Bihar Board Class 10 Economics हमारी वित्तीय संस्थाएँ Notes

  • वित्तीय संस्थाएँ हमारी आर्थिक संरचना के प्रमुख अंग है।
  • वित्तीय संस्थाओं के विकसित होने पर आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है।
  • वित्तीय सेवाओं की आवश्यकता व्यक्ति या परिवार, व्यावसायिक संस्थान तथा सरकार सभी को होती है।
  • विनीयों को प्रायः दो वर्गों मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएँ तथा पंजी बाजार की वित्तीय संस्थाएं में विभाजित किया जाता है।
  • बैंक आदि मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएं अल्पकालीन साख या ऋण के लेन-देन का कार्य करती है।
  • पूंजी बाजार की संस्थाएँ उद्योग एवं व्यापार की दीर्घकालीन साख की आवश्यकताओं को – पूरा करती है।
  • मुद्रा बाप की वित्तीय संस्थाओं में बैंकिंग संस्था सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
  • भारतीय बाजार को संगठित एवं असंगठित दो भागों में विभक्त किया जा सकता है।
  • संगठित क्षेत्र (बैंक) पर जि का नियंत्रण होता है।
  • असंगठित क्षेत्र में पद आदि देशी बैंकर आये है।
  • पूंजी बाजार वह है जिसमें व्यावसायिक बैंकों के हिस्सों तथा ऋणपत्रों का होता है।
  • हमारे देश की वित्तीय गतिविधियों का केन्द्र मलई है। यहाँ का पूँजी बाजार अत्यंत सुसंगठित है।
  • मुम्बई का शेयर बाजार दलाल स्ट्रीट में स्थित है जिसके माध्यम से पूंजी बाजार का संचालन होता है।
  • कृषि-साख की दीर्घकालीन वित्त की आवश्यकताओं को पूरा करनेवाली संस्थाओं में पाय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक’ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
  • बिहार में संस्थागत तथा गैर-संस्थागत दो प्रकार की वितीय या कार्यरत है।
  • अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में व्यावसायिक बैंकों का ऋण-जमा अनुपात बहुत कम है।
  • बिहार में 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक है जिनमें प्रत्येक राज्य के एक विशेष क्षेत्र में सेवा प्रदान करता है।
  • बिहार में व्यावसायिक बैंक संस्थागत ऋण प्रदान करने के माय मोत है।
  • नावाई अथात् राष्टीय कषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना सन् 1982 में की गई।
  • बिहार के कृषि-ऋण मागों की हिस्सेदारी मात्र 10 प्रतिशत है।
  • बिहार को वित्तीय सहायता उपलब्ध करानेवाली राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में गाय की एवं ग्रामीण विकास बैंक सबसे महत्वपूर्ण है।
  • सहकारिता एक सा है जिसे सामान्य आर्थिक एवं सामाजिक हितों की वृद्धि के लिए समानता के आधार पर स्थापित किया जाता है।
  • भारत में सहकारिता का विकास 1904 में आरंभ हुआ।
  • स्वयं सहायता समह निर्धन परिवारों की ऋणधारा की कमी की समस्या के समाधान में सहायक हुआ है।