अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वित्तीय संस्थाओं का मुख्य कार्य क्या है ?
उत्तर-
वित्तीय संस्थाओं का मुख्य कार्य जमा स्वीकार करना अल्पकालीन या दीर्घकालीन साख या ऋण को देना है। वित्तीय संस्थाएँ व्यावसायिक संस्थाओं को वित्तीय सुविधाएँ जैसे ड्राफ्ट और साख पत्र जारी करना, ऋण-पत्रों की गारंटी इत्यादि देने का कार्य भी करती है।

प्रश्न 2.
छोटे किसानों को वित्त या साख की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर-
छोटे किसानों की आर्थिक तंगी के कारण खाद, बीज, हल बैल आदि खरीदने के लिए अल्पकालीन या मध्यकालीन तथा कृषि के क्षेत्र में स्थायी सुधार के लिए दीर्घकालीन साख की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 3.
बैंकों के ऋण-जमा अनुपात का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
ऋण जमा अनुपात का अभिप्राय राज्य में बैंकों द्वारा एकत्र किए गए जमा में से ऋण की मांग पूरी करने हेतु दी गई राशि के परिमाण से है। .

प्रश्न 4.
बिहार में सहकारी वित्तीय संस्थाओं की क्या स्थित है ?
उत्तर-
सहकारी वित्तीय संस्थाओं की बिहार में स्थिति संतोषजनक नहीं है। राज्य के कृषि ऋणों में सहकारी बैंकों की हिस्सेदारी मात्र 10 प्रतिशत है तथा राज्य के 16 जिलों में इन बैंकों
का कोई अस्तित्व नहीं है।

प्रश्न 5.
सहकारिता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
सहकारिता एक ऐच्छिक संगठन है जो सामान्य आर्थिक एवं सामाजिक हितों की वृद्धि के लिए समानता के आधार पर स्थापित किया जाता है। सहकारिता का अर्थ मिलकर कार्य करना है।

प्रश्न 6.
प्रारंभिक कृषि-साख समितियाँ क्या है?
उत्तर-
प्रारंभिक कृषि-साख समितियाँ एक ग्राम स्तर पर स्थापित किया जाता है। प्रारंभिक कृषि-साख समितियाँ प्रायः उत्पादक कार्यों के लिए किसानों को अल्पकालीन तथा मध्यकालीन ऋण प्रदान करती है।

प्रश्न 7.
सहकारी विक्रय समितियाँ क्या है ?
उत्तर-
सहकारी विक्रय समितियाँ गैर साख कृषि समितियाँ है। सहकारी वित्तिय समितियाँ अपने सदस्यों द्वारा उत्पादित फसल को बेचने के लिए प्रतिनिधि का कार्य करती है तथा साथ ही उनकी उपज के बदले ऋण प्रदान करती है।

प्रश्न 8.
स्वयं-सहायता समूह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
स्वयं-सहायता समूह ग्रामीण निर्धन परिवारों तथा विशेषकर महिलाओं के सहायता के लिए अपनाया गया एक तरीका है। इसमें गाँव के व्यक्ति या महिलाएं ही 15 से 20 सदस्यों को संगठित कर अपने विकास के लिए नियमित छोटे बचत कर संगठन या समूह का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 9.
स्वयं-सहायता समूहों के संचालन में महिलाओं की क्या भूमिका होती है ?
उत्तर-
स्वयं सहायता समूह में ग्रामीण क्षेत्र के निर्धन व्यक्तियों विशेषकर महिलाओं को छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करना है। महिलाओं को आत्मनिर्भर तथा स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से उनके समुहों को बैंक लघु ऋण उपलब्ध कराती है। इसलिए महिलाओं की भूमिका स्वयं सहायता समूहों में महत्वपूर्ण हो जाती है।

प्रश्न 10.
स्वयं-सहायता समूहों से निर्धन परिवारों को क्या लाभ हुआ है ?
उत्तर-
स्वयं-सहायता समूहों का निर्माण मुख्यतः निर्धन परिवारों की सहायता के लिए अपनाया गया एक तरीका है। इसके माध्यम से सरकार अथवा बैंक उन्हें कर्ज से उबरने में सहायता प्रदान करती है। इससे किसानों की जमीन की सुरक्षा तथा सेठ, साहुकारों के चंगुल से बचने में सहायता प्रदान होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सरकार को साख या ऋण लेने की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर-
सरकार को विकासात्मक कार्यों जैसे-परिवहन, संचार, विद्युत, गैस तथा विनिर्माण के अतिरिक्त कृषि, कुटीर एवं लघु उद्योगों को अनुदान तथा निर्धन परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। इस प्रकार सरकार का व्यय उसकी आय की तुलना में अधिक होता है और इस घाटे को पूरा करने के लिए केंद्रीय तथा अन्य बैंकों से साख
या ऋण लेने की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
मुद्रा बाजार तथा पूँजी बाजार की वित्तीय संस्थाओं में अंतर बताएँ।
उत्तर-
मुद्रा बाजार तथा पूंजी बाजार, वित्तीय संस्थाओं के दो वर्ग है। मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएं साख या ऋण का अल्पकालीन लेन-देन करती है। इसके विपरीत पूंजी बाजार की संस्थाएँ उद्योग तथा व्यापार की दीर्घकालीन साख की आवश्यकताओं को पूरा करती है। मुद्रा बाजार में बैंक तथा देशी बैंकर आदि है तथा पूँजी बाजार में शेयर मार्केट शामिल है।

प्रश्न 3.
उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करनेवाली विशिष्ठ वित्तीय संस्थाओं का उल्लेख करें।
उत्तर-
उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन साख प्रदान करनेवाली संस्थाओं में भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक साख एवं निवेश निगम यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया निर्यात-आयात बैंक आदि महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 4.
बैंक जमा कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-
व्यवसायिक बैंक चार प्रकार की जमा राशि को स्वीकार करते हैं

  • स्थायी जमा इसे सावधि जमा भी कहते हैं। इसमें बैंक एक निश्चित अवधि के लिए : राशि जमा कर लेती है और उसकी निकासी समय से पूर्व नहीं होती।
  •  चालू जमा-इसे मांग जमा भी कहते हैं। इसमें व्यक्ति अपनी इच्छानुसार रुपया जमा या निकाल सकता है।
  • संचयी जमा- इस जमा में बैंक ग्राहकों को निकासी के अधिकार को सीमित कर देता है। इसमें एक निश्चित रकम से अधिक निकासी नहीं हो सकती है।
  • आवर्ती जमा-आवर्ती जमा खाते में ग्राहकों को प्रतिमाह एक निश्चित राशि जमा करना होता है। आवर्ती जमा एक निश्चित अवधि (60 माह या 72 माह) तक होता

प्रश्न 5.
व्यावसायिक बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने के मुख्य तरीके क्या है ?
उत्तर-
लोगों की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना तथा ऋण या कर्ज देना व्यावसायिक बैंकों का एक महत्वपूर्ण कार्य है। बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने के मुख्य तरीके निम्नांकित है।

  • अधविकर्ष (Overdraft)इसके अंतर्गत बैंक अपने ग्राहकों को उनकी जमा राशि से अधिक रकम निकालने की सुविधा देता है।
  • नकद साख (Cash Credit)-नकद साख में बैंक अपने ग्राहकों को माल आदि की जमानत पर ऋण देते हैं।
  • ऋण एवं अग्रिम (Cash and advances)_इसमें बैंक अपने ग्राहकों को उचित जमानत के आधार पर पूर्व-निश्चित अवधि के लिए ऋण देते हैं।
  • विनिमय विलों का भुगतान (Discounting of Bills of exchange)-व्यावसायिक बैंक विनिमय बिलों को भुनाकर भी व्यापारियों को ऋण देते हैं।

प्रश्न 6.
कुटीर एवं लघु उद्योगों के क्षेत्र में किस प्रकार की सहकारी समितियाँ स्थापित की जाती है ?
उत्तर-
कुटीर एवं लघु उद्योगों के क्षेत्र में सहकारिता का महत्वपूर्ण स्थान है। इस क्षेत्र में भी सहकारी समितियाँ भी दो प्रकार की होती है साख समितियों तथा गैर-साख समितियाँ।

  • प्रारंभिक गैर-कृषि साख समितियाँ व्यवसाय में लगे हुए व्यक्तियों को साख-सुविधा प्रदान करने के लिए प्रारंभिक गैर-कृषि साख समितियों की स्थापना की जाती है। इस प्रकार की समितियाँ प्रायः नगरों में स्थित होती हैं तथा इन्हें ‘नगर साख समिति’ भी कहते हैं।
  • प्रारंभिक गैर कृषि गैर साख समितियाँ-प्रारंभिक गैर कृषि मैर-साख समितियाँ साख देने के लिए नहीं वरन् कारीगरों तथा शिल्पकारों को अन्य आर्थिक कार्यों में सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित की जाती है। इनमें औद्योगिक समितियाँ, मत्स्यपालन समितियाँ तथा बुनकर समितियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 7.
वित्तीय संस्थाओं से आप क्या समझते हैं ? इनका मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर-
आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं के संचालन में साख की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है। आज प्रायः सभी प्रकार की उत्पादक क्रियाओं के लिए वित्त या साख की आवश्यकता होती है। वित्तीय संस्थाओं के अंतर्गत बैंक, बीमा कंपनियों, सहकारी समितियों तथा महाजन, साहूकार आदि देशी बैंकरों को सम्मिलित किया जाता है जो साख अथवा ऋण के लेन-देन का कार्य करती है। लोग प्रायः अपनी बचत को बैंक आदि संस्थाओं में जमा अथवा निवेश करते हैं। वित्तीय संस्थाएँ इस बचत को स्वीकार करती हैं और इसे ऐसे व्यक्तियों को उधार देती हैं जिन्हें धन की आवश्यकता है। इस प्रकार, वित्तीय संस्थाएँ ऋण लेने और देनेवाले व्यक्तियों के बीच मध्यस्थ का कार्य करती हैं।

प्रश्न 8.
किसानों को वित्त या साख की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर-
भारत में किसानों को अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन तीन प्रकार के साख की आवश्यकता होती है। अल्पकालीन साख की आवश्यकता प्रायः 6 से 12 महीने तक की होती है, इसलिए इसे मौसमी साख भी कहते हैं। इनकी मांग खाद एवं बीज खरीदने, मजदूरी चुकाने तथा ब्याज आदि का भुगतान करने के लिए की जाती है। प्रायः फसल कटने के बाद किसान इन्हें वापस लौटा देता है। मध्यकालीन साखं कृषि यंत्र, हल, बैल आदि खरीदने के लिए ली जाती है। इनकी अवधि प्रायः एक वर्ष से 5 वर्ष तक की होती है। दीर्घकालीन साख की अवधि प्राय: 5 वर्षों से अधिक की होती है। किसानों को सिंचाई की व्यवस्था करने, भूमि को समतल बनाने तथा महो कृषि यंत्र आदि खरीदने के लिए इस प्रकार के ऋण की आवश्यकता होती है। ये ऋण कृषि क्षेत्र में स्थायी सुधार लाने के लिए होते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पूँजी बाजार क्या है ? इसके कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
मूंजी बाजार वह है जिसमें व्यावसायिक संस्थाओं के हिस्सों तथा ऋणपत्रों का क्रय-विक्रय होता है। उद्योग एवं व्यापार की साख या पूँजी की दीर्घकालीन आवश्यकता की पूर्ति पूँजी बाजार से होती है।

आधुनिक समय में सभी वृहत उद्योग या संस्थान संयुक्त पूँजी कंपनी के रूप में चलाए जाते हैं जिसमें बहुत बड़ी मात्रा में पूँजी या साख की आवश्यकता होती है। व्यावसायिक बैंकों द्वारा इतनी मात्रा में पूंजी या साख की व्यवस्था संभव नहीं है। संयुक्त पूँजी कंपनी दीर्घकालीन पूँजी की आवश्यकता की पूर्ति अंशपत्रों या हिस्सों को विक्रय कर तथा ऋणपत्रों के निर्गमन द्वारा करती है।

संयुक्त पूँजी कंपनी के हिस्सों और ऋणपत्रों का क्रय-विक्रय पूँजी बाजार में होता है। पूँजी बाजार के दो मुख्य अंग होते हैं।

  1. प्राथमिक बाजार-प्राथमिक बाजार का संबंध कंपनियों के नए हिस्सों के निर्गमन से होता है।
  2. द्वितीयक बाजार-द्वितीयक बाजार को स्टॉक एक्सचेंज अथवा शेयर बाजार भी कहते हैं। इस बाजार में संयुक्त पूँजी कंपनियों के वर्तमान हिस्सों और ऋणपत्रों का क्रय-विक्रय होता है।

हमारे देश में मुंबई देश की वित्तीय गतिविधियों का केन्द्र है। मुंबई का शेयर बाजार दबाव स्ट्रीट में स्थित है जिसके माध्यम से इस पूँजी बाजार का संचालन होता है।

प्रश्न 2.
‘राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक’ के कणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
ग्रामीण तथा कृषि क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार ने जुलाई 1982 में ‘राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की यह बैंक कृषि तथा ग्रामीण साख की पूर्ति के लिए देश की शीर्ष संस्था है।

देश में कृषि एवं ग्रामीण साख की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा इस कार्य में संलग्न विभिन्न संस्थाओं के कार्यों में समन्वय स्थापित करने का कार्य करता है। कृषि एवं अन्य क्रियाकलापों के लिए ऋण उपलब्ध कराने तथा इस संबंध में नीति-निर्धारण के लिए यह एक शीर्ष संस्था है। विकास कार्यों के लिए निवेश तथा उत्पादक ऋण देनेवाली संस्थाओं के पुनर्वित के लिए मुख्य प्रतिनिधि का कार्य करता है।

राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य पुनर्वास योजनाएँ तैयार, ‘ करना उनपर निगरानी रखना तथा ऋण उपलब्ध करानेवाली संस्थाओं का पुनर्गठन एवं उनके कर्मचारियों का प्रशिक्षण है।

बैंक का एक अन्य कार्य ऋण वितरण प्रणाली की क्षमता को बढ़ाने के लिए उनकी संस्थागत व्यवस्था को विकसित करना है। इसके साथ ही यह परियोजनाओं की देखरेख तथा मूल्यांकन करता है जिनके लिए उसने पुनर्वित की व्यवस्था की है।

लघु सिंचाई, कृषि यंत्रीकरण, स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना स्वयं सहायता समूह तथा ग्रामीण गैर-कृषि प्रक्षेय आदि के लिए वर्ष 2007-08 में नाबार्ड द्वारा बिहार में लगभग 184 करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया गया है।

प्रश्न 3.
हमारे देश में सहकारी बैंकों के मुख्य प्रकार क्या है ?
उत्तर-
सहकारिता के क्षेत्र में सहकारी बैकों का महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे देश में इन बैंकों के तीन मुख्य रूप है केंद्रीय सहकारी बैंक, राज्य सहकारी बैंक तथा भूमि विकास बैंक।

(i) केंद्रीय सहकारी बैंक- केंद्रीय सहकारी बैकों का मुख्य कार्य प्रारंभिक समितियों का संगठन करना तथा उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करना है। अपनी अंशपूँजी एवं जमा-राशि, जनता द्वारा जमा की गई राशि तथा राज्य सहकारी बैंक से प्राप्त ऋण एवं अग्रिम केंद्रीय सहकारी बैंकों के पूँजी के मुख्य स्रोत है। केंद्रीय सहकारी बैंक उन सभी कार्यों का संपादन करते हैं जो एक व्यावसायिक बैंक द्वारा किए जाते हैं, जैसे जनता के धन को जमा के रूप में स्वीकार करना, ऋण देना, चेक, बिल, हुंडी आदि
का भुगतान करना आदि।

(ii) राज्य सहकारी बैंक- प्रत्येक राज्य में इस प्रकार का केवल एक ही बैंक होता है जो उसके मुख्यालय में स्थित होता है। राज्य सहकारी बैंक राज्य के सभी केंद्रीय सहकारी बैंकों के प्रधान होते हैं। राज्य सहकारी बैंक के वित्तीय साधन उनकी अपनी अंशपूंजी, केंद्रीय सहकारी बैंक एवं जनता की जमाराशि तथा राज्य सरकार से प्राप्त ऋण एवं अग्रिम है। राज्य, सहकारी बैकों का मुख्य कार्य केंद्रीय सहकारी बैंकों का संगठन तथा उन्हें ऋण प्रदान करना है। भूमि विकास बैंक- प्रारंभिक कृषि-साख समितियाँ कृषि की अल्पकालीन एवं मध्यकालीन साख की आवश्यकताओं को पूरा करती है। भूमि विकास बैंक किसानों के लिए दीर्घकालीन ऋण की व्यवस्था करते हैं। दीर्घकालीन ऋणि सिंचाई, ट्रेक्टर आदि जैसे महंगे कृषि-यंत्र, पुराने ऋणों के भुगतान तथा भूमि में स्थायी सुधार के लिए होते हैं। भूमि विकास बैंक को पहले ‘भूमि.बंधक बैंक भी कहा जाता था। भूमि विकास बैंक अपनी अंशपूँजी, जमाराशि तथा ऋणपत्रों की बिक्री आदि से वित्तीय साधन एकत्र
करते हैं।

भूमि विकास बैंक भी दो प्रकार की होती हैं केंद्रीय भूमि विकास बैंक तथा प्रारंभिक भूमि, विकास बैंक। देश के कई राज्यों में प्रारंभिक भूमि विकास बैंक नहीं है। ऐसे राज्यों में किसानों को सीधा केंद्रीय भूमि विकास बैंक से ही ऋणों की प्राप्ति होती है।

प्रश्न 4.
मद्रा बाजार की प्रमुख वित्तीय संस्थाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
वित्तीय संस्थाओं को प्रायः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है—मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएँ तथा पूँजी बाजार की वित्तीय संस्थाएँ। मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएँ साख या ऋण का अल्पकालीन लेन-देन करती हैं। इसके विपरीत, पूँजी बाजार की संस्थाएँ उद्योग तथा व्यापार की दीर्घकालीन साख की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाओं में बैंकिंग संस्थाएँ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। भारतीय बैंकिंग प्रणाली के शीर्ष पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया है जिसकी स्थापना अप्रैल 1935 में हुई थी। यह भारत का केंद्रीय बैंक है जो. देश की संपूर्ण बैंकिंग व्यवस्था का नियमन एवं नियंत्रण करता है।

भारत की बैंकिंग प्रणाली व्यावसायिक बैंकों पर आधारित है। व्यावसायिक बैंकों का मुख्य कार्य जनता की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना तथा उद्योग एवं व्यवसाय को उत्पादन कार्यों के लिए ऋण प्रदान करना है। व्यावसायिक बैंक कई प्रकार की अन्य वित्तीय सेवाएँ भी प्रदान करते हैं, जैसे मुद्रा का हस्तांतरण, साखपत्र जारी करना इत्यादि। कुछ समय पूर्व तक हमारे देश के अधिकांश व्यावसायिक बैंकों की शाखाएँ शहरी क्षेत्रों में स्थित थीं। ये बैंक उद्योग एवं व्यापार के लिए केवल अल्पकालीन ऋण की व्यवस्था करते थे। परंतु, हमारी अर्थव्यवस्था में बैंकिंग के महत्त्व को देखते हुए सरकार ने देश के प्रमुख व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर लिया है। इसका मुख्य उद्देश्य समाज के पिछड़े और उपेक्षित वर्ग को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी अधिक-से-अधिक शाखाओं का विस्तार करना था।

1975 से सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों को ऋण प्रदान करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की एक नई योजना आरंभ की है। इन बैंकों का मुख्य कार्य ग्रामीण क्षेत्र के छोटे एवं सीमांत किसानों, कृषि श्रमिकों, कारीगरों, छोटे व्यापारियों आदि को आर्थिक सहायता प्रदान करना है।

कृषि-साख की आवश्यकताओं को पूरा करनेवाली वित्तीय संस्थाओं में सहकारी साख समितियों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है। ग्रामीण तथा कृषि क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार ने जुलाई 1982 में ‘राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक’ की स्थापना की है। यह बैंक कृषि तथा ग्रामीण साख की पूर्ति के लिए देश की शीर्ष संस्था है।

भारतीय मुद्रा बाजार का एक असंगठित क्षेत्र भी है जिसे देशी बैंकर की संज्ञा दी जाती है। यह क्षेत्र प्राचीन पद्धति के अनुसार ऋणों के लेन-देन का कार्य करता है तथा इसे देश के विभिन्न भागों में साहूकार, महाजन, चेट्टी, सर्राफ आदि नामों से पुकारा जाता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी देशी बेंकरों की ही प्रधानता है।