अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किसने कहा था कि अर्थव्यवस्था आजीविका अर्जन की एक प्रणाली है।
उत्तर-
ब्राइन ने।

प्रश्न 2.
समावेशी विकास क्या है ?
उत्तर-
समाज के सभी वर्गों का सामूहिक विकास।

प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था क्या है ?
उत्तर-
जीवनयापन के लिए अपनाई गई आर्थिक व्यवस्था।

प्रश्न 4.
आर्थिक विकास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
उत्पादन एवं आय में होनेवाले वृद्धि से।

प्रश्न 5.
राष्ट्रीय आय क्या है ?
उत्तर-
एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य जिसमें विदेशों से प्राप्त होनेवाले आय भी सम्मिलित होते हैं। ….

प्रश्न 6.
प्रतिव्यक्ति आय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
देश की कुल राष्ट्रीय आय में कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय कहते हैं।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आय का जनसंख्या से क्या संबंध है ?
उत्तर-राष्ट्रीय आय का जनसंख्या से आर्थिक विकास में उल्टा संबंध है। राष्ट्रीय आय की अपेक्षा जनसंख्या में वृद्धि होने से प्रतिव्यक्ति आय घट जाएगी और आर्थिक विकास की दर कम के हो जाएगी।

प्रश्न 8.
दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण मापदंड क्या है?
उत्तर-
प्रति व्यक्ति आय।

प्रश्न 9.
आय के अतिरिक्त कुछ अन्य कारकों के उदाहरण दें जो हमारे जीवन स्तर को प्रभावित करते हैं।
उत्तर-
उत्पादन, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा इत्यादि।

प्रश्न 10.
जीवन की भौतिक गुणवत्ता के तीन प्रमुख सूचक क्या हैं ?
उत्तर-
जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्युदर तथा मौलिक साक्षरता।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एक अर्थव्यवस्था के कार्यों का संक्षेप में उल्लेख करें।
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था का मुख्य कार्य मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करना है। कृषि एवं उद्योग इन सभी प्रकार की भौतिक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इन कार्यों के संचालन के लिए सहायक संरचनाएँ जैसे—पूँजी, ढाँचा, सामाजिक और आर्थिक सहायक या आधार संरचना होती है।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय आय क्या है? क्या यह दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए पर्याप्त है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय किसी देश के अंदर एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित होती है। राष्ट्रीय आयों से देशों के आर्थिक विकास के स्तर की तुलना करना पर्याप्त नहीं है क्योंकि जनसंख्या असामान्य हो सकती है। इसलिए दो देशों के विकास के स्तर की तजुलना करने के लिए प्रतिव्यक्ति आय का प्रयोग लगातार बढ़ रहा है।

प्रश्न 3.
विश्व बैंक विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए किस प्रमुख मापदंड का प्रयोग करता है ? इस मापदंड की क्या सीमाएँ हैं ?
उत्तर-
विश्व बैंक विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए प्रति व्यक्ति आय का प्रयोग प्रमुख मापदंड के रूप में 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report2006) में किया है। 2004 में जिन देशों की प्रति व्यक्ति आय 4,53,000 रुपये प्रतिवर्ष या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध देश तथा जिन देशों की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 37,000 रुपए या उससे कम थी उन्हें निम्न आयवाले देशों की श्रेणी में रखा। परंतु प्रति व्यक्ति आप आय के वितरण की असमानताओं को छिपा देता है।

प्रश्न 4.
औसत अथवा प्रतिव्यक्ति आय क्या है ? विश्व बैंक ने इस आधार पर विभिन्न देशों का किस प्रकार वर्गीकरण किया है ? ।
उत्तर-
देश की कुल जनसंख्या से राष्ट्रीय आय में भाग देने से जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय अथवा औसत आय कहते हैं। विश्व बैंक इस आधार पर उच्च आय वाले देश (विकसित देश) और निम्न आय वाले देश (विकासशील देश) के रूप में देशों का वर्गीकरण करते हैं।

प्रश्न 5.
विकास को मापने का संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू. एन. डी. पी.) का मापदंड किस प्रकार विश्व बैंक के मापदंड से अलग है ?
उत्तर-
विश्व बैंक ने 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report-2006) में विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने में प्रतिव्यक्ति आय को मापदंड के रूप में प्रयोग किया है। परंतु संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू. एन. डी. पी.) विभिन्न देशों की तुलना या वर्गीकरण करने में मानव विकास प्रतिवेदन (Human Development Report) जो 1990 से प्रति वर्ष एकाशित कर रही है मापदंड के रूप में प्रयोग करती है। इसमें देशों के शैक्षिक स्तर, स्वास्थ्य-स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार के रूप में लिया जाता है।

प्रश्न 6.
हम औसत शब्द का प्रयोग क्यों करते हैं ? इसके प्रयोग की क्या सीमाएँ हैं ? विकास से जुड़े उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर- औसतच्या प्रतिव्यक्ति आय किसी देश के विकास की जानकारी प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण मापदंड है। इसके द्वारा दो या दो से अधिक देशों के विकास के स्तर की तुलना करते हैं। पर यह धारणा आय के वितरण की असमानताओं को छिपा देता है। उदाहरण के लिए औसत आय से किसी देश के नागरिकों का आय का वितरण तथा जीवन-स्तर, शिक्षा, स्वास्थ्य के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं मिलती है। जो आर्थिक विकास के मापदंड है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्थिक विकास एवं मौद्रिक विकास में क्या अंतर है ? वर्णन करें।
उत्तर-
आर्थिक विकास का अर्थ है देश के प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के कुशलतम प्रयोग द्वारा राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि करना है। इस तरह आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों में उत्पादकता का ऊँचा स्तर प्राप्त करना होता है। – मौद्रिक विकास के अन्तर्गत मुद्रा के प्रादुर्भाव से आधुनिक मुद्रा के प्रचलन तक के काल को सम्मिलित करते हैं। मुद्रा के आगमन से पूर्व वस्तु-विनिमय प्रणाली का प्रचलन था। इसके बाद सिक्कों तथा कागजी मुद्रा (पहली बार चीन में) में प्रचलन में आया। वर्तमान में प्लास्टिक मुद्रा जैसे ए.टी.एम. एवं क्रेडिट कार्ड का प्रचलन है।

प्रश्न 2.
विकास की अवधारणा को स्पष्ट करें। किस आधार पर कुछ देशों को विकसित और कुछ को अविकसित कहा जाता है ?
उत्तर-
आर्थिक विकास की कई अवधारणाएँ है तथा इनका क्रमिक विकास हुआ है। प्रारम्भ में आर्थिक विकास का अर्थ उत्पादन एवं आय में होनेवाली वृद्धि से लगाया जाता है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार “आर्थिक विकास का अर्थ देश के प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के कुशल प्रयोग द्वारा राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि करना है। परंतु कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाली वृद्धि आर्थिक विकास का सूचक नहीं है। किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास राष्ट्रीय आय का वितरण, नागरिकों के सामान्य जीवन में सुधार एवं आर्थिक कल्याण पर निर्भर करता है।

विश्व बैंक ने 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report-2006) में राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाले वृद्धि के आधार पर कुछ देशों को विकसित और कुछ को अविकसित कहा है। विश्व बैंक के अनुसार 2004 में जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय 4,53,000 रुपये प्रतिवर्ष वार्षिक आय या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध या विकसित देश तथा वे देश जिनकी प्रतिवर्ष वार्षिक आय 37,000 रुपए या उससे कम थी उन्हें निम्न आयवाले या विकासशीवल देश की संज्ञा दी। दो अर्थव्यवस्थाओं के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए तथा विकसित तथा अर्द्धविकसित देशों का वर्गीकरण करने के लिए भी राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय को संकेतक के रूप में प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 3.
विकास के लिए प्रयोग किए जानेवाले विभिन्न मापदंडों अथवा संकेतों का उल्लेख करें।
उत्तर-
राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाली वृद्धि आर्थिक विकास को मापने का एक महत्वपूर्ण मापदंड है। परंतु, इनमें कुछ कमियाँ हैं। प्रतिव्यक्ति आय या औसत आय द्वारा दो या दो से अधिक देशों के विकास के स्तर की तुलना करते हैं। प्रतिव्यक्ति आप आय के वितरण की असमानता छिपा देता है।

इस प्रकार प्रतिव्यक्ति आय की सीमितताओं के कारण आर्थिक एवं सामाजिक विकास के । कुछ वैकल्पिक संकेतकों का विकास किया गया।
. जीवन की भौतिक गुणवत्ता के सूचक (Physical Quality of life Index) मोरिस डी. मोरिस के अनुसार किसी देश के आर्थिक विकास को जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्युदर तथा मौलिक साक्षरता के सूची के अनुसार मापा जा सकता है।

मानव विकास सूचकांक (Human DevelopmentIndex) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन०डी०पी०) के मानव विकास प्रतिवेदन (Human Development Report) के अनुसार विभिन्न देशों की विकास की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर की जाती है। इस मानव विकास प्रतिवेदन में कई नए घटक जैसे नागरिकों का जीवन स्तर उनका स्वास्थ्य एवं कलयाण जैसे विषय जोड़े गए है।

प्रश्न 4.
विकास की धारणीयता क्यों आवश्यक है ? विकास का वर्तमान स्तर किन कारणों से धारणीय नहीं है ?
उत्तर-
आर्थिक विकास को मापने के लिए किसी देश की आर्थिक विकास की धारणीयता को भी समझना आवश्यक है। विकसित देश विकास की प्रक्रिया में विकास का स्तर ऊंचा करने का या विकास के स्तर को भावी पीढ़ी के लिए बनाये रखने का प्रयास करेंगे। ठीक उसी प्रकार विकासशील देशों की स्थिति रहेगी। जो स्पष्ट रूप से वांछनीय है।

लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार विकास का वर्तमान प्रकार एवं स्तर धारणीय नहीं है। इसके कारण निम्नलिखित है।

  • आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक विदोहन तथा दुरुपयोग।
  • पर्यावरण संबंधी समस्याएं।
  • जंगलों का नष्ट होना तथा
  • भूमिगत जल का अति उपयोग।

विकास की प्रक्रिया को निरंतर बनाये रखने के लिए ही धारणीयता विकास की अवधारणा का जन्म हुआ। निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि विकास की प्रक्रिया एक दीर्घकालीन एवं निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है। अतएव हमें समय-समय पर अपने लक्ष्यों में परिवर्तन एवं : संशोधन करने की आवश्यकता है।