूर स्थानों में अधिक मात्रा में तथा कम समय में वस्तुओं को भेजा जा सकता है। तथा कम समय में वस्तुओं को भेजा जा सकता है। संचार और सूचना प्रौद्योगिकी ने भी विश्व के सभी भागों के निवासी को एक-दूसरे से संपर्क और सूचनाओं का आदान-प्रदान करने में सुलभता प्रदान की है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अतीत में विश्व के विभिन्न देशों को जोड़ने का प्रमुख माध्यम क्या था? अब वह किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर-
अतीत से ही विदेश व्यापार विभिन्न देशों की परस्पर जोड़ने का माध्यम रहा है। उस समय व्यापार सामुद्रिक मार्गों से होता था। वर्तमान में विदेशी व्यापार से उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों ही लाभान्वित होते हैं। दो देशों के बीच मुक्त व्यापार होने से वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं। तथा बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एकसमान होने लगता है। इस प्रकार पहले विदेश व्यापार दो देशों को जोड़ने का काम करता था परंतु आज विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने तथा एकीकरण का काम करता है।

प्रश्न 2.
विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
विदेशी व्यापार में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ या निगम वस्तुओं का विभिन्न देश में व्यापार कर लाभ अर्जित करता था। इसमें उत्पादक और उपभोक्ता दोनों लाभान्वित होते हैं। विभिन्न कंपनियों में प्रतियोगिता के कारण उनकी वस्तुओं की गुणवत्ता बढ़ जाती है। तथा कीमत में कमी आती है। विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने अथवा उनके एकीकरण में सहायक होता है।

विदेशी निवेश द्वारा बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूसरे देशों में उत्पादक कार्यों के निवेश करते हैं। वेदेशी निवेश का मुख्य उद्देश्य कंपनियों द्वारा लाभ अर्जित करना है।

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण प्रक्रिया में अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की क्या भूमिका है?
उत्तर-
वैश्वीकरण प्रक्रिया में अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों का महत्वपूर्ण योगदान है। बहराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन से उत्पादन में गुणात्मक परिवर्तन हुए हैं। आरंभ में उत्पादन मुख्यतया किसी देश की सीमाओं के भीतर ही होता था। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एक से अधिक देशों में वस्तुओं के उत्पादन पर नियंत्रण या स्वामित्व होता है। बहुराष्ट्रीय कंपनी विश्व स्तर पर अपनी उत्पाद को बेचता है। इस प्रकार वैश्वीकरण अथवा विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को जोड़ने में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का महत्वपूर्ण योगदान है।

प्रश्न 4.
विभिन्न देशों को जोड़ने और उनमें संबंध स्थापित करने के क्या तरीके हो सकते हैं?
उत्तर-
आर्थिक स्वतंत्रता एवं मुक्त व्यापार विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। विदेश व्यापार विभिन्न देशों को परस्पर जोड़ने का माध्यम रहा हो। विभिन्न देश इस प्रकार के तरीकों तथा अपनी नीतियों में सुधार कर विभिन्न देशों से संबंध स्थापित कर सकते हैं। इसमें उदारीकरण निजीकरण की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।

प्रश्न 5.
विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार सहायक होता है?
उत्तर-
प्राचीनकाल से ही विदेश व्यापार विभिन्न देशों को परस्पर जोड़ने का माध्यम रहा है। विदेश व्यापार उत्पादकों को घरेलू बाजार अर्थात् अपने देश के बाजार से बाहर के बाजारों में पहुँचने का अवसर प्रदान करता है। विभिन्न देशों के उत्पादकों में प्रतियोगिता के कारण वस्तुओं की लागत अर्थात् उत्पादन व्यय में कमी होती है। इससे कम मूल्य में ऐसी वस्तुओं के उपभोग का भी अवसर मिलता है। जिनका निर्माण देश में नहीं हो सकता है। इस प्रकार विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने अथवा उनके एकीकरण में सहायक होता है।

प्रश्न 6.
सचना प्रौद्योगिकी वैश्वीकरण से कैसे जुड़ी हुई है? क्या इसके प्रसार के बिना वैश्वीकरण संभव था?
उत्तर-
वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करनेवाले कारकों में परिवहन प्रौद्योगिकी से भी अधिक महत्वपूर्ण सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का विकास है। विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में इस प्रौद्योगिकी की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए इस प्रौद्योगिकी की उपलब्धता के कारण लंदन की प्रकाशक कंपनी अपनी प्रकाशन का सभी काम इंटरनेट के माध्यम से भारत के किसी कंपनी को देकर छपाई के कार्यों को कम कीमत में कर लाभ अर्जित कर सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी के विकास से कई प्रकार के नई औद्योगिक इकाईयों का विकास हुआ है। तथा वैश्वीकरण के ये अंग हो गये है। सूचना प्रौद्योगिकी के बिना इस प्रकार के वैश्वीकरण का आज अभाव पाया जा सकता था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बहुराष्ट्रीय निगमों से आप क्या समझते हैं ? इन्होंने किस प्रकार विभिन्न देशों के उत्पादन को जोड़ने का कार्य किया है ?
उत्तर-
बहुराष्ट्रीय कंपनी वह कंपनी है जिसका एक से अधिक देशों उत्पादन पर नियंत्रण एवं स्वामित्व होता है। ये कंपनियाँ विभिन्न देशों में पूँजी का निवेश करती है। जिनको प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश कहते हैं। कोका-कोला, सैमसंग, इंफोसिस इसी श्रेणी में आते हैं। इनके द्वारा किया गया निवेश अरबों रुपयों में होता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने विभिन्न देशों के उत्पादन को जोड़ने का कार्य किया है।

इन निगमों का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जित करना होता है। इसलिए ये कंपनियाँ या निगम उन देशों में अपने कारखाने और संयंत्र को स्थापित करते हैं जहाँ कम वेतन पर कुशल श्रमिक उपलब्ध हो, उत्पादन के कारकों की आपूर्ति सुनिश्चित हो तथा सड़क, बिजली पानी आदि जैसे आधारभूत संरचनात्मक सुविधाएँ वर्तमान हो। विदेशी उत्पादकों एवं निवेशकों के प्रति सरकार की नीति भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्थापित होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

कई बार बहुराष्ट्रीय निगम अन्य देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करते हैं। बहुराष्ट्रीय निगमों के निवेश का सबसे सामान्य तरीका अन्य देशों की स्थानीय कंपनियों को खरीदना और उसके पश्चात् उत्पादन का विस्तार करना है।

इस प्रकार, बहुराष्ट्रीय निगम कई प्रकार से अपने उत्पादन-कार्य का विस्तार कर रहे हैं। इनकी उत्पादक गतिविधियों से सुदूर स्थानों का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है तथा एक-दूसरे से जुड़ता जा रहा है।

प्रश्न 2.
1991 के आर्थिक सुधारों से आप क्या समझते हैं ? भारत में इन सुधारों की आवश्यकता क्यों हुई?
उत्तर-
आर्थिक सुधारों के अंतर्गत वे सभी तरीके शामिल है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए 1991 में अपनाए गए। इन सुधारों का मुख्य बल अर्थव्यवस्था की उत्पादकता और कुशलता में वृद्धि के लिए एक प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण का निर्माण करने पर है। हमारे देश में आर्थिक सुधारों का प्रारंभ विदेशी व्यापार की प्रतिकूलता तथा विभिन्न कारणों से देश में उत्पन्न विदेशी विनिमय के गंभीर संकट की पृष्ठभूमि में हुआ था। अतएव, आर्थिक सुधार की नीतियों में व्यापार एवं पूँजी प्रवाह संबंधी सुधारों को विशेष महत्व दिया गया है।

विगत वर्षों के अंतर्गत एशिया के कई कम विकसित देशों के तीव्र विकास से यह स्पष्ट हो गया है कि प्रशुल्क एवं व्यापार अवरोधों में कमी होने से निर्यात के साथ ही घरेलू बाजार के लिए उत्पादन बढ़ता है। इससे निर्यातों में वृद्धि होती है और आर्थिक संवृद्धि की दर तीव्र होती है। यही कारण है कि जुलाई 1991 से सरकार ने व्यापार के क्षेत्र में ऐसे कई सुधार किए हैं जो हमारे देश को विश्व अर्थव्यवस्था से जोड़ने में सहायक हुए हैं। इनमें रुपये का अवमूल्यन, व्यापार मंद में और इसके पश्चात चालू मद में रुपये की पूर्ण परिवर्तनशीलता, आयात प्रणाली का उदारीकरण, प्रशुल्क-दरों में कटौती तथा निर्यात-वृद्धि के लिए अपनाए गए उपाय महत्वपूर्ण हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (direct foreign investment) द्वारा सरकार ने पूँजी प्रवाह के अवरोधों को दूर करने का प्रयास किया है।

इस प्रकार, भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की दृष्टि से 1991 में प्रारंभ किए गए आर्थिक सुधार अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने आर्थिक विकास के लिए जो नीति अपनाई उसमें कई दोष थे। इस नीति के अंतर्गत देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र को आवश्यकता स अधिक महत्व दिया गया था, निजी निवेश एवं आयात-निर्यात पर कई प्रकार के नियंत्रण और प्रतिबंध लगाए गए थे तथा केंद्रीय नियोजन की नीति अपनाई गई थी। यह नीति लगभग 40 वर्षों तक लागू रही तथा बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया। इसका भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इसी समय कुछ अन्य घटनाएँ भी हुई जिनसे हमारा आर्थिक संकट और बढ़ गया।

इनमें सोवियत संघ का विघटन, खाड़ी युद्ध, सरकार के बजट, राजकोषीय घाटे ने अत्यधिक वृद्धि आदि महत्वपूर्ण थे। इसके फलस्वरूप; हमारे विदेशी व्यापार की प्रतिकूलता बहुत बढ़ गई और देश के सामने विदेशी विनिमय का गंभीर संकट उत्पन्न हो गया। अतः, जुलाई 1991 में भारत सरकार द्वारा आर्थिक नीति में सुधार की रणनीति अपनाई गई। इस नीति को नवीन आर्थिक नीति की संज्ञा दी गई तथा उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण इसके प्रमुख अंग हैं। यही कारण है इस नीति को उदारीकरण, निजीकरण एव वैश्वीकरण(liberalisation, privatisation and globalisation, LPG) की नीति भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
उदारीकरण से आप क्या समझते हैं ? इस दृष्टि से भारत सरकार की वर्तमान नीति क्या है?
उत्तर-
प्रायः, सरकारें विदेश व्यापार पर कई प्रकार क नियंत्रण या प्रतिबंध लगा देती हैं जिन्हें व्यापार अवरोधक कहते हैं। किसी भी देश की सरकार व्यापार अवरोधक का प्रयोग अपने विदेश व्यापार में कमी या वृद्धि तथा आयातित वस्तुओं की मात्रा या प्रकार को निर्धारित करने के लिए कर सकती है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने भी विदेश व्यापार पर कई प्रकार के नियंत्रण और प्रतिबंध लगा दिए थे। घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए तथा उन्हें विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए यह आवश्यक माना गया था।

लेकिन, कुछ समय पूर्व सरकार ने यह अनुभव किया कि अब भारतीय उत्पादकों के लिए विदेशी प्रतिस्पर्धा का सामना करने का समय आ गया है। अतः, उसने अपनी नवीन आर्थिक नीति के अंतर्गत अर्थव्यवस्था को खोलने तथा अनावश्यक नियंत्रणों को समाप्त करने का एक व्यापक कार्यक्रम अपनाया है जिसे उदारीकरण की संज्ञा दी जाती है।

प्रायः, सरकारें विदेशी व्यापार पर कई प्रकार के नियंत्रण या अवरोध लगा देती है जिन्हें व्यापार अवरोधक (trade barrier) कहते हैं। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने भी विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर कई प्रकार के नियंत्रण और प्रतिबंध लगा दिए थे। घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देने तथा देश के उत्पादकों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए यह आवश्यक माना गया था। 1950 एवं 1960 के दशक भारतीय उद्योगों के विकास के प्रारंभिक चरण थे।

इस अवस्था में विदेशी प्रतियोगिता इनके लिए घातक हो सकती थी। यही कारण है कि इस काल में सरकार ने मशीनरी, पेट्रोलियम, उर्वरक आदि जैसी कुछ अति आवश्यक वस्तुओं के आयात की ही अनुमति प्रदान की थी। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि विश्व के सभी विकसित देशों ने अपने विकास के प्रारंभिक काल में घरेलू उत्पादकों को विभिन्न प्रकार से संरक्षण प्रदान किया है।

लेकिन, कुछ समय पूर्व सरकार ने यह अनुभव किया कि अब भारतीय उद्योगों के लिए विश्व प्रतिस्पर्धा का सामना करने का समय आ गया है। अतएव, उसने 1991 में अपनी आर्थिक नीतियों में कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए जिन्हें नवीन आकि नीति (NewEconomic Policy, NEP) की संज्ञा दी गई है। इस नीति के लागू होने के बाद अर्थव्यवस्था को अधिक उदार बनाने के लिए सरकार ने विभिन्न नियंत्रणों को समाप्त करने का एक व्यापक कार्यक्रम अपनाया है। इसके अंतर्गत निर्यात एवं आयात की अधिकांश वस्तुओं को लाइसेंस-मुक्त कर दिया गया है तथा विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर लगाए गए अधिकांश नियंत्रण और प्रतिबंध हटा दिए गए हैं।