अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर


प्रश्न 1.
देश के मानक को कौन-सी संस्था निर्धारित करती है ?
उत्तर-
डायरेक्टोरेट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड स्टेटिस्टिक्स।

प्रश्न 2.
शरत की प्रतिव्यक्ति आय अमेरिकी प्रतिव्यक्ति आय का कौन-सा हिस्सा है ?
उत्तर-
1/48 वाँ।

प्रश्न 3.
बिहार राज्य के घरेलु उत्पाद में किस क्षेत्र का सर्वाधिक योगदान होता है ?
उत्तर-
तृतीयक अथवा सेवा क्षेत्र का।

प्रश्न 4.
बिहार राज्य की वर्तमान विकास दर क्या है ?
उत्तर-
प्रतिशत।

प्रश्न 5.
राष्ट्रीय आय क्या है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय किसी देश के अंदर एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है। जिसमें विदेशों से प्राप्त होनेवाली आय भी सम्मिलित है।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय आय का सृजन किस प्रकार होता है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का सृजन अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन प्रक्रिया के अंतर्गत होती है।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आय को साधन लागत पर राष्ट्रीय आय क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का उत्पादन के साधनों पर वितरण होने के कारण इसे साधन लागत पर राष्ट्रीय आय कहा जाता है।

प्रश्न 8.
भारत में राष्ट्रीय आय की गणना किस संस्था द्वारा की जाती है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय की गणना केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा की जाती है।

प्रश्न 9.
प्रतिव्यक्ति आय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर
किसी देश की कुल आय में कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है वह उस देश की औसत या प्रतिव्यक्ति आय कहलाती है।

प्रश्न 10.
बिहार की प्रतिव्यक्ति आय कम होने के क्या कारण है ?
उत्तर-
जनसंख्या वृद्धि, आंचलिक विषमता तथा कमजोर प्रशासन बिहार की प्रतिव्यक्ति आय कम होने के कारण है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राज्य घरेलु उत्पाद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
एक लेखा वर्ष में राज्य में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं को जो बाजार मूल्य
के बराबर होता है राज्य घरेलु उत्पाद कहे जातवे हैं। इसमें राज्य के विभिन्न क्षेत्रों, कृषि, पशुपालन, उद्योग आदि के द्वारा कुल उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सम्मिलित रहता है।

प्रश्न 2.
सकल राज्य घरेलू उत्पाद और शुद्ध राज्य घरेलु उत्पाद में अंतर कीजिए।
उत्तर-
सकल राज्य घरेलु उत्पाद राज्य की सीमाओं के अंदर एक लेखा वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है। इसमें सभी क्षेत्रों द्वारा, उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सम्मिलित रहता है। ” शुद्ध राज्य घरेलु उत्पाद सकल राज्य घरेलु उत्पाद में से व्यय के मदों को घटाने के बाद प्राप्त किया जाता है। इसपर राज्य का प्रतिव्यक्ति आय तथा उनका जीवन स्तर निर्भर करता है।

प्रश्न 3.
हम स्थिर मूल्यों पर भी राज्य घरेलु उत्पाद का आकलन क्यों करते हैं?
उत्तर-
किसी राज्य के वास्तविक उत्पादन में बढ़ोतरी या कमी हुई है यह ज्ञात करने के लिए हम स्थिर मूल्यों पर राज्य घरेलु उत्पाद का आकलन करते हैं। स्थिर मूल्यों पर तुलना से राज्य के आर्थिक विकास एवं प्रगति की सही जानकारी मिलती है।

प्रश्न 4.
कुल घरेलु उत्पाद क्या है ?
उत्तर-
किसी देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर एक लेखा वर्ष में उत्पादित. अंतिम वस्तुओं
और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य कुल घरेलु उत्पाद है। यह धारणा बंद अर्थव्यवस्था से संबद्ध है।
इसमें कुल घरेलु उत्पादन और कुल राष्ट्रीय उत्पादन दोनों एक दूसरे के बराबर होते हैं।

प्रश्न 5.
कुल राष्ट्रीय उत्पादन तथा शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन में अंतर कीजिए।
उत्तर-
किसी भी देश में एक वर्ष के अंतर्गत जिन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन तथा विनिमय होता है उनके बाजार मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहते हैं। कुल राष्ट्रीय उत्पादन में चालू वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य ही शामिल रहता है।
परंतु शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन में घिसावट आदि का खर्च निकाल देने के बाद जो कुल राष्ट्रीय उत्पादन में शेष बचता है, वह शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन है। शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन को बाजार मूल्य के रूप में राष्ट्रीय आय भी कहते हैं।

प्रश्न 6.
भारत की राष्ट्रीय आय का अनुमान बताइए। क्या योजना-काल में हमारी राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई है ?
उत्तर-
सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने 1868 में भारत की राष्ट्रीय आय 340 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार ने राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के लिए 1949 में प्रो० पी० सी० महालनोविस की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आय समिति नियुक्त किया। 1951-52 से केंद्रीय सांख्यिकी संगठन नियमित रूप से राष्ट्रीय आय और उससे संबंधित तथ्यों का अनुमान लगाती है।
योजनाकाल में भारत की राष्ट्रीय आय में सामान्यता वृद्धि हुई है। 1951 से 2003 के बीच राष्ट्रीय आय एवं कुल उत्पादन में 8 गुणा से भी अधिक वृद्धि हुई है।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आय क्या है तथा इसका सृजन किस प्रकार होता है ?
उत्तर-
यदि किसी देश के प्राकृतिक साधनों पर श्रम और पूँजी लगाकर उनका उपयोग किया जाता है तो उससे प्रत्येक वर्श एक निश्चित मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। सरल शब्दों में, यह देश की राष्ट्रीय आय है। इस प्रकार, राष्ट्रीय आय एक निश्चित अवधि में देश के कुल उत्पादन का मौद्रिक मूल्य है तथा वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन प्रक्रिया में ही इसका सृजन होता है। आय एक प्रवाह.है तथा कुल उत्पादन का प्रवाह ही कुल राष्ट्रीय आय का प्रवाह उत्पन्न करता है। अतः, कुल राष्ट्रीय आय और कुल राष्ट्रीय उत्पादन दोनों एक-दूसरे के बराबर होते हैं।

प्रश्न 8.
प्रतिव्यक्ति आय क्या है ? प्रतिव्यक्ति आय और राष्टीय आय में क्या संबंध है?
उत्तर-
प्रतिव्यक्ति आय किसी देश के नागरिकों की औसत आय है। कुल राष्ट्रीय आय में .
कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय कहते हैं। इस प्रकार, प्रतिव्यक्ति आय की धारणा राष्ट्रीय आय से जुड़ी हुई है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर प्रतिव्यक्ति आय में भी वृद्धि होती है। लेकिन, राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर प्रतिव्यक्ति आय में प्रत्येक अवस्था में वृद्धि नहीं होगी। यदि आय में होनेवाली वृद्धि के साथ ही किसी देश की जनसंख्या भी उसी अनुपात में बढ़ जाती है तो प्रतिव्यक्ति आय नहीं बढ़ेगी और लोगों के जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं होगा। इसी प्रकार, यदि राष्ट्रीय आय की तुलना में जनसंख्या की वृद्धि-दर अधिक है तो प्रतिव्यक्ति आय घट जाएगी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय के मापन में आनेवाली विभिन्न कठिनाईयों का वर्णन करें। उत्तर- राष्ट्रीय आय को मापने में निम्नलिखित कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं-

  • पर्याप्त एवं विश्वस्त आंकड़ों की कमी-राष्ट्रीय आय की गणना की अच्छी से अच्छी प्रणाली भी अपनाने पर पर्याप्त एवं विश्वसनीय आँकड़ों की कमी रहती है। पिछड़े देशों की अर्थव्यवस्था के साथ.यह समस्या अधिक है।
  • दोहरी गणना की संभावना_राष्ट्रीय आय की गणना करते समय कई बार एक ही आय को दुबारा दूसरे के आय में गिन लिया जाता है। उदाहरण के लिए एक व्यापारी और उसके कर्मचारी की आय को अलग-अलग जोड़ना दोहरी गणना की संभावना हा
  • मौद्रिक विनिमय प्रणाली का अभाव किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादित बहुत-सी वस्तुओं का मुद्रा के द्वारा विनिमय नहीं होता हैं। उत्पादक कुछ वस्तुओं का स्वयं उपभोग कर लेते हैं। या उनका अन्य वस्तुओं से दूसरे उत्पादक से अदल-बदल कर लेते हैं। इस प्रकार ऐसी वस्तुओं का मूल्यांकन किस प्रकार किया जाए यह समस्या राष्ट्रीय आय को मापने में आती है।

प्रश्न 2.
कुल राष्ट्रीय आय की धारणा कुल राष्ट्रीय उत्पादन की धारणा पर आधारित है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
कुल राष्ट्रीय उत्पादन एक वर्ष के अंतर्गत जिन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है उनके मौद्रिक मूल्य को कहते हैं। कुल राष्ट्रीय उत्पादन में केवल चालू वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य ही शामिल रहता है।
कुल राष्ट्रीय आय की धारणा कुल राष्ट्रीय उत्पादन की धारणा, पर आधारित है। क्योंकि हम जानते हैं कि अर्थव्यवस्था में उत्पादन प्रवाह के द्वारा आय के प्रवाह का निर्माण होता है। कुल राष्ट्रीय उत्पादन का प्रवाह ही कुल राष्ट्रीय आय का प्रवाह उत्पन्न करता है।
इसलिए उत्पादन के साधनों द्वारा अर्जित आय राष्ट्रीय उत्पादन की सृष्टि करते हैं जो कुल राष्ट्रीय आय के बराबर होता है। इस प्रकार, कुल राष्ट्रीय आय और कुल राष्ट्रीय उत्पादन दोनों समान होते हैं। तथा इनमें कोई मौलिक अंतर नहीं है।
इस तरह कुल राष्ट्रीय की धारणा कुल राष्ट्रीय उत्पादन की धारणा पर आधारित है।

प्रश्न 3.
किसी देश के आर्थिक विकास में राजकीय, राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय का क्या योगदान होता है?
उत्तर-
राजकीय आय का अभिप्राय राज्य अथवा सरकार को प्राप्त होनेवाली समस्त आय से है। आधुनिक सरकारों का उद्देश्य देश में लोककल्याणकारी कार्यों को कर आर्थिक विकास करना है। स्पष्ट है कि राजकीय आय अधिक होने पर ही सरकार विकास कार्यों में अधिक योगदान कर सकती है। अर्द्धविकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सरकार के सहयोग से ही सुदृढ़ आर्थिक संरचना का निर्माण किया जा सकता है।

आर्थिक विकास का राष्ट्रीय आय से घनिष्ठ संबंध है। देश के आर्थिक विकास के लिए राष्ट्रीय आय में वृद्धि आवश्यक है। सामान्यता राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर देशवासियों की प्रतिव्यक्ति आय भी बढ़ती है। इस प्रकार राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होने पर देशवासियों के जीवन स्तर में सुधार होता है जो देश के आर्थिक विकास का सूचक है।

इस प्रकार किसी भी देश के आर्थिक विकास में राजकीय, राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय का महत्वपूर्ण योगदान होता है। ये तीनों ही हमारे आर्थिक जीवन रहन-सहन के स्तर और विकास को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
आधुनिक समय में राष्ट्रीय आय की धारणा को प्रायः उत्पादन के साधनों की आय के रूप में व्यक्त किया जाता है तथा इसकी उत्पत्ति अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन प्रक्रिया में होती है।

राष्ट्रीय आय की अवधारणा का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करने के लिए अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह को समझना अत्यंत आवश्यक है। आय एक प्रवाह है तथा इसका सृजन उत्पादक क्रियाओं द्वारा होता है। यद्यपि सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं का अंतिम उद्देश्य उपभोग द्वारा मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि है, लेकिन उत्पादन के बिना उपभोग संभव नहीं होगा। वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन, उत्पादन के चार साधनों-भूमि, श्रम, पूँजी एवं उद्यम के सहयोग से होता है। उत्पादन के ये साधन एक निश्चित अवधि में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं। यह उत्पादन प्रक्रिया का एक पक्ष है।

परंतु, इसका एक दूसरा महत्त्वपूर्ण पक्ष भी है जिसका संबंध उत्पादन के उन साधनों की आय या पारिश्रमिक से है जिन्होंने इन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया है। इस प्रकार, उत्पादन प्रक्रिया के द्वारा अर्थव्यवस्था में जहाँ एक ओर वस्तुओं और सेवाओं का निरंतर एक प्रवाह जारी रहता है वहाँ एक दूसरा प्रवाह उत्पादन के साधनों की आय के रूप में होता है। यदि हम किसी देश की अर्थव्यवस्था को उत्पादक उद्योगों एवं उपभोक्ता परिवारों के दो क्षेत्र में विभक्त कर दें तो हम देखेंगे कि इनके बीच उत्पादन, आय एवं व्यय का निरंतर एक प्रवाह चल रहा है। उत्पादक या उद्यमी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इसके लिए उन्हें उत्पादन के साधनों की सेवाओं की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, उत्पादन के क्रम में साधनों की आय का सर्जन होता है। उत्पादक उत्पादन के साधनों को उत्पादन क्रिया में भाग लेने के लिए उन्हें जो भुगतान करता है वह उनकी आय कहलाती है।

परंतु, किसी भी उत्पादक को उत्पादन के साधनों के पारिश्रमिक का भुगतान करने के लिए आवश्यक साधन कहाँ से प्राप्त होते हैं ? वह अपनी उत्पादित वस्तुओं को उपभोक्ता परिवारों के हाथ बेचता है जिससे उसे आय प्राप्त होती है। इसी आय से वह इन साधनों का पारिश्रमिक चुकाता है। विभिन्न उपभोक्ता परिवार ही उत्पादन के साधनों के स्वामी होते हैं तथा उत्पादन के साधन के रूप में उनहें लगान, मजदूरी, ब्याज एवं लाभ प्राप्त होता है। यह उनकी आय होती है। इस – आय को वे पुनः वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करते हैं। इस प्रकार, हम देखते हैं कि अर्थव्यवस्था में उत्पादकों से साधन आय के रूप में आय का चक्रीय प्रवाह उपभोक्ता परिवारों के पास पहुँचता है और पुनः इन परिवारों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं पर किए जानेवाले व्यय के माध्यम से उत्पादकों के पास आ जाता है। आय का यह प्रवाह निरंतर जारी रहता है तथा इसे आय का चक्रीय प्रवाह (circular flow of income) कहते हैं।